Saturday 22 December 2018

Fateh Qustuntunia (Istanbul Victory) 29th May 1453

क़ुस्तुन्तुनिया पर मुसलमानों की वो अज़ीमुश्शान फ़तह,
जिसको यूरोप कभी नहीं भूल सका
29 मई, साल 1453 की तारीख. रात के डेढ़ बजे हैं. दुनिया
के एक प्राचीन और एक महान शहर की
दीवारों और गुंबदों के ऊपर चांद तेजी से पश्चिम
की ओर दौड़ा जा रहा है. जैसे उसे किसी ख़तरे का अंदेशा
हो… इस डूबते हुए चांद के धुंधलके में देखने वाले देख सकते हैं कि शहर
की दीवारों के बाहर फौज के दस्ते पक्के इरादे के साथ
इकट्ठे हो रहे हैं. उनके दिल में ये एहसास है कि वे इतिहास के एक निर्णायक बिंदु
पर खड़े हैं.
ये शहर कस्तुनतुनिया है (आज का इस्तांबुल) और दीवारों के बाहर
उस्मानी फौज (तुर्क सेना) आखिरी हल्ला बोलने
की तैयारी कर रही है. उस्मानी
तोपों को शहर की दीवार पर गोले बरसाते हुए 476 दिन
बीत चुके हैं. कमांडरों ने ख़ास तौर पर तीन जगहों पर तोपों
का मुंह केंद्रित रखकर दीवार को जबरदस्त नुक़सान पहुंचाया है.
21 साल के उस्मानी सुल्तान मोहम्मद सानी अप्रत्याशित
रूप से अपने फौज के अगले मोर्चे पर पहुंच गए हैं. उन्होंने ये फैसला कर लिया है
कि आखिरी हमला दीवार के ‘मैसोटीक्योन’
कहलाने वाले बीच के हिस्से पर किया जाएगा जहां कम से कम नौ दरारें
पड़ चुकी हैं और खंदक का बड़ा हिस्सा पाट दिया गया है. सिर पर
भारी पग्गड़ बांधे और स्वर्ण जड़ित लिबास पहने सुल्तान ने अपने
सैनिकों को तुर्की जबान में संबोधित किया, ‘मेरे दोस्तों और बच्चों, आगे
बढ़ो, अपने आप को साबित करने का लम्हा आ गया है.’ इसके साथ ही
नक्कारों, रणभेरी, तबलों और बिगुल के शोर ने रात की
चुप्पी को तार-तार कर दिया, लेकिन इस कान फाड़ते शोर में
भी उस्मानी फौज के गगनभेदी नारे साफ सुनाई
दे रहे थे जिन्होंने किले की दीवार के कमजोर हिस्सों पर
हल्ला बोल दिया था। एक तरफ ज़मीन पर और दूसरी तरफ़
समुद्र में खड़े जहाजों पर तैनात तोपों के दहानों ने आग बरसाना शुरू कर दिया. इस
हमले के लिए बांजिटिनी सैनिक तैयार खड़े थे. लेकिन पिछले डेढ़
महीनों की घेराबंदी ने उनके हौंसले पस्त कर
दिए थे.
बहुत से शहरी भी मदद के लिए दीवार तक
आ पहुंचे थे और उन्होंने पत्थर उठा-उठाकर नीचे इकट्ठा होने वाले
सैनिकों पर फेंकना शुरू कर दिया था. दूसरे लोग अपने-अपने
करीबी गिरिजाघरों की तरफ़ दौड़े और रो-रो कर
प्रार्थना शुरू कर दी. पादरियों ने शहर के विभिन्न चर्चों की
घंटियां पूरी ताकत से बजानी शुरू कर दी
थी जिनकी टन टनाटन ने उन लोगों को भी जगा
दिया जो अभी तक सो रहे थे.
ईसाई धर्म के सभी संप्रदायों के लोग अपने सदियों पुराने मतभेद भुलाकर
एकजुट हो गए और उनकी बड़ी संख्या सबसे बड़े और
पवित्र चर्च हाजिया सोफिया में इकट्ठा हो गई. सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी
जान लगाकर उस्मानी फौज के हमले रोकने की कोशिश
की. लेकिन इतालवी डॉक्टर निकोल बारबिरो जो उस दिन शहर
में मौजूद थे.
वे लिखते हैं कि ‘सफेद पगड़ियाँ बांधे हुए हमलावर आत्मघाती दस्ते
बेजिगर शेरों की तरह हमला करते थे और उनके नारे और नगाड़ों
की आवाजें ऐसी थी जैसे उनका संबंध इस
दुनिया से ना हो.’ रोशनी फैलने तक तुर्की
सिपाही दीवार के ऊपर पहुंच गए.
इस दौरान ज्यादातर सुरक्षा कर्मी मारे जा चुके थे और उनका सेनापति
जीववानी जस्टेनियानी गंभीर रूप से
घायल होकर रणभूमि से भाग चुका था. जब पूरब से सूरज की
पहली किरण दिखाई दी तो उसने देखा कि एक तुर्क सैनिक
करकोपरा दरवाजे के ऊपर स्थापित बाजिंटिनी झंडा उतारकर
उसकी जगह उस्मानी झंडा लहरा रहा था। सुल्तान
मोहम्मद सफेद घोड़े पर अपने मंत्रियों और प्रमुखों के साथ हाजिया सोफिया के चर्च
पहुंचे. प्रमुख दरवाजे के पास पहुंचकर वह घोड़े से उतरे और सड़क से एक
मुट्ठी धूल लेकर अपनी पगड़ी पर डाल
दी. उनके साथियों की आंखों से आँसू बहने लगे. 700 साल
के संघर्ष के बाद मुसलमान आखिरकार कस्तुनतुनिया फतह कर चुके थे.
कस्तुनतुनिया की विजय सिर्फ एक शहर पर एक राजा के शासन का
खात्मा और दूसरे शासन का प्रारंभ नहीं था. इस घटना के साथ
ही दुनिया के इतिहास का एक अध्याय खत्म हुआ और दूसरा शुरू हुआ
था. एक तरफ 27 ईसा पूर्व में स्थापित हुआ रोमन साम्राज्य 1480 साल तक
किसी न किसी रूप में बने रहने के बाद अपने अंजाम तक
पहुंचा. दूसरी ओर उस्मानी साम्राज्य ने अपना बुलंदियों को
छुआ और वह अगली चार सदियों तक तक तीन
महाद्वीपों, एशिया, यूरोप और अफ्रीका के एक बड़े हिस्से
पर बड़ी शान से हुकूमत करता रहा. 1453 ही वो साल था
जिसे मध्य काल के अंत और नए युग की शुरुआत का बिंदु माना जाता है.
यही नहीं बल्कि कस्तुनतुनिया की विजय को
सैनिक इतिहास का एक मील का पत्थर भी माना जाता है
क्योंकि उसके बाद ये साबित हुआ कि अब बारूद के इस्तेमाल और बड़ी
तोपों की गोलाबारी के बाद दीवारें किसी
शहर की सुरक्षा के लिए काफी नहीं है.
शहर पर तुर्कों के कब्जे के बाद यहां से हजारों संख्या यूनानी बोलने
वाले लोग भागकर यूरोप और खास तौर से इटली के विभिन्न शहरों में जा
बसे. उस समय यूरोप अंधकार युग से गुज़र रहा था और प्राचीन
यूनानी सभ्यता से कटा हुआ था. लेकिन इस दौरान कस्तुनतुनिया में
यूनानी भाषा और संस्कृति काफी हद तक बनी
रही थी।
यहां आने वाले मोहाजिरों के पास हीरे जवाहरात से भी
बेशकीमती खजाना था. अरस्तू, अफलातून (प्लेटो),
बतलिमूस, जालिनूस और फिलॉसफर विद्वान के असल यूनानी नुस्खे उनके
पास थे. इन सब ने यूरोप में प्राचीन यूनानी ज्ञान को फिर
से जिंदा करने में जबरदस्त किरदार अदा किया. इतिहासकारों के मुताबिक
उन्हीं से यूरोप के पुनर्जागरण की शुरुआत हुई जिसने
आने वाली सदियों में यूरोप को बाकी दुनिया से आगे ले जाने में
मदद दी. जो आज भी बरकरार है. फिर भी
नौजवान सुल्तान मुहम्मद को, जिसे आज दुनिया सुल्तान मोहम्मद फातेह के नाम से
जानती है, 29 मई की सुबह जो शहर नज़र आया था, ये
वो शहर नहीं था जिसकी शानोशौकत के अफसाने उसने
बचपन से सुन रखे थे. लंबी गिरावट के दौर के बाद बांजिटिनी
सल्तनत आखिरी सांसे ले रही थी और
कुस्तुनतिया जो सदियों तक दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे मालदार शहर रहा था,
अब उसकी आबादी सिकुड़ कर चंद हज़ार रह गई
थी. और शहर के कई हिस्से वीरानी के कारण
एक दूसरे से कटकर अलग-अलग गांवों में तब्दील हो गए थे. कहा जाता
है कि नौजवान सुल्तान ने शहर के बुरे हालात को देखते हुए शेख सादी
का कहा जाने वाला एक शेर पढ़ा जिसका अर्थ है… “उल्लू, अफरासियाब के
मीनारों पर नौबत बजाया जाता है… और कैसर के महल पर
मकड़ी ने जाले बुन लिए हैं…”
कस्तुनतुनिया का प्राचीन नाम बाजिंटिन था. लेकिन जब 330
ईस्वी में रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन प्रथम ने अपनी
राजधानी रोम से यहाँ स्थानांतरित की तो शहर का नाम बदल
कर अपने नाम के हिसाब से कौंस्टेन्टीनोपल कर दिया, (जो अरबों के यहां
पहुँच कस्तुनतुनिया बन गया).
पश्चिम में रोमन साम्राज्य के पतन के बाद ये राज्य कस्तुनतुनिया में बना रहा और
चौथी से 13वीं सदी तक इस शहर ने विकास
की वो कामयाब सीढ़ियां तक की कि इस दौरान
दुनिया का कोई और शहर उसकी बराबरी का दावा
नहीं कर सकता था. यही कारण है कि मुसलमान शुरू से
ही इस शहर को जीतने का ख्वाब देखते आए थे.
इसलिए इस लक्ष्य को प्राप्त करने की खातिर कुछ
शुरुआती कोशिशों की नाकामी के बाद 674
ईस्वी में एक जबरदस्त नौसैनिक बेड़ा तैयार कर कस्तुनतुनिया
की ओर रवाना कर दिया गया. इस बेड़े ने शहर के बाहर डेरा डाल दिए
और अगले चार साल तक लगातार दीवार पार करने की कोशिश
की जाती रही.
आखिर 678 ईस्वी में बांजिटिनी जहाज शहर से बाहर
निकले और उन्होंने आक्रामणकारी अरबों पर हमला कर दिया. इस बार
उनके पास एक जबरदस्त हथियार था, जिसे ‘ग्रीक फायर’ कहा जाता था.
इसका ठीक-ठीक फॉर्मूला आज तक मालूम
नहीं हो सका लेकिन ये ऐसा ज्वलनशील पदार्थ था जिसे
तीरों की मदद से से फेंका जाता था
कस्तुनतुनिया की घेराबंदी और ये कश्तियों और जहाजों से
चिपक जाता था. इसके अलावा पानी डालने से इसकी आग
और भड़कती थी. इस आपदा के लिए अरब तैयार
नहीं थे. इसलिए देखते ही देखते सारे नौसैनिक बेड़े आग के
जंगल में बदल गए. सैनिक जान बचाने के लिए पानी में कूद गए. लेकिन
यहां भी पनाह नहीं मिली क्योंकि
ग्रीक फायर पानी की सतह पर गिरकर
भी जल रहे थे और ऐसा लगता था कि पूरे समुद्र में आग लग गई है.
अरबों के पास भागने के अलावा कोई चारा नहीं था. वापसी में
एक भयानक समुद्री तूफान ने रही सही कसर
भी पूरी कर दी और सैंकड़ों कश्तियों में बस
एक आध ही बचकर लौटने में कामयाब हो पाए.
इस घेराबंदी के दौरान प्रसिद्ध सहाबी अबू अय्यूब
अंसारी ने भी अपनी ज़िंदगी कुर्बान
कर दी. उनका मकबरा आज भी शहर की
दीवार के बाहर है. सुल्तान मोहम्मद फातेह ने यहां एक मस्जिद बनाई
थी जिसे तुर्क पवित्र स्थान मानते हैं. उसके बाद 717
ईस्वी में बनु उमैया के अमीर सुलेमान बिन अब्दुल मलिक ने
बेहतर तैयारी के साथ एक बार फिर कस्तुनतुनिया की
घेराबंदी की लेकिन इसका भी अंजाम अच्छा
नहीं हुआ और दो हज़ार के करीब नौसेना की
जंगी कश्तियों में से सिर्फ पांच बचकर वापस आने में कामयाब हो पाए.
राजधानी अदर्ना से कस्तुनतुनिया शायद यही कारण था कि
इसके बाद छह शताब्दियों तक मुसलमानों ने कस्तुनतुनिया की तरफ रुख
नहीं किया. लेकिन सुल्तान मोहम्मद फातेह ने अंत में शहर पर अपना
झंडा लहराकर सारे पुराने बदले चुका दिए. शहर पर कब्जा जमाने के बाद सुल्तान ने
अपनी राजधानी अदर्ना से कस्तुनतुनिया कर ली
और खुद अपने लिए कैसर-ए-रोम की उपाधि धारण की.
आने वाले दशकों में उस शहर ने वो उरूज देखा जिसने एक बार फिर
प्राचीन काल की याद ताजा करा दी. सुल्तान ने
अपने सल्तनत में फरमान भेजा, ‘जो कोई चाहे, वो आ जाए, उसे शहर में घर और
बाग मिलेंगे…’ सिर्फ यही नहीं, उन्होंने यूरोप से
भी लोगों को कस्तुनतुनिया आने की दावत दी ताकि
फिर से शहर बस जाए. इसके अलावा, उन्होंने शहर के क्षतिग्रस्त
बुनियादी ढांचे का पुनर्निर्माण किया, पुरानी नहरों
की मरम्मत की और जल निकासी व्यवस्था को
सुधारा. उन्होंने बड़े पैमाने पर नए निर्माण का सिलसिला शुरू किया जिसकी
सबसे बड़ी मिसाल तोपकापी महल और ग्रैंड बाजार है.
जल्द ही तरह-तरह के शिल्पकार, कारीगर,
व्यापारी, चित्रकार, कलाकार और दूसरे हुनरमंद इस शहर का रुख करने
लगे. सुल्तान फातेह ने हाजिया सोफिया को चर्च से मस्जिद बना दिया. लेकिन उन्होंने
शहर के दूसरे बड़े गिरिजाघर कलिसाय-ए-हवारियान को यूनानी
रूढ़िवादी संप्रदाय के पास ही रहने दिया और ये संप्रदाय एक
संस्था के रूप में आज भी कायम है।
यूनान का मनहूस दिन सुल्तान फातेह के बेटे सलीम के दौर में
उस्मानी सल्तनत ने खिलाफत का दर्जा हासिल कर लिया और
कस्तुनतुनिया उसकी राजधानी बनी और मुस्लिम
दुनिया के सारे सुन्नियों का प्रमुख शहर बन गया. सुल्तान फातेह के पोते सुलेमान
आलीशान के दौर में कस्तुनतुनिया ने नई ऊंचाइयों को छुआ.
ये वही सुलेमान हैं जिन्हें मशहूर तुर्की नाटक ‘मेरा
सुल्तान’ में दिखाया गया है. सुलेमान आलीशान की मलिका
खुर्रम सुल्तान ने प्रसिद्ध वास्तुकार सनान की सेवा ली,
जिन्होंने रानी के लिए एक आलीशान महल बनाया. सनान
की दूसरी प्रसिद्ध इमारतों में सुलेमानिया मस्जिद, खुर्रम
सुल्तान हमाम, खुसरो पाशा मस्जिद, शहजादा मस्जिद और दूसरी इमारतों
शामिल हैं.
यूरोप पर कस्तुनतुनिया के पतन का गहरा असर पड़ा था और वहां इस सिलसिले में
कई किताबें और नजमें लिखी गई थीं और कई पेटिंग्स बनाई
गईं जो लोगों की सामूहिक चेतना का हिस्सा बन गईं. यही
कारण है कि यूरोप इसे कभी नहीं भूल सका.
नैटो का अहम हिस्सा होने के बावजूद, यूरोपीय संघ सदियों पुराने जख्मों
के कारण तुर्की को अपनाने से आनाकानी से काम लेता है.
यूनान में आज भी गुरुवार को मनहूस दिन माना जाता है. वो
तारीख 29 मई 1453 को गुरुवार का ही दिन था।

Sunday 25 November 2018

कलामे इक़्बाल


※कलामे इक़्बाल※



ﻟﻮﺡ ﺑﮭﯽ ﺗﻮ ، ﻗﻠﻢ ﺑﮭﯽ ﺗﻮ ، ﺗﻴﺮﺍ ﻭﺟﻮﺩ ﺍﻟﮑﺘﺎﺏ
लौह भी तू , क़लम भी तू ,
तेरा वुजूद अलकिताब ।
ﮔﻨﺒﺪ ﺁﺑﮕﻴﻨﮧ ﺭﻧﮓ ﺗﻴﺮﮮ ﻣﺤﻴﻂ ﻣﻴﮟ ﺣﺒﺎﺏ
ग़ुम्बदे आब्गीना रंग,
तेरे मुह़ीत़ में हिबाब ।
ﻋﺎﻟﻢ ﺁﺏ ﻭ ﺧﺎﮎ ﻣﻴﮟ ﺗﻴﺮﮮ ﻇﮩﻮﺭ ﺳﮯ ﻓﺮﻭﻍ
आलमे आबो ख़ाक़ में,
तेरे ज़हूर से फ़रोग़ ।
ﺫﺭﮦ ﺭﻳﮓ ﮐﻮ ﺩﻳﺎ ﺗﻮ ﻧﮯ ﻃﻠﻮﻉ ﺁﻓﺘﺎﺏ
ज़र्राह रेग़ को दिया,
तू ने तुलूए आफ़ताब
ﺷﻮﮐﺖ ﺳﻨﺠﺮ ﻭ ﺳﻠﻴﻢ ﺗﻴﺮﮮ ﺟﻼﻝ ﮐﯽ ﻧﻤﻮﺩ
शौकते सन्जरो सलीम,
तेरे जलाल की नमूद ।
ﻓﻘﺮ ﺟﻨﻴﺪ ﻭ ﺑﺎﻳﺰﻳﺪ ﺗﻴﺮﺍ ﺟﻤﺎﻝ ﺑﮯ ﻧﻘﺎﺏ
फ़क्र जुनैदो बायज़ीद,
तेरा जमाल बेनकाब ।
ﺷﻮﻕ ﺗﺮﺍ ﺍﮔﺮ ﻧﮧ ﮨﻮ ﻣﻴﺮﯼ ﻧﻤﺎﺯ ﮐﺎ ﺍﻣﺎﻡ
शौक़ तेरा अगर न हो,
मेरी नमाज़ का इमाम ।
ﻣﻴﺮﺍ ﻗﻴﺎﻡ ﺑﮭﯽ ﺣﺠﺎﺏ ، ﻣﻴﺮﺍ ﺳﺠﻮﺩ ﺑﮭﯽ ﺣﺠﺎﺏ
मेरा क़याम भी हिजाब,
मेरा सुजूद भी हिजाब ।
ﺗﻴﺮﯼ ﻧﮕﺎﮦ ﻧﺎﺯ ﺳﮯ ﺩﻭﻧﻮﮞ ﻣﺮﺍﺩ ﭘﺎ ﮔﺌﮯ
तेरी निगाहे नाज़ से,
दोनो मुराद पा गए ।
ﻋﻘﻞ ﻏﻴﺎﺏ ﻭ ﺟﺴﺘﺠﻮ ، ﻋﺸﻖ ﺣﻀﻮﺭ ﻭ ﺍﺿﻄﺮﺍﺏ
अक्ले ग़याबो जुस्तजू,
इश्के हुज़ूरो इज़तिराब ।


सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम

Tuesday 21 August 2018

Hazrat Syed Haji Ali Shah Bukhari Radi Allahu anh

हज़रत सय्यद पीर हाजी अली शाहबुख़ारी (रदियल्लाहो तआला अन्ह)मुम्बई

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हाजी अली उज्बेकिस्तान के बुखारा शहर के रहने वाले थे I
आप बहोत पैसे वाले व्यापारी थे, आपने पूरी दुनिया का
भ्रमण किया है आज से तक़रीबन 550 वर्ष पूर्व आप अपने भाई के
साथ पहली बार भारत देश में भी पहुचे उस वक्त
भी मुंबई प्रमुख व्यापारिक स्थल हुवा करता था I मुंबई के
वरली इलाके में आकर आप रुके और फिर वे इसी जगह
पर रहने लगे I भारत में रहकर आपने बहोत से बुज़ुर्ग, कामिल वलिअल्लाहो को
देखा, उनके बारे में सुना और आपने महसूस की इन बुजुर्गो ने जिनमे
हज़रत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती र.अ.,
कुतबुद्दीन चिश्ती र.अ., बाबा फरीद र.अ.,
निजामुद्दीन चिश्ती र.अ.,जैसे अनेक सूफी संत
है जिन्होंने खल्क की खिदमत की और उनके प्रभाव से
इस मुल्क में इस्लाम तेज़ी से फल फूल रहा था I ज़रूरत
थी इन बुजुर्गो के लगाये पौधों को सीचने की,
आपको महसूस हुवा की अल्लाह ने उन्हें भी
इसी वजह से मुल्के हिंदुस्तान मुबंई में भेजा है लिहाज़ा आपने
भी यहाँ आने के बाद इंसानियत और इस्लाम की खिदमत को
अपना मकसद बनाया I आप बुखारा शरीफ के थे आपके अन्दर अल्लाह
ने तमाम रूहानी वो बातिनी इल्म पहले से दिए हुवे थे लिहाज़ा
आपने व्यापार को छोड़कर खिदमते खल्क का रास्ता चुना I आपकी बाते
सुनकर सभी मज़हब के लोग तेज़ी से आपके
करीब आने लगे I आप इंसानो के दुःख दर्द को अच्छी
तरह से समझते थे आपने हर तरह से सभी की मदद
की सभी को सही रास्ता दिखलाया I इधर
हिन्दुस्तान में रहते हुवे जब काफी दिन हो गए तो आपकी
वाल्दा ने आप के पास खबर भिजवाई आपने जवाब दिया अल्लाह चाहता है
की मै हिन्दुस्तान में ही रहकर खल्क की
खिदमत करू लिहाज़ा ए अम्मीजान आप मेरी फ़िक्र मत
कीजे और मेरे लिए अल्लाह से दुवा करे की अल्लाह मुझे
इस अज़ीम मकसद में कामयाबी दे I और इस तरह आप
हमेशा हमेशा के लिए हिंदुस्तान में ही रहने लगे I
आपने कई बार हज का सफ़र किया था I लोग आपको हाजी
अली कहा करते I ऐसा कहा जाता है की हज के दौरान
ही आप की रूह ने आपके जिस्म का साथ छोड़ दिया, और
आपकी नसीहत के मुताबिक आपके जिस्म मुबारक को एक
ताबूत में बंद कर समुद्र में छोड़ दिया गया आपका जिस्म मुबारक अरब सागर में हजारो
मील का सफ़र तय करता हुवा मुंबई के वरली स्थित
बंदरगाह जहाँ आज भी आपकी मजार है वहां पर
ही आकर रुक गया I और आपकी वसीयत के
मुताबिक ये वही जगह थी जहाँ आपने कहा था
इसी वजह से इस जगह पर सन 1431 में आपकी मजार
बनायीं गई I तो कुछ का मानना कुछ और है मगर ये बात तो
हकीकत है की आक्पकी
वसीयत के मुताबिक ही आपकी दरगाह समुद्र
के बीच इस जगह पर मौजूद है I अल्लाह I मजार के साथ एक
मस्जिद भी है I हाजी अली की
दरगाह वरली मुंबई में अरब सागर समुद्र के किनारे से
तक़रीबन 500 गज की दूरी पर आज
भी वैसी ही मौजूद है जैसा की
कल थी I आज भी अरब सागर की लहरे
उनकी मज़ार की दीवारों तक
पहुचती तो ज़रूर है मगर उसकी इतना मजाल
नहीं की वो उस दरगाह तक पहुच सके I कोई नुकसान
पहुचाना तो दूर की बात है लहरे आज तक इसे कभी छू
भी नहीं सकी है लगता है जैसे
पानी खुद इस मुक़द्दस दर का तवाफ़ करने आता तो बहोत
तेज़ी से है मगर उतनी ही तेज़ी
से थम भी जाता है और फिर खुश होकर वापस चला जाता है I हालाकि
दरगाह के नीचे हजारो फिट पानी होगा मगर ये दरगाह
अपनी जगह पर किस तरह कायम है ये हैरानी
की बात है I पहले इस दरगाह के अन्दर औरतो का जाना मना था मगर
कोर्ट के फैसले के बाद से आज वहां पर औरते भी अन्दर आ जा
रही है I इस जगह पर बहोत से लोग सैर और तफरीह
के लिए भी आते है और आज ये जगह एक प्रमुख स्थल है I
हाजी अली के बारे में एक और बात पता चली
है की आपने अपनी बहन को भी ख्वाब में
बशारत दी और अपने इस जगह पर मौजूद होने के बारे में बतलाया I
आपकी बहन इस जगह पर आई और उन्होंने भी अपने
भाई के इस अधूरे मिशन को पूरा करने का बीड़ा उठाया और वो
भी ताउम्र मुंबई में ही रही
आपकी भी दरगाह कुछ फासले में मौजूद है I
ये अल्लाह वालो की शान है , जहाँ उनका दिल चाहे, या फिर हुक्म ए
इलाही हो वे वही रहते है I और कल भी ये
खल्क की खिदमत कर रहे थे और आज भी ये खल्क
की खिदमत कर रहे है क्योकि ये अल्लाह के वली
(दोस्त)है जो बेशक जिंदा है I मुंबई माहिम में ही हज़रत मखदूम शाह
की दरगाह भी समुद्र के किनारे स्थित है जहा पर कुछ
साल पहले ही समुद्र का पानी मीठा होने का
वाकया काफी मशहूर हुवा था I इसी दरगाह में हुजुर ए
अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुक़द्दस दर से लायी गई
चादर शरीफ भी एक फ्रेम में लगी हुई है
आप कभी जाये तो उसकी भी जियारत ज़रूर करे
I मुंबई में ही कल्याण से कुछ दूरी पर पहाड़ में
काफी उचाईयों पर हाजी मस्तान की दरगाह
भी मौजूद है I हाजी मस्तान की दरगाह में
भी एक तरफ अगर मुसलमान खादिम बैठते है तो दूसरी
तरफ हिन्दू खादिम, बैठते है, उनके वक्त भी सभी कौम
के लोग इस जगह पर आकर उनके साथ रहने लगे थे और आज भी
यहाँ पर सभी कौम के लोगो को देखा जा सकता है I तीनो
ही जगह बेमिसाल है और जो सुकून है वो तो आपको वहां जाने के बाद
ही पता चल सकता है |!
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# copied_MalaK

Saturday 18 August 2018

नसीहत


  ,,,,,,,,,"नसीहत",,,,,,,,,,
،،،،،،،" ﻧﺼﯿﺤﺖ " ،،،،،،،

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एक बेटी को किसी बाप ने पैग़ाम दिया,
जिसमें ख़ुशनूदी ए रब थी अमल अंजाम दिया,
ढालकर लफ्ज़ों में एक तोहफ़ा ए इस्लाम दिया,
इस नसीहत को सदा फ़िक़्र में ज़िंदा रखना
जब तलक जान सलामत रहे परदा रखना
.
ﺍﯾﮏ ﺑﯿﭩﯽ ﮐﻮ ﮐﺴﯽ ﺑﺎﭖ ﻧﮯ ﭘﯿﻐﺎﻡ ﺭﯾﺎ،
ﺟﺴﻤﯿﮟ ﺧﻮﺷﻨﻮﺩﯼﺀِ ﺭﺏ ﺗﮭﯽ ﻋﻤﻞ ﺍﻧﺠﺎﻡ ﺩﯾﺎ،
ﮈﮬﺎﻝ ﮐﺮ ﻟﻔﻈﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺍﯾﮏ ﺗﺤﻔﮧ ﺀِ ﺍﺳﻼﻡ ﺩﯾﺎ،
ﺍﺱ ﻧﺼﯿﺤﺖ ﮐﻮ ﺳﺪﺍ ﻓﮑﺮ ﻣﯿﮟ ﺯﻧﺪﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
ﺟﺐ ﺗﻠﮏ ﺟﺎﻥ ﺳﻼﻣﺖ ﺭﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
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दिल में बेअस्ल ख़्यालात न आने देना,
फ़िक़्र की हद में ग़लत बात न आने देना,
आड़े ईमान के जज़्बात न आने देना,
इस नसीहत को सदा फ़िक़्र में ज़िंदा रखना
जब तलक जान सलामत रहे परदा रखना
.
ﺩﻝ ﻣﯿﮟ ﺑﮯ ﺍﺻﻞ ﺧﯿﺎﻻﺕ ﻧﮧ ﺁﻧﮯ ﺩﯾﻨﺎ،
ﻓﮑﺮ ﮐﯽ ﺣﺪ ﻣﯿﮟ ﻏﻠﻂ ﺑﺎﺕ ﻧﮧ ﺁﻧﮯ ﺩﯾﻨﺎ،
ﺁﮌﮮ ﺍﯾﻤﺎﻥ ﮐﮯ ﺟﺰﺑﺎﺕ ﻧﮧ ﺁﻧﮯ ﺩﯾﻨﺎ،
ﺍﺱ ﻧﺼﯿﺤﺖ ﮐﻮ ﺳﺪﺍ ﻓﮑﺮ ﻣﯿﮟ ﺯﻧﺪﮦ ﺭﮐﮭﻨ
ﺟﺐ ﺗﻠﮏ ﺟﺎﻥ ﺳﻼﻣﺖ ﺭﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
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आँच माँ बाप की इज़्ज़त पे न आने पाये,
उंगलियां तुझपे ज़माना न उठाने पाये,
हाथ से दामने इस्लाम न जाने पाये,
इस नसीहत को सदा फ़िक़्र में ज़िंदा रखना
जब तलक जान सलामत रहे परदा रखना
.
ﺁﻧﭻ ﻣﺎﮞ ﺑﺎﭖ ﮐﯽ ﻋﺰّﺕ ﭘﮧ ﻧﮧ ﺁﻧﮯ ﭘﺎﮮ،
ﺍﻧﮕﻠﯿﺎﮞ ﺗﺠﮭﭙﮯ ﺯﻣﺎﻧﮧ ﻧﮧ ﺍﭨﮭﺎﻧﮯ ﭘﺎﮮ،
ﮨﺎﺗﮫ ﺳﮯ ﺩﺍﻣﻦِ ﺍﺳﻼﻡ ﻧﮧ ﺟﺎﻧﮯ ﭘﺎﮮ،
ﺍﺱ ﻧﺼﯿﺤﺖ ﮐﻮ ﺳﺪﺍ ﻓﮑﺮ ﻣﯿﮟ ﺯﻧﺪﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
ﺟﺐ ﺗﻠﮏ ﺟﺎﻥ ﺳﻼﻣﺖ ﺭﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
.
हुस्ने किरदार सजाने की अदा है परदा,
अपनी इज़्ज़त को बढ़ाने की अदा है परदा,
एक पाकीज़ा घराने की अदा है परदा,
इस नसीहत को सदा फ़िक़्र में ज़िंदा रखना
जब तलक जान सलामत रहे परदा रखना
.
ﺣﺴﻦِ ﮐﺮﺩﺍﺭ ﺳﺠﺎﻧﮯ ﮐﯽ ﺍﺩﺍ ﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ،
ﺍﭘﻨﯽ ﻋﺰّﺕ ﮐﻮ ﺑﮍﮬﺎﻧﮯ ﮐﯽ ﺍﺩﺍ ﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ،
ﺍﯾﮏ ﭘﺎﮐﯿﺰﮦ ﮔﮭﺮﺍﻧﮯ ﮐﯽ ﺍﺩﺍ ﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ،
ﺍﺱ ﻧﺼﯿﺤﺖ ﮐﻮ ﺳﺪﺍ ﻓﮑﺮ ﻣﯿﮟ ﺯﻧﺪﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
ﺟﺐ ﺗﻠﮏ ﺟﺎﻥ ﺳﻼﻣﺖ ﺭﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
.
दौरे फ़ैशन की रवानी में न बहना बेटी,
इस नसीहत से खबरदार तू रहना बेटी,
परदा औरत के लिये होता है गहना बेटी,
इस नसीहत को सदा फ़िक़्र में ज़िंदा रखना
जब तलक जान सलामत रहे परदा रखना
.
ﺩﻭﺭِ ﻓﯿﺸﻦ ﮐﯽ ﺭﻭﺍﻧﯽ ﻣﯿﮟ ﻧﮧ ﺑﮩﻨﺎ ﺑﯿﭩﯽ،
ﺍﺱ ﻧﺼﯿﺤﺖ ﺳﮯ ﺧﺒﺮﺩﺍﺭ ﺗﻮ ﺭﮨﻨﺎ ﺑﯿﭩﯽ،
ﭘﺮﺩﮦ ﻋﻮﺭﺕ ﮐﮯ ﻟﯿﮯ ﮨﻮﺗﺎ ﮨﮯ ﮔﮩﻨﺎ ﺑﯿﭩﯽ،
ﺍﺱ ﻧﺼﯿﺤﺖ ﮐﻮ ﺳﺪﺍ ﻓﮑﺮ ﻣﯿﮟ ﺯﻧﺪﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
ﺟﺐ ﺗﻠﮏ ﺟﺎﻥ ﺳﻼﻣﺖ ﺭﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
.
ख्वाहिशें दिल में जो मचलें तो मचलने देना,
रंग बदलेगा ज़माना तू बदलने देना,
खुद को माहौले खराबी में न ढलने देना,
इस नसीहत को सदा फ़िक़्र में ज़िंदा रखना
जब तलक जान सलामत रहे परदा रखना
.
ﺧﻮﺍﮨﺸﯿﮟ ﺩﻝ ﻣﯿﮟ ﺟﻮ ﻣﭽﻠﯿﮟ ﺗﻮ ﻣﭽﻠﻨﮯ ﺩﯾﻨﺎ،
ﺭﻧﮓ ﺑﺪﻟﯿﮕﺎ ﺯﻣﺎﻧﮧ .............. ﺗﻮ ﺑﺪﻟﻨﮯ ﺩﯾﻨﺎ،
ﺧﻮﺩ ﮐﻮ ﻣﺎﺣﻮﻝِ ﺧﺮﺍﺑﯽ ﻣﯿﮟ ﻧﮧ ﮈﮬﻠﻨﮯ ﺩﯾﻨﺎ،
ﺍﺱ ﻧﺼﯿﺤﺖ ﮐﻮ ﺳﺪﺍ ﻓﮑﺮ ﻣﯿﮟ ﺯﻧﺪﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
ﺟﺐ ﺗﻠﮏ ﺟﺎﻥ ﺳﻼﻣﺖ ﺭﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
.
जाये दुनिया से तो राज़ी हो तेरा रब तुझसे,
सुर्खरू हो मेरी आगोश का मकतब तुझसे,
कोई शिकवा न करे हशर् में मज़हब तुझसे,
इस नसीहत को सदा फ़िक़्र में ज़िंदा रखना
जब तलक जान सलामत रहे परदा रखना
.
ﺟﺎﯾﮯ ﺩﻧﯿﺎ ﺳﮯ ﺗﻮ ﺭﺍﺿﯽ ﮨﻮ ﺗﯿﺮﺍ ﺭﺏ ﺗﺠﮭﺴﮯ،
ﺳﺮﺥ ﺭﻭ ﮨﻮ ﻣﯿﺮﯼ ﺁﻏﻮﺵ ﮐﺎ ﻣﮑﺘﺐ ﺗﺠﮭﺴﮯ،
ﮐﻮﺀﯼ ﺷﮑﻮﮦ ﻧﮧ ﮐﺮﮮ ﺣﺸﺮ ﻣﯿﮟ ﻣﺰﮨﺐ ﺗﺠﮭﺴﮯ،
ﺍﺱ ﻧﺼﯿﺤﺖ ﮐﻮ ﺳﺪﺍ ﻓﮑﺮ ﻣﯿﮟ ﺯﻧﺪﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
ﺟﺐ ﺗﻠﮏ ﺟﺎﻥ ﺳﻼﻣﺖ ﺭﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
.
दिल में इस्लाम की तालीम बसाये रखना,
अपनी नज़रों को सदा नीचे झुकाये रखना,
जिस्म पर परदा ए इस्मत को सजाये रखना,
इस नसीहत को सदा फ़िक़्र में ज़िंदा रखना
जब तलक जान सलामत रहे परदा रखना
.
ﺩﻝ ﻣﯿﮟ ﺍﺳﻼﻡ ﮐﯽ ﺗﻌﻠﯿﻢ ﺑﺴﺎﮮ ﺭﮐﮭﻨﺎ،
ﺍﭘﻨﯽ ﻧﻈﺮﻭﮞ ﮐﻮ ﺳﺪﺍ ﻧﯿﭽﮯ ﺟﮭﮑﺎﮮ ﺭﮐﮭﻨﺎ،
ﺟﺴﻢ ﭘﺮ ﭘﺮﺩﮦ ﺀِ ﻋﺼﻤﺖ ﮐﻮ ﺳﺠﺎﮮ ﺭﮐﮭﻨﺎ،
ﺍﺱ ﻧﺼﯿﺤﺖ ﮐﻮ ﺳﺪﺍ ﻓﮑﺮ ﻣﯿﮟ ﺯﻧﺪﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
ﺟﺐ ﺗﻠﮏ ﺟﺎﻥ ﺳﻼﻣﺖ ﺭﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
.
अपने चेहरे की नुमाईश नहीं करना बेटी,
हटके इस्लाम से ख़्वाहिश नहीं करना बेटी,
राहे ईमान में लरज़िश नहीं करना बेटी,
इस नसीहत को सदा फ़िक़्र में ज़िंदा रखना
जब तलक जान सलामत रहे परदा रखना
.
ﺍﭘﻨﮯ ﭼﮩﺮﮮ ﮐﯽ ﻧﻤﺎﯾﺶ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﻧﺎ ﺑﯿﭩﯽ،
ﮨﭩﮑﮯ ﺍﺳﻼﻡ ﺳﮯ ﺧﻮﺍﮨﺶ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﻧﺎ ﺑﯿﭩﯽ،
ﺯﺍﮦِ ﺍﯾﻤﺎﻥ ﻣﯿﮟ ﻟﺮﺯﺵ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﻧﺎ ﺑﯿﭩﯽ،
ﺍﺱ ﻧﺼﯿﺤﺖ ﮐﻮ ﺳﺪﺍ ﻓﮑﺮ ﻣﯿﮟ ﺯﻧﺪﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
ﺟﺐ ﺗﻠﮏ ﺟﺎﻥ ﺳﻼﻣﺖ ﺭﮨﮯ ﭘﺮﺩﮦ ﺭﮐﮭﻨﺎ
.
काश सब मर्द भी मिलकर ये इरादा करलें,
देखकर ग़ैर की नामूस को परदा करलें,
नज़रें पाकीज़ा रखेंगे सभी वादा करलें,
फ़िक़्र हो जाये ये हर ज़हन पे ग़ालिब"
परदा औरत पे नहीं सब पे है वाजिब""
.
ﮐﺎﺵ ﺳﺐ ﻣﺮﺩ ﺑﮭﯽ ﻣﻠﮑﺮ ﯾﮧ ﺍﺭﺍﺩﮦ ﮐﺮ ﻟﯿﮟ،
ﺩﯾﮑﮫ ﮐﺮ ﻏﯿﺮ ﮐﯽ ﻧﺎﻣﻮﺱ ﮐﻮ ﭘﺮﺩﮦ ﮐﺮ ﻟﯿﮟ،
ﻧﻈﺮﯾﮟ ﭘﺎﮐﯿﺰﮦ ﺭﮐﮭﯿﮟ ﮔﮯ ﺳﺒﮭﯽ ﻭﻋﺪﮦ ﮐﺮ ﻟﯿﮟ،
ﻓﮑﺮ ﮨﻮ ﺟﺎﮮ ﯾﮧ ﮨﺮ ﺫﮨﻦ ﭘﮧ ﻏﺎﻟﺐ "
ﭘﺮﺩﮦ ﻋﻮﺭﺕ ﭘﮧ ﻧﮩﯿﮟ ﺳﺐ ﭘﮧ ﮨﮯ ﻭﺍﺟﺐ
.
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Sunday 15 July 2018

शरिया कोर्ट क्या है??

शरिया कोर्ट क्या है??



अपनी आगामी मीटिंग में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
भारत के हर ज़िले में शरिया कोर्ट या दारुल क़ज़ा
स्थापित करने के एजेंडे पर विचार करने की बात की है।
मीडिया में यह बात आते ही एक हंगामा खड़ा हो
गया है, दक्षिणपंथी और उदारवादी दोनों ओर से
इसकी मुखालिफत की जा रही है और इसे संविधान के
विरुद्ध बताया जा रहा है, तथा बोर्ड को भारतीय
न्यायालय पर विश्वास नही करने वाला बताया जा
रहा है साथ ही इसके आड़ में मुसलमानो को देशद्रोही
और संविधान विरोधी कहा जा रहा है। अब आइये
बिंदुवार देखें कि क्या वाकई शरिया बोर्ड एक
समानांतर न्याय व्यवस्था है या जो कहा जा रहा है
वो दुर्भावना से प्रेरित है।

1. सुप्रीम कोर्ट ने कुछ साल पहले अपने एक फैसले में कहा
है कि शरिया कोर्ट समानांतर न्याय व्यवस्था नही
बल्कि एक अबाध्यकारी सुलह कराने की व्यवस्था है
जो सामुदायिक सिविल मामलों में की जाती है।

2. वर्तमान में भारतीय न्याय व्यवस्था पर लगभग 4
करोड़ केस का बोझ है जिसकी डेली सुनवाई की जाए
तो एक अनुमान के अनुसार 366 वर्ष लगेंगे। केस के हिसाब
से एक अनुमान के मुताबिक 1 लाख 30 हज़ार जज
चाहिए जबकि कुल सभी कोर्ट मिलाकर केवल 20
हज़ार रिक्तियां है, जिनमे 5 हज़ार पद रिकत हैं।
इसलिये पंचायती राज में सरपंच की व्यवस्था है ताकि
पंचायत के छोटे मामले और सिविल मामले पंचायतों में
ही निपटाकर कोर्ट से बोझ कम किया जा सके।

3. अब भारतीय कानून क्या कहता है ज़रा देखें-
सिविल प्रोसीजर एक्ट- 89 कहता है कि सिविल
मामलों में कोर्ट से बाहर सुलह सफाई की जा सकती है
और इसके लिए दोनो पार्टी के रज़ामन्दी पंचायती
की व्यवस्था की जा सकती है, और यह एक्ट इसे
प्रोत्साहित करता है कि कोर्ट से बाहर अर्टबीट्ररी
व्यवस्था हो ताकि कोर्ट में केस नही आये। इसी
कानून के मद्देनजर कॉर्पोरेट सेक्टर में बड़ी कंपनियां
अपने विवाद सुलझाती हैं, और जिसमे दुनिया के जिस
क़ानून पर सहमति बनती है उसके अनुसार अपना विवाद
सुलझा लेती हैं। जिसपर मीडिया खामोश रहता है और
उसे संविधान की याद नही आती है, क्योंकि वो
जानता है कि कानून इसकी इजाजत देता है। असल मे
यहाँ शरिया शब्द देखते ही मीडिया को विशेष
समुदाय के विरुद्ध दुर्भावना फैलाने का मौका
मिलता है, जो अक्सर प्रायोजित होता है। इसी एक्ट
के तहत कोई भी समुदाय, अपना सुलह सफाई केंद्र बना
सकता है।
.

4. इस प्रकार के कोर्ट का सबसे बड़ा फायदा यह कि
इसमें फैसले जल्दी,कम खर्च में होते हैं जो कि न्यायालय
में नही होता है। और अगर कोई पार्टी संतुष्ट नही
होती तो वो न्यायालय जा सकती है।इनके फैसले
बाध्यकारी नही होकर सही मशविरा होता है, और
आपको जानकर खुशी होगी कि 99% फैसले में पार्टी
संतुष्ट रही है| अभी भारत मे 80 शरिये कोर्ट चल रहे हैं
जिसमे अकेले इमारत शरिये बिहार 50000 फैसले दे चुका
है।इसमें ज़्यादातर महिलाएं जाती है और उनके हक में
फैसले हुए हैं। 6 शरिये कोर्ट इंग्लैंड में भी चल रहे हैं। ये
गलतफहमी दूर होना चाहिए कि शरिया कोर्ट खाप
पंचायत से अलग है क्योंकि शरिया कोर्ट में क्रिमिनल
मामले नही सुने जाते क्योंकि कानून इसकी इजाजत
नही देता। क्रिमिनल केस केवल भारतीय पैनल कोड के
तहत ही सुने जा सकते हैं।
उपरोक्त बातों से पता चलता है कि शरिया कोर्ट
एक सुलभ,त्वरित,और सस्ता सुलह सफाई केंद्र है जिसकी
इजाज़त भारतीय कानून देता है।यह गरीबों,
महिलाओं,शोषितों के लिए वरदान है। और भारतीय
कोर्ट पर से केस के बोझ को कम करने में सहायक है।

Friday 6 July 2018

Ek Interview

एक तजरबे कार उमर याफता बा वकार खातून का इंटरव्यु जिन्होने अपने शौहर के साथ पचास साल का अरसा पुर सुकुन तरीकै से हंसी खुशी गुजारा ।
.
खातुन से पूछा गया कि इस पचास साला पुर सुकुन जिन्दगी का राज़ किया है ?
क्या वो खाना बनाने मे बहुत माहिर थी ?
या उनकी खुबसुरती उस का सबब है ?
या तीन चार बच्चों का होना उस की वजह है या फिर कोई ओर बात ???

.

खातून ने जवाब दिया
पुर सुकुन शादी शुदा जिन्दगी का दारो मदार अल्लाह तबारक व तआला की तौफिक़ और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम की करम नवाज़ियों के सदके ओरत के हाथ में है ,

औरत चाहे तो अपने घर को जन्नत बना सकती है और वो चाहे तो उस के बर अक्स जहन्नम भी बना सकती है ।

इस सिलसिले मे माल व दौलत का नाम भी मत लीजिए बहुत सारी मालदार ओरतें जिन की जिन्दगी जंजाल बनी हुई है शौहर उन से भागा भागा रहता है।
खुश हाल ज़िन्दगी का सबब औलाद भी नही है बहुत सारी औरते हैं जिनके दसों बच्चे हैं फिर भी वो शौहर की मोहब्बत से महरुम हैं

 सारी ख्वातिन खाना पकाने में माहिर होती हैं दिन दिन भर खाना बनाती रहती हैं लैकिन फिर भी उन्हे फ़ैमिली की तरफ से शिकायत रहती है क्योंकि वक्त की किल्लत के चलते वो अपनों को मुकम्मल वक्त नही दे पातीं ।


इंटरव्यु लेने वाली खातून को बहुत हैरत हुई ,उस ने पूछा फिर आखिर इस खुशहाल जिन्दगी का राज़ क्या है ???

बूढ़ी खातून ने जवाब दिया : जब कभी मेरा शौहर इन्तहाई गुस्से में होता है तो में खामोशी का सहारा ले लेती हूं
लेकिन उस खामोशी में भी अहतराम शामिल होता है ।

एेसे मौके पर बाअज़ खातून खामोश तो हो जाती हैं लेकिन उस में तमस्खुर शामिल होता है इस से बचना चाहिये,

समझदार आदमी उसे फोरन भांप लेता है।

स्टोरी कवर करने वाली खातून ने पूछा : ऐसे मोके पर आप कमरे से निकल क्यों नही जातीं ?

बुढी खातून ने जवाब दिया : नहीं, ऐसा करने से शोहर को ये लगेगा कि आप उस से भाग रही हैं ,
 आप उसे सुन ना भी नही चाहती हैं ऐसे मोके़ पर बहुत सन्जीदा या नदामती तरीके पर खामोश रहना चाहिये और जब तक वो पुर सुकुन ना हो जाऐ. उसकी किसी बात की मुखालफत नही करना चाहिये 


जब शोहर किसी हद तक पुर सुकुन हो जाता है तो मैं कहती हुं: पूरी हो गई आप की बात?

फिर मैं कमरे से चली जाती हूं क्युं की शोहर बोल बोल कर थक चुका होता है ओर चीखने चिल्लाने के बाद अब उसे थोडे आराम की जरूरत होती है ।

मै कमरे से निकल कर अपने माअमूल के कामों में मसरूफ हो जाती हूं।

खातून सहाफी ने पूछा :उस के बाद आप क्या करती हैं?

क्या आप बातचीत बंद करने का असलूब अपनाती है?
एक आधा हफ्ते तक बोल चाल नहीं करती हैं ?

बूढी खातून ने जवाब दिया :नहीं इस बुरी आदत से हमेशा बचना चाहिए ये दो धारी हथियार है जब आप एक हफ्ते तक शोहर से बातचीत नहीं करेंगी ऐसे वक़्त में जब की उसे आप के साथ मुसालिहत (सुलह) की ज़रूरत है तो वो इस कैफियत का आदि हो जायेगा और फिर ये चीज़ बढ़ते बढ़ते खतरनाक किस्म की नफरत की शक्ल इख़्तेयार कर लेगी .




सहाफी ने पुछा :फिर आप क्या करती हैं?

बूढी खातून बोलीं :मैं दो तीन घंटे बाद शोहर के पास एक ग्लास शरबत या एक कप चाय या कॉफी ले कर जाती हूँ और मुहब्ब्त भरे अंदाज़ में कहती हूँ :पी लीजिये ।

हक़ीक़त मे शोहर को इसी की ज़रूरत होती है पर वो थोड़ी नाराज़गी पर नरम लहज़े में कहता है नहीं पीना,
फिर मैं अदब और मुहब्बत के साथ कहती हूं प्लीज़ पी लीजिये
फिर नार्मल और नरम लहज़े में बात करने लगती हूँ कुछ ही लम्हे में वो पूछता है क्या मै उस से नाराज़ हूँ ?

में कहती हूँ ..नहीं :उस के बाद वो अपनी सख्त कलामी पर माज़रत (सॉरी )ज़ाहिर करता है और खूबसूरत किस्म की बातें करने लगता है .

इंटरवयु लेने वाली खातून ने पुछा :और आप उस की ये बाते मान लेती हैं ?

बूढी खातून बोलीं: बिलकुल, मुझे अपने आप पर पूरा भरोसा होता है ।

मेरा शोहर जब गुस्से में हो तो में उस की हर बात का यकीन कर लूं ।

खातून सहाफी ने पूछा :और आप की ईज्जते नफ्स ?(self respect)


बुढी खातून बोलीं :पहली बात तो ये कि मेरी ईज्जते नफ्स सेल्फ रिसपेक्ट उसी वक्त है जब मैरा शोहर मुझ से राज़ी हो और हमारी शादी शुदा ज़िन्दगी पुर सुकून हो,


दूसरी बात ये कि मैं इतनी पागल या बेवफा नहीं कि उस के गुस्सा आ जाने वाले वक़्त पर उसके तमाम मोहब्बत भरे पलो को ,और उसकी सारी कुरबानिया जो मेरे लिए और मेरे बच्चौ के लिये दी होती है वो भूल जाउं ,

वो सख्त तेज़ धूप मे काम पर जाना
वो शिद्दत की सरदी की सर्द शबों(ठंडी रातों) में गरम बिस्तर छोड़ कर काम के लिये बाहर जाना
वो तेज़ बारिशों में भीगते हुए आना
हर वक़्त घर की बेहतरी के लिये उसका फिक्र मन्द रहना !

तीसरी और लास्ट बात समझने की ये की शोहर बीवी के दरमियान इज़्ज़ते नफ़्स नाम की कोई चीज़ नहीं होती
जब बीवी खुद अपने आप को और अपनी हर चीज़ को अपनी इज़्ज़त को अपने शोहर को सौंप देती है तो फिर उस इज़्ज़त के सामने इज़्ज़ते नफ़्स ज॔र्रा बराबर भी नही ।।

Monday 28 May 2018

Music Is ''Haraam''


ﻣﻮﺳﯿﻘﯽ ﮐﯽ ﺁﻭﺍﺯ ﺳﮯ ﺑﭽﻨﺎ ﻭﺍﺟﺐ ﮨﮯ

.

ﺣﻀﺮﺕ ﺳﯿﺪﻧﺎ ﻋﻼﻣﮧ ﺷﺎﻣﯽ ﺭﺣﻤﺘﮧ ﺍﷲ ﻋﻠﯿﮧ ﻓﺮﻣﺎﺗﮯ ﮨﯿﮟ ‏( ﻟﭽﮑﮯ ﺗﻮﮌﮮ
ﮐﮯ ﺳﺎﺗﮫ ‏) ﻧﺎﭼﻨﺎ، ﻣﺬﺍﻕ ﺍﮌﺍﻧﺎ، ﺗﺎﻟﯽ ﺑﺠﺎﻧﺎ، ﺳﺘﺎﺭ ﮐﮯ ﺗﺎﺭ ﺑﺠﺎﻧﺎ، ﺑﺮﺑﻂ،
ﺳﺎﺭﻧﮕﯽ، ﺑﺎﻧﺴﺮﯼ، ﻗﺎﻧﻮﻥ، ﺟﮭﺎﻧﺠﻦ، ﺑﮕﻞ ﺑﺠﺎﻧﺎ ﻣﮑﺮﻭﮦ ﺗﺤﺮﯾﻤﯽ ‏( ﯾﻌﻨﯽ
ﻗﺮﯾﺐ ﺑﮧ ﺣﺮﺍﻡ ‏) ﮨﮯ ﮐﯿﻮﻧﮑﮧ ﯾﮧ ﺳﺐ ﮐﻔﺎﺭ ﮐﮯ ﺷﻌﺎﺭ ﮨﯿﮟ۔ ﻧﯿﺰ ﺑﺎﻧﺴﺮﯼ
ﺍﻭﺭ ﺩﯾﮕﺮ ﺳﺎﺯﻭﮞ ﮐﺎ ﺳﻨﻨﺎ ﺑﮭﯽ ﺣﺮﺍﻡ ﮨﮯ ﺍﮔﺮ ﺍﭼﺎﻧﮏ ﺳﻦ ﻟﯿﺎ ﺗﻮ ﻣﻌﺬﻭﺭ
ﮨﮯ ﺍﻭﺭ ﺍﺱ ﭘﺮ ﻭﺍﺟﺐ ﮨﮯ ﮐﮧ ﻧﮧ ﺳﻨﻨﮯ ﮐﯽ ﮐﻮﺷﺶ ﮐﺮﮮ ‏( ﺭﺩﺍﻟﻤﺤﺘﺎﺭ،
ﺟﻠﺪ 9، ﺹ 651 ‏)
ﺍﺱ ﺳﮯ ﻣﻌﻠﻮﻡ ﮨﻮﺍ ﮐﮧ ﺟﻮﮞ ﮨﯽ ﻣﻮﺳﯿﻘﯽ ﮐﯽ ﺁﻭﺍﺯ ﺁﺋﮯ ﺗﻮ ﻣﻤﮑﻨﮧ
ﺻﻮﺭﺕ ﻣﯿﮟ ﻓﻮﺭﺍ ﮐﺎﻧﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﺍﻧﮕﻠﯿﺎﮞ ﮈﺍﻝ ﮐﺮ ﻭﮨﺎﮞ ﺳﮯ ﮨﭧ ﺟﺎﻧﺎ ﭼﺎﮨﺌﮯ۔
ﺍﮔﺮ ﺍﻧﮕﻠﯿﺎﮞ ﺗﻮ ﮐﺎﻧﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﮈﺍﻝ ﺩﯾﮟ، ﻣﮕﺮ ﻭﮨﯿﮟ ﮐﮭﮍﮮ ﯾﺎ ﺑﯿﭩﮭﮯ ﺭﮨﮯ،
ﯾﺎ ﻣﻌﻤﻮﻟﯽ ﺳﺎ ﭘﺮﮮ ﮨﭧ ﮔﺌﮯ ﺗﻮ ﻣﻮﺳﯿﻘﯽ ﮐﯽ ﺁﻭﺍﺯ ﺳﮯ ﺑﭻ ﻧﮧ ﺳﮑﯿﮟ
ﮔﮯ۔ ﺍﻧﮕﻠﯿﺎﮞ ﮐﺎﻧﻮﮞ ﻣﯿﮟ ﮈﺍﻝ ﮐﺮ ﻧﮧ ﺳﮩﯽ ﻣﮕﺮ ﮐﺴﯽ ﻃﺮﺡ ﺑﮭﯽ
ﻣﻮﺳﯿﻘﯽ ﮐﯽ ﺁﻭﺍﺯ ﺳﮯ ﺑﭽﻨﮯ ﮐﯽ ﺑﮭﺮﭘﻮﺭ ﮐﻮﺷﺶ ﮐﺮﻧﺎ ﻭﺍﺟﺐ ﮨﮯ۔ ﺍﮔﺮ
ﮐﻮﺷﺶ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﯾﮟ ﮔﮯ ﺗﻮ ﺗﺮﮎ ﻭﺍﺟﺐ ﮐﺎ ﮔﻨﺎﮦ ﮨﻮﮔﺎ۔
ﻣﮕﺮ ﺍﻓﺴﻮﺱ ﺻﺪ ﮐﺮﻭﮌ ﺍﻓﺴﻮﺱ ! ﺍﺏ ﺗﻮ ﺳﯿﺎﺭﻭﮞ، ﻃﯿﺎﺭﻭﮞ، ﻣﮑﺎﻧﻮﮞ،
ﺩﮐﺎﻧﻮﮞ، ﮨﻮﭨﻠﻮﮞ، ﭼﻮﺭﺍﮨﻮﮞ ﺍﻭﺭ ﮔﻠﯿﻮﮞ، ﺑﺎﺯﺍﺭﻭﮞ ﻣﯿﮟ ﺟﺲ ﻃﺮﻑ ﺑﮭﯽ
ﺟﺎﯾﺌﮯ ﻣﻮﺳﯿﻘﯽ ﮐﯽ ﺩﮬﻨﯿﮟ ﺳﻨﺎﺋﯽ ﺩﯾﺘﯽ ﮨﯿﮟ۔ ﮔﺎﻧﮯ ﺟﺎﺭﯼ ﮨﻮﻧﮯ ﮐﯽ
ﺻﻮﺭﺕ ﻣﯿﮟ ﮨﻮﭨﻞ ﻣﯿﮟ ﮐﮭﺎﻧﮯ ﭘﯿﻨﮯ ﮐﯽ ﺗﺮﮐﯿﺐ ﻧﮩﯿﮟ ﮐﺮﻧﯽ ﭼﺎﮨﺌﮯ۔

ज़कात के आसान मसाइल

*ज़कात के आसान मसाइल*

.
.
.
*सवाल- जकात के लुगवी मानी क्या हैं ?*
जवाब- पाकी, बडोतरी
.
*सवाल- जकात की शरई तारीफ.?*
जवाब- मखसूस माल का मखसूस शराइत के साथ. किसी
जकात के मुस्तहिक को मालिक बनाना
.
*सवाल-कितना सोना हो तो जकात फर्ज होती है?
*
जवाब- साढे सात तोला या उस से ज्यादा
.
*सवाल-कितनी चांदी हो तो जकात फर्ज होती
है ?*
जवाब- साढ़े बावन तोले या उससे अधिक
.
*सवाल - कितने रुपिये हो तो जकात फर्ज होती है *
जवाब- हाजते असलिया के इलावा साढ़े बावन तोले
चांदी की कीमत हो तो जकात फर्ज होती है
.
*सवाल- हाजते असलिया के इलावा. कुछ सोना. कुछ
चांदी. कुछ नगद हो. और सबको मिलाने पर चांदी का
निसाब पूरा हो तो क्या जकात फर्ज होगी ? *
जवाब- जी हां
.
*सवाल - क्या चरने वाले जानवरों की जकात फर्ज
है ? *
जवाब - जी हां
.
*सवाल - क्या उशरी (बागायत) जमीन की पैदावार
पर भी जकात है ?*
जवाब - जी हां
.
*सवाल - किसी साहिबे निसाब को दर्मियानी
साल 35000 की आमदनी हुई तो क्या ये रकम भी माले
निसाब मे शामिल होगी ?*
जवाब - जी हां
.
*सवाल - इस्तिमाल वाले जेवरात पर जकात है या
नही ? *
जवाब - जी हां है
.
*सवाल - जकात अंग्रेजी महीने के हिसाब से
निकाली जाये या कमरी (उर्दू)? *
जवाब - कमरी (उर्दू) महीने के हिसाब से
.
*सवाल - बेचने की निय्यत से करीदे गये प्लॉट पर
जकात वाजिब होगी ? *
जवाब - जि हां वाजिब होगी
.
*सवाल - प्लॉट खरीदते वक्त बेचने की निय्यत न थी.
बाद मे बेचने का इरादा हुवा तो उस पर जकात
वाजिब होगी या नही ? *
जवाब - जब बिक जाये तो वाजिब होगी
.
*सवाल - जो प्लॉट मकान बनाने के लिये खरीदा
गया हो उस पर जकात है या नही ? *
जवाब - जी नहीं
.
*सवाल जो मकान किराया पर दिया उसकी जकात
का क्या हुक्म है ? *
जवाब - उसका किराया निसाब को पहूंचे तो उसकी
जकात वाजिब होगी
.
*सवाल - किसी को बताये बगैर उसे जकात दें तो
जकात अदा होगी या नही ? *
जवाब - अदा हो जायेगी
.
*सवाल- मुलाज़िम ने इजाफी तनखॉह मांगी.
मालिक ने जकात की निय्यत से इजाफा किया तो
क्या मालिक की जकात अदा होगी ? *
जवाब - जकात अदा न होगी
.
*सवाल - इनकम टॅक्स देने से जकात अदा होगी ? *
जवाब - जी नहीं
.
*सवाल - क्या अपने मां बाप, बेटा बेटी को या
शोहर बीवी एक दुसरे को जकात दे सकते हैं ? *
जकात - जी नहीं
.
*सवाल - साहीबे निसाब को जकात देने से जकात
अदा होगी ? *
जवाब - नहीं
.
*सवाल - भाई बहन चचा भतीजे मामू भांजे खाला
को जकात देना कैसा ? *
जवाब - जाईज व बेहतर
.
*सवाल - किसको जकात नही दे सकते? *
जवाब - हुजूर अलैहिस्सलाम के खानदान (हाशमी
हजरात) को जकात नही दे सकते. इसी तरह जो हजरते
अली, हजरते अक़ील, हजरते जाफर, हजरते अब्बास और
हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब की नस्ल से हो उसे जकात
नही दे सकते
.
*सवाल - अगर सय्यद (बज़ाहिर) गरीब और जरूरतमंद हो
तो उनकी खिदमत कैसे करें? *
जवाब - तोहफे और हदिया के जरीये (सय्यदों को
जकात सदका न दें. और कोई सय्यद हरग़िज जकात सदका
न लें)
.
*सवाल - सय्यदों को जकात क्यों नही दी जाती? *
जवाब - वो आली नसब हैं और जकात माल का मैल
होता है
.
*सवाल - मालदार बीवी का शोहर दूसरे से जकात ले
सकता है या नही? *
जवाब - ले सकता है
.
*सवाल - गैर मुस्लिम को जकात दे सकते हैं? *
जवाब - नही
.
*सवाल - दीनी मदरसों मे जकात देना जाइज है या
नही? *
जवाब - जाइज व बेहतर है
.
*सवाल - साहिबे निसाब लोग खुद को मोहताज
जाहिर करके जकात वसुलते हैं उन पर क्या हुक्म है ? *
जवाब - उनको जकात लेना हराम है
.
*सवाल- बारिश के पानी से सैराब जमीन की
पैदावार पर कितना हिस्सा अल्लाह की राह मे देना
वाजिब है ? इसी तरह खूद सैराब की हुई जमीन की
पैदावार पर कितना कितना हिस्सा वाजिब है ? *
जवाब - बारिश के पानी की पैदावार पर दसवां
हिस्सा.यानी दस पर एक किलो
और खुद सैराब की गई जमीन की पैदावार पर बीसवां
हिस्सा यानी बिस किलो पर एक किलो
.
सवाल* इसी पैदावार के पैसे की ज़कात भी देनी
पड़ेगी
जवाब*नहीं फिर ज़कात देनी की ज़रुरत नहीं
.
*सवाल - हाजते असलिया किसे कहते हैं.? *
जवाब - रिहाइशी मकान, पहनने के कपडे, घर का जरूरी
सामान, खाने पीने की अशिया, सवारी, आलिम
की किताब

Wednesday 25 April 2018

*अल्लाह नाराज हो तो क्या होता है?*

*अल्लाह नाराज हो तो क्या होता है?*

.
.
.
बहुत सोचने और डरने वाली बाते, देखे कही हम तो
इनमे शामिल नही-: महसूस और ना महसूस होने
वाली सजाए
किसी तालिब इल्म ने अपने उस्ताद से कहा- हम
कितने गुनाह करते है ना और अल्लाह हमे सजा
नही देता !
उस्ताद मोहतरम ने फौरन जवाब दिया -> ये भी
सजा है के अल्लाह हमे सजाए देता है और हमे महसूस
नही होता !
●तुम्हारी दिल की सख्ती और आंसू का खुश्क
हो जाना
क्या इस बात की गवाही नही के अल्लाह
तआला तुम से नाराज है? ?
●नेक सालेह आमाल की तरफ कदम बढाने मे
काहिली
क्या इस बात की गवाही नही है कि अल्लाह
तआला तुमसे नाराज है? ?
● तुम्हे कुरान करीम की तिलावत छोडे जो हफ्ते
और महीने बीत जाते है क्या इस बात की
गवाही नही के अल्लाह तुमसे नाराज है? ?
● कितनी बार ये आयात तुम्हारी नजरो से
गुजरने के बाद भी तुम अंजान बने रहते हो? ?
" अगर ये कुरान हम किसी पहाड पर नाजिल
फरमाते तो वो अल्लाह के खौफ से रेजा रेजा
हो जाता" कितनी तवील राते तुम्हारी
जिंदगी मे गुजरती रही लेकिन कयामुल्लैल की
नवाफिल से महरूम रहना क्या इस बात की
गवाही नही के अल्लाह तआला तुमसे नाराज
है? ?
● कितने खैर व बरकत के मौके तुम्हारी जिंदगी मे
आए
{रमजान, ईद, जुल हज्ज} तुम्हारे गफलत और गुनाहो
के दलदल मे गर्क रहना क्या इस बात की गवाही
नही है कि अल्लाह तआला तुमसे नाराज है??
● जिंदगी मे तालीम व तफसीर कुरान सिखने के
बेहतरीन मौके आए लेकिन उसे नजरअंदाज करके, तुम
दुनियावी लज्जतो मे खोये रहे क्या ये इस बात
की गवाही नही है कि अल्लाह तआला तुमसे
नाराज है??
● क्या इससे भी बडी कोई सजा हो सकती है?
●नेक अमल तुम्हे बोझ जैसा क्यू महसूस होता है?
●अल्लाह तआला का जिक्र करते हुए जुबान क्यू
लडखडाने लगती है?
● अपनी शैतानी नफ्सीयात के सामने तुम
कमजोर क्यू हो पड हो?
● दुनियावी चकाचौंध रोशनीयो को देखकर
तुम्हारा दिल क्यू तडपने लगता है?
● क्या तुम दुनिया, पेसे और इज्जत व शोहरत के
गुरूर मे मुब्तिला नही हो?
● भला इससे बड के कोई सजा हो सकती है?
● अल्लाह तआला ने तुम्हे अपनी गलतीया
भुलाकर दुसरो की ऐब जोई, झूठी और बोहतान
तराशी मे मशरूफ कर दिया।
● आखिरत भुलाकर तुम्हारी सबसे बडी तमन्ना
दुनिया और उसे हासिल करना बना दिया।
● क्या ये भी सजा की एक शक्ल नही है?
● बेटा, अल्लाह से डरो !
● अल्लाह तआला की तरफ से सबसे छोटी सजा
माल औलाद और सेहत मे होती है। लेकिन सबसे
बडी सजा गैर महसूस होती है?
● उसे सिर्फ मोमिन ही अपने दिल के हाल
तब्दील होने पर पहचानता है।
*●अल्लाह से मगफिरत और आफियत तलब करो।
अल्लाह तआला मुझे आप लोगो को तौबा करने
की तौफीक अता फरमाए आमीन*




मुज़म्मिल तजम्मुल हुसैन घौरी साहब
की वाल से