Thursday 9 June 2016

नामे मुस्तफ़ा, तौरैत और यहूदी

>> नामे मुस्तफ़ा, तौरैत और यहूदी <<



- यहूदी तौरात पढ़ रहा था । उसने तौरात में एक सफा पर हुज़ूर
सल्लललाहु अलैही वसल्लम का नामे अक़दस लिखा देखा ।
यहूदी ने जलन की वजह से उस नाम को खुरच डाला ।
दूसरे रोज़ तौरात खोली तो उसी सफा पर नामे अक़दस को चार
जगह लिखा देखा ।
गुस्से में आकर उसने उस नामे पाक को भी खुरच डाला ।
तीसरे रोज़ उसने देखा कि उसी सफा पर आठ जगह आक़ा ए करीम का नाम लिखा हुआ है ।
उसने फिर यह पाक नाम सब जगह से खुरच दिया । चौथे रोज़ उसने नामे पाक को
बारह जगह लिखा हुआ देखा ।
अब उसकी हालत बदली । उस नामे पाक की
दिल में मोहब्बत पैदा हो गयी । उस नाम वाले महबूब हज़रत मुहम्मद
मुस्तफा सल्लललाहु अलैही वसल्लम की ज़ियारत के लिए
मुल्के शाम से मदीना मुनव्वरा के लिए रवाना हुआ ।
इत्तेफ़ाक़ देखिये कि यह हुज़ूर की ज़ियारत के लिये रवाना हुआ मगर
इधर आक़ा ए करीम का विसाल हो चुका था । जब यह
मदीना मुनव्वरा पहुँचा तो उसकी हज़रत अली
रज़ियल्लाहो अन्हु से मुलाक़ात हुई ।
जब यहूदी को हज़रत अली से हुज़ूर के विसाल का इल्म
हुआ तो यह सख़्त बेचैन हुआ । हज़रत अली से कहने लगा कि मुझे
हुज़ूर के बदन अक़दस का कोई कपड़ा दिखाइये ।
हज़रत अली ने आक़ा ए करीम के बदने मुबारक का एक
कपड़ा उसे दे दिया । उस यहूदी ने पहले उसे सूंघा फिर आक़ा ए
करीम सल्लललाहु अलैही वसल्लम के रौज़ा ए अनवर पर
आकर कलमा पढ़ा और मुसलमान होकर दुआ माँगी कि
इलाही ! अगर तूने मेरा इस्लाम क़ुबूल कर लिया है तो मुझे अपने
महबूब के पास बुला ले । इतना कहा और आक़ा ए करीम के रौज़े के
सामने ही इंतक़ाल कर गया ।
हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे ग़ुस्ल दिया और जन्नतुल
बक़ी में उसे दफनाया ।


सुबहानअल्लाह

( नुज़हतुल मजालिस / ज़िल्द - 2 / सफ़ा - 144 )


# सबक़ :- हुज़ूर सल्लललाहु अलैही वसल्लम का नामे मुबारक न मिट सकता है और न मिटेगा । मिटने वाले मिट गये और मिट जायेंगे पर नामे अक़दस को
वही क़रार और बहार है जो पहले थी ।


बारी तआला हम सब को आक़ा ए करीम सल्लललाहु
अलैही वसल्लम से बेपनाह मोहब्बत करने की
तौफ़ीक़ अता फ़रमाये ।

# आमीन_या_रब्बुल_आलामीन


#copied_MαℓαK ...

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