Thursday 6 July 2017

Nawaazne Wala Allah (Tabarak wa Taala)

नवाज़ने वाला "अल्लाह"

तबारक व तआला




पाकिस्तान बनने से पहले सिंध के एक
शहर में एक हकीम साहब हुआ करते थे,

जो एक पुरानी सी इमारत मे रहा करते थे।

हकीम साहब रोज़ सुबह दुकान जाने से पहले अहलिया
को कहते कि जो कुछ आज के दिन के लिए तुम्हें
ज़रूरी है एक चिठ्ठी में लिख कर दे दो। अहलिया 
लिखकर दे देती, आप दुकान पर आकर पहले वह
चिठ्ठी खोलते। अहलिया ने जो बातें लिखी
होतीं। उनके भाव देखते, फिर उनका हिसाब
करते... फिर अल्लाह से दुआ करते कि या
अल्लाह! मैं सिर्फ़ तेरे ही हुक्म के बाएस सबकुछ
छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ
बैठा हूँ। जिस वक्त तक तू अपने प्यारे महबूब (सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम) के वसीले से मेरी आज की ज़रूरी पैसों
का बंदोबस्त कर देगा उसी वक़्त
यहां से उठ जाऊँगा और फिर यही होता।
कभी सुबह साढ़े नौ, कभी दस बजे हकीम साहब
मरिज़ों को देखकर वापस अपने गांव
चले जाते...।


एक दिन हकीम साहब ने दुकान खोली, रकम के
हिसाब के लिए चिठ्ठी खोली तो वह
चिठ्ठी को देखते ही रह गए...। एक बार तो
उनका मन भटक गया, उन्हें अपनी आंखों के सामने
तारे चमकते हुए नज़र आ गए लेकिन जल्द ही
उन्होंने अपने पर काबू पाया।

आटे दाल चावल वगैरह के बाद बेगम ने लिखा
था, बेटी के दहेज का सामान...। कुछ देर
सोचते रहे फिर बाकी चीजों की कीमत
लिखने के बाद,

दहेज के सामने लिखा '' यह काम अल्लाह का है, अल्लाह जाने और अल्लाह का महबूब जाने। (सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम) ''

एक दो मरीज आए थे, उन्हें हकीम साहब दवाई
दे रहे थे... इसी दौरान एक बड़ी सी कार
उनकी दुकान के सामने आकर रुकी। हकीम
साहब ने कार या साहब को कोई खास
तवज्जो नहीं दी क्योंकि कई कारों वाले
उनके पास आते रहते थे...।
दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए...। वह
सूटेडबूटेड साहब कार से बाहर निकले और सलाम
करके बेंच पर बैठ गए। हकीम साहब ने कहा कि
अगर आपको अपने लिए दवा लेनी है तो उधर
स्टूल पर आएं ताकि आपकी जाँच कर लूँ और अगर
किसी मरीज़ की दवाई लेकर जाना है तो
बीमार का मुकम्मल हाल बता दें

वह साहब कहने लगे हकीम साहब मुझे लगता है
आपने मुझे पहचाना नहीं।

लेकिन आप मुझे पहचान
भी कैसे सकते हैं?
क्योंकि मैं 15-16 साल बाद
आपकी दुकान पे आया हूँ

आपको पिछले मुलाकात का अहवाल सुनाता
हूँ फिर आपको सारी बात याद आ जाएगी।
जब मैं पहली बार यहां आया था तो मैं खुद
नहीं आया था अल्लाह मुझे आपके पास ले आया
था क्योंकि अल्लाह को मुझ पर रहम आ गया
था और वह मेरा घर आबाद करना चाहता
था।
हुआ इस तरह था कि मैं लाहौर से मीरपुर
अपनी कार में अपने पुश्तैनी घर जा रहा था।

यहीं आपकी दुकान के सामने हमारी कार
पंक्चर हो गई। ड्राईवर कार का पहिया
उतार कर पंक्चर ठीक कराने चला गया। आपने देखा
कि गर्मी में मैं कार के पास खड़ा हूँ।

आप मेरे
पास आए और दुकान की ओर इशारा किया और
कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएँ...।

अंधा
क्या चाहे दो आँखें...। मैं शुक्रिया अदा
किया और कुर्सी पर आकर बैठ गया।

ड्राइवर ने
कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी। एक छोटी
सी बच्ची भी यहाँ अपनी मेज के पास खड़ी
थी और बार बार कह रही थी ''चलें नां, मुझे
भूख लगी है। आप उसे कह रहे थे बेटी थोड़ा सब्र
करो चलते हैं...।"

मैं यह सोच कर कि इतनी देर आपके पास बैठा
हूँ। मुझे कोई दवाई खरीदनी चाहिए ताकि
आप मेरे बैठने का भार महसूस न करें।

मैंने कहा
हकीम साहब! मैं 5,6 साल से इंग्लैंड में हूँ। इंग्लैंड
जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन
अब तक बच्चों की ख़ुशी से महरूम हूँ। यहां भी
इलाज किया और वहाँ इंग्लैंड में भी लेकिन
किस्मत में मायूसी के सिवा और कुछ नहीं
देखा।

आपने कहा मेरे भाई! तौबा करो और
रब से नउम्मीद न हो...

याद रखो ! उसके
खजाने में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं
है। औलाद, माल व असबाब और ग़म खुशी, ज़िन्दगी मौत सब कुछ उसी के हाथ में है।

किसी हकीम या डॉक्टर के हाथ नहीं होती और न ही किसी दवा में होती है... अगर होनी है तो
अल्लाह के हुक्म से होनी है। औलाद देनी है तो
उसी ने देनी है।

मुझे याद है आप बातें करते जा
रहे थे और साथ साथ पुड़िआं भी बना रहे थे।
सभी दवा आपने 2  जगह तक़सीम कर
लिफाफे में डालीं। फिर मुझसे पूछा कि
तुम्हारा नाम क्या है? मैंने बताया कि
मेरा नाम मोहम्मद अली है। आपने एक लिफाफे
पर मुहम्मद अली और दूसरे पर बेगम मुहम्मद अली
लिखा। फिर दोनों लिफाफे एक बड़े
लिफाफे में रख दवा को इस्तेमाल करने का
तरीका बताया। मैंने बेदिली से दवाई ले
ली क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आपको देना
चाहता था।

लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने
पूछा कितने पैसे?

आपने कहा बस ठीक है। मैंने
जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का
खाता बंद हो गया है।

मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई। इसी
दौरान वहां एक और आदमी आया उसने मुझे
बताया कि खाता बंद होने का मतलब यह है
कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी रकम हकीम
साहब ने अल्लाह से मांगी थी वह अल्लाह ने दे
दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते। मैं कुछ हैरान
हुआ और कुछ दिल में शर्मिंदा हुआ कि मेरा
कितने घटिया ख़याल था और यह सरल
हकीम कितने बेहतरीन अख़लाक के है। मैंने जब घर
जा कर बीवी को दवा दिखाई और
सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला
वो इंसान नहीं कोई फरिश्ता है और उसकी
दी हुई दवा हमारे मन की मुराद पूरी करने
का सबब बनेंगी, इंशाअल्लाह।

हकीम साहब आज मेरे घर में
तीन तीन फूल खेल रहे हैं।
हम हर समय आपके लिए दुवा करते रहते हैं, जब भी
मैं छुट्टी में आया। कार उधर रोकी लेकिन
दुकान को बंद पाया। कल दोपहर भी आया था
दुकान बंद थी। एक आदमी पास ही खड़ा हुआ
था। उसने कहा कि अगर आपको हकीम साहब
से मिलना है तो सुबह 9 बजे ज़रूर पहुंच जाएं
वरना उनके मिलने की कोई गारंटी नहीं।

इसलिए आज सवेरे सवेरे आपके पास आया हूँ...।
हकीम साहब हमारा सारा परिवार
इंग्लैंड सेटल हो चुका है। केवल हमारी एक
बेवा बहन अपनी बेटी के साथ
पाकिस्तान में रहती है। हमारी भांजी
की शादी इस महीने की 21 तारीख को
होनी थी। इस भांजी की शादी का
सारा खर्च मैंने अपने ज़िम्मे लिया था। 10
दिन पहले इसी कार में उसे लाहौर अपने
रिश्तेदारों के पास भेजा था ताकि
शादी के लिए जो चीज़ चाहे खरीद ले। उसे
लाहौर जाते ही बुखार हो गया लेकिन
उसने किसी को नहीं बताया। बुखार
गोलियाँ डिस्प्रिन वगैरह खाती रही ,

बाजार में ख़रीदारी के दौरान अचानक बेहोश होकर गिर गईं।
वहां से उसे अस्पताल ले गए। वहां जाकर पता
चला कि इसे बहुत तेज़ बुखार है और यह कोमा मे चली गई है। वह कोमा की हालत
ही में इस दुनिया से रुख़सत हो गयी ।
उसके इंतेकाल के बाद ही न जाने क्यों मुझे और मेरी बेगम को आपकी बेटी का ख्याल आया। हमने और
हमारे सभी फ़ैमिली मेंम्बर्स ने फैंसला किया है कि
हम अपनी भांजी के सभी दहेज का साज़-
सामान आपके यहां पहुंचा देंगे।

शादी जल्दी
है तो सारा इंतेज़ाम हम खुद करेंगे और अगर अभी कुछ देर है
तो सभी खर्चों के लिए पैसा आप को नकदी
पहुंचा देंगे। आप को नां नहीं करनी। अपना घर
दिखा दें ताकि माल ट्रक वहां पहुंचाया
जा सके।

हकीम साहब हैरान-परेशान हुए बोले ''मुहम्मद
अली साहब! आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं
आ रहा, मेरा इतना मन नहीं है। मैंने तो आज
सुबह जब बेगम के हाथ की लिखी हुई चिठ्ठी
यहाँ आकर खोलकर देखी तो मिर्च मसाले के
बाद जब मैंने ये लफ्ज़ पढ़े

''बेटी के दहेज का
सामान ''

तो तुम्हें पता है मैंने क्या लिखा। आप
खुद यह चिठ्ठी ज़रा देखें। मुहम्मद अली साहब
यह देखकर हैरान रह गए कि '' बेटी के दहेज '' के
सामने के आगे लिखा हुआ था '' यह काम अल्लाह
का है, अल्लाह जाने अल्लाह का महबूब जाने। (सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम)''


मोहम्मद अली साहब, यकीन करो आज तक
कभी ऐसा नहीं हुआ था कि बेगम ने
चिठ्ठी पर बात लिखी हो और अल्लाह ने
उसका उसी दिन इन्तेज़ाम न कर दिया हो।

वाह मौला! वाह तू बड़ा रहीम है, तू करीम
है... आपकी भांजी की मौत का सदमा है
लेकिन अल्लाह की कुदरत से हैरान हूँ कि वे कैसे
अपने काम दिखाता है।


हकीम साहब ने कहा जब से होश संभाला एक
ही सबक पढ़ा कि सुबह विर्द है '' या
रज़ाक़! , या रज़ाक़!, तूही रज़ाक '' और शाम
को '' शुक्र, शुक्र मौला तेरा शुक्र। ''

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