Thursday 25 February 2016

Kanzul Iman in Hindi SURAH AL-FURQAAN


25 सूरए फ़ुरक़ान

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ 
تَبَارَكَ ٱلَّذِى نَزَّلَ ٱلْفُرْقَانَ عَلَىٰ عَبْدِهِۦ لِيَكُونَ لِلْعَٰلَمِينَ نَذِيرًا
ٱلَّذِى لَهُۥ مُلْكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ وَلَمْ يَتَّخِذْ وَلَدًۭا وَلَمْ يَكُن لَّهُۥ شَرِيكٌۭ فِى ٱلْمُلْكِ وَخَلَقَ كُلَّ شَىْءٍۢ فَقَدَّرَهُۥ تَقْدِيرًۭا
وَٱتَّخَذُوا۟ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةًۭ لَّا يَخْلُقُونَ شَيْـًۭٔا وَهُمْ يُخْلَقُونَ وَلَا يَمْلِكُونَ لِأَنفُسِهِمْ ضَرًّۭا وَلَا نَفْعًۭا وَلَا يَمْلِكُونَ مَوْتًۭا وَلَا حَيَوٰةًۭ وَلَا نُشُورًۭا
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓا۟ إِنْ هَٰذَآ إِلَّآ إِفْكٌ ٱفْتَرَىٰهُ وَأَعَانَهُۥ عَلَيْهِ قَوْمٌ ءَاخَرُونَ ۖ فَقَدْ جَآءُو ظُلْمًۭا وَزُورًۭا
وَقَالُوٓا۟ أَسَٰطِيرُ ٱلْأَوَّلِينَ ٱكْتَتَبَهَا فَهِىَ تُمْلَىٰ عَلَيْهِ بُكْرَةًۭ وَأَصِيلًۭا
قُلْ أَنزَلَهُ ٱلَّذِى يَعْلَمُ ٱلسِّرَّ فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ إِنَّهُۥ كَانَ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا
وَقَالُوا۟ مَالِ هَٰذَا ٱلرَّسُولِ يَأْكُلُ ٱلطَّعَامَ وَيَمْشِى فِى ٱلْأَسْوَاقِ ۙ لَوْلَآ أُنزِلَ إِلَيْهِ مَلَكٌۭ فَيَكُونَ مَعَهُۥ نَذِيرًا
أَوْ يُلْقَىٰٓ إِلَيْهِ كَنزٌ أَوْ تَكُونُ لَهُۥ جَنَّةٌۭ يَأْكُلُ مِنْهَا ۚ وَقَالَ ٱلظَّٰلِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلًۭا مَّسْحُورًا
ٱنظُرْ كَيْفَ ضَرَبُوا۟ لَكَ ٱلْأَمْثَٰلَ فَضَلُّوا۟ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ سَبِيلًۭا


सूरए फ़ुरक़ान मक्का में उतरी, इसमें 77 आयतें, 6 रूकू हैं

पहला रूकू

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए फ़ुरक़ान मक्के में उतरी. इसमें 6 रूकू, 77 आयतें, 812 कलिमे और 3703 अक्षर है.
बड़ी बरकत वाला है वह जिसने उतारा क़ुरआन अपने बन्दे पर(2)
(2) यानी सैयदे आलम मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर.
जो सारे जगत को डर सुनाने वाला हो(3){1}
(3) इसमें हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की रिसालत के सार्वजनिक होने पर बयान है कि आप सारी सृष्टि की तरफ़ रसूल बनाकर भेजे गए, जिन्न हों या इन्सान, फ़रिश्ते हों या दूसरी मख़लूक़, सब आपके उम्मती हैं क्योंकि आलम मासिवल्लाह को कहते हैं और उसमें ये सब दाख़िल हैं. फ़रिश्तों को इससे अलग करना, जैसा कि जलालैन में शैख़ महल्ली से और कबीर में इमाम राज़ी से और शअबलि ईमान में बेहक़ी से सादिर हुआ, बे-दलील है. और इजमाअ का दावा साबित नहीं. चुनांचे इमाम सुबकी और बाज़री और इब्ने हज़म और सियूती ने इसका तअक्क़ुब किया और खुद इमाम राज़ी को तसलीम है कि आलम अल्लाह को छोडकर सब को कहते हैं. तो वह सारी सृष्टि को शामिल है, फ़रिश्तों को इससे अलग करने पर कोई दलील नहीं. इसके अलावा मुस्लिम शरीफ़ की हदीस में है – उर्सिल्तु इलल ख़ल्क़े काफ्फ़तन, यारी मैं सारी सृष्टि की तरफ़ रसूल बनाकर भेजा गया. अल्लामा अली क़ारी ने मिर्क़ात में इसकी शरह में फ़रमाया, यानी तमाम मौजूदात की तरफ़, जिन्न हों या इन्सान, फ़रिश्ते हों या जानवर या पेड़ पौदे या पत्थर. इस मसअले की पूरी व्याख्या तफ़सील के साथ इमाम क़ुस्तलानी की मवाहिबुल लदुनियह में है.
वह जिसके लिये है आसमानों और ज़मीन की बादशाहत और उसने न इख़्तियार फ़रमाया बच्चा(4)
(4) इसमें यहूद और ईसाइयों का रद है जो हज़रत उज़ैर और मसीह अलैहुमस्सलाम को ख़ुदा का बेटा कहते हैं.
और उसकी सल्तनत में कोई साझी नहीं(5)
(5) इसमें बुत परस्तों का रद है जो बुतों को ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं.
उसने हर चीज़ पैदा करके ठीक अन्दाज़े पर रखी{2} और लोगों ने उसके सिवा और ख़ुदा ठहरा लिये(6)
(6) यानी बुत परस्तों ने बुतों को ख़ुदा ठहराया जो ऐसे आजिज़ और बेक़ुदरत है.
कि वो कुछ नहीं बनाते और ख़ुद पैदा किये गए हैं और ख़ुद अपनी जानों के भले बुरे के मालिक नहीं और न मरने का इख़्तियार न जीने का न उठने का{3} और काफ़िर बोले(7)
(7) यानी नज़र बिन हारिस और उसके साथी क़ुरआन की निस्बत, कि..
यह तो नहीं मगर एक बोहतान जो उन्होंने बना लिया है(8)
(8) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने.
और इसपर और लोगों ने(9)
(9) और लोगों से नज़र बिन हारिस की मुराद यहूदी थे और अदास व यसार वग़ैरह एहले किताब.
उन्हें मदद दी है, बेशक वो(10)
(10) नज़र बिन हारिस वग़ैरह मुश्रिक, जो यह बेहूदा बात कहने वाले थे.
ज़ुल्म और झूट पर आए{4} और बोले(11)
(11) वही मुश्रिक लोग क़ुरआन शरीफ़ की निस्बत, कि यह रूस्तम और स्फ़न्दयार वग़ैरह के क़िस्सों की तरह.
अगलों की कहानियां हैं जो उन्होंने(12)
(12) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने.
लिख ली हैं तो वो उनपर सुब्ह शाम पढ़ी जाती हैं{5} तुम फ़रमाओ इसे तो उसने उतारा है जो आसमानों और ज़मीन की हर छुपी बात जानता है(13)
(13) यानी क़ुरआन शरीफ़ अज्ञात यानी ग़ैब की उलूम पर आधारित हे. यह साफ़ दलील है इसकी कि वह अल्लाह की तरफ़ से है जो सारे ग़ैब जानता है.
बेशक वह बख़्शने वाला मेहरबान है(14){6}
(14) इसीलिये काफ़िरों को मोहलत देता है और अज़ाब में जल्दी नहीं फ़रमाता.
और बोले(15)
(15) क़ुरैश के काफ़िर.
इस रसूल को क्या हुआ खाना खाता है और बाज़ार में चलता है, (16)
(16) इससे उनकी मुराद यह थी कि आप नबी होते तो न खाते न बाज़ारों में चलते और यह भी न होता तो..
क्यों न उतारा गया उनके साथ कोई फ़रिश्ता कि उनके साथ डर सुनाता(17){7}
(17) और उनकी तस्दीक़ करता और उनकी नबुव्वत की गवाही देता.
या ग़ैब से उन्हें कोई ख़ज़ाना मिल जाता या उनका कोई बाग़ होता जिसमें से खाते,  (18)
(18) मालदारों की तरह.
और ज़ालिम बोले  (19)
(19) मुसलमानों से.
तुम तो पैरवी नहीं करते मगर एक ऐसे मर्द की जिसपर जादू हुआ(20){8}
(20) और मआज़ल्लाह, उसकी अक़्ल जगह पर न रही, ऐसी तरह तरह की बेहूदा बातें उन्हों ने बकीं.
ऐ मेहबूब देखो कैसी कहावतें तुम्हारे लिये बना रहे हैं, तो गुमराह हुए कि अब कोई राह नहीं पाते{9} 




25 सूरए फ़ुरक़ान – दूसरा रूकू

تَبَارَكَ ٱلَّذِىٓ إِن شَآءَ جَعَلَ لَكَ خَيْرًۭا مِّن ذَٰلِكَ جَنَّٰتٍۢ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَٰرُ وَيَجْعَل لَّكَ قُصُورًۢا
بَلْ كَذَّبُوا۟ بِٱلسَّاعَةِ ۖ وَأَعْتَدْنَا لِمَن كَذَّبَ بِٱلسَّاعَةِ سَعِيرًا
إِذَا رَأَتْهُم مِّن مَّكَانٍۭ بَعِيدٍۢ سَمِعُوا۟ لَهَا تَغَيُّظًۭا وَزَفِيرًۭا
وَإِذَآ أُلْقُوا۟ مِنْهَا مَكَانًۭا ضَيِّقًۭا مُّقَرَّنِينَ دَعَوْا۟ هُنَالِكَ ثُبُورًۭا
لَّا تَدْعُوا۟ ٱلْيَوْمَ ثُبُورًۭا وَٰحِدًۭا وَٱدْعُوا۟ ثُبُورًۭا كَثِيرًۭا
قُلْ أَذَٰلِكَ خَيْرٌ أَمْ جَنَّةُ ٱلْخُلْدِ ٱلَّتِى وُعِدَ ٱلْمُتَّقُونَ ۚ كَانَتْ لَهُمْ جَزَآءًۭ وَمَصِيرًۭا
لَّهُمْ فِيهَا مَا يَشَآءُونَ خَٰلِدِينَ ۚ كَانَ عَلَىٰ رَبِّكَ وَعْدًۭا مَّسْـُٔولًۭا
وَيَوْمَ يَحْشُرُهُمْ وَمَا يَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ فَيَقُولُ ءَأَنتُمْ أَضْلَلْتُمْ عِبَادِى هَٰٓؤُلَآءِ أَمْ هُمْ ضَلُّوا۟ ٱلسَّبِيلَ
قَالُوا۟ سُبْحَٰنَكَ مَا كَانَ يَنۢبَغِى لَنَآ أَن نَّتَّخِذَ مِن دُونِكَ مِنْ أَوْلِيَآءَ وَلَٰكِن مَّتَّعْتَهُمْ وَءَابَآءَهُمْ حَتَّىٰ نَسُوا۟ ٱلذِّكْرَ وَكَانُوا۟ قَوْمًۢا بُورًۭا
فَقَدْ كَذَّبُوكُم بِمَا تَقُولُونَ فَمَا تَسْتَطِيعُونَ صَرْفًۭا وَلَا نَصْرًۭا ۚ وَمَن يَظْلِم مِّنكُمْ نُذِقْهُ عَذَابًۭا كَبِيرًۭا
وَمَآ أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِنَ ٱلْمُرْسَلِينَ إِلَّآ إِنَّهُمْ لَيَأْكُلُونَ ٱلطَّعَامَ وَيَمْشُونَ فِى ٱلْأَسْوَاقِ ۗ وَجَعَلْنَا بَعْضَكُمْ لِبَعْضٍۢ فِتْنَةً أَتَصْبِرُونَ ۗ وَكَانَ رَبُّكَ بَصِيرًۭا


बड़ी बरकत वाला है वह कि अगर चाहे तो तुम्हारे लिये बहुत बेहतर उससे कर दे(1)
(1) यानी शीघ्र आपको उस ख़ज़ाने और बाग़ से बेहतर अता फ़रमादे जो ये काफ़िर कहते हैं.
जन्नते जिनके नीचे नहरें बहें और करेगा तुम्हारे लिये ऊंचे ऊंचे महल {10} बल्कि ये तो क़यामत को झुटलाते हैं, और जो क़यामत को झुटलाए हमने उसके लिये तैयार कर रखी है भड़कती हुई आग{11} जब वह उन्हें दूर जगह से दीखेंगी (2)
(2) एक बरस की राह से या सौ बरस की राह से. दोनो क़ौल है. और आग का देखना कुछ दूर नहीं. अल्लाह तआला चाहे तो उसको ज़िन्दगी़, बु़द्धि और देखने की शक्ति अता फ़रमा दे. और कुछ मुफ़स्सिरों ने कहा कि मुराद जहन्नम के फ़रिश्तों का देखना है.
तो सुनेंगे उसका जोश मारना और चिंघाड़ना{12} और जब उसकी किसी तंग जगह में डाले जाएंगे (3)
(3) जो निहायत कर्ब और बेचैनी पैदा करने वाली हो.
ज़ंजीरों में जकड़े हुए (4)
(4) इस तरह कि उनके हाथ गर्दनों से मिलाकर बांध दिये गए हों या इस तरह कि हर हर काफ़िर अपने अपने शैतानों के साथ ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ हो.
तो वहां मौत मांगेगे(5){13}
(5) और हाय ऐ मौत आजा, हाय ऐ मौत आजा, का शोर मचाएंगे, हदीस शरीफ़ में है कि पहले जिस शख़्स को आग का लिबास पहनाया जाएगा वह इब्लीस है और उसकी ज़र्रियत उसके पीछे होगी और ये सब मौत मौत पुकारते होंगे, उनसे….
फ़रमाया जाएगा आज एक मौत न मांगो और बहुत सी मौते मांगों(6){14}
(6) क्योंकि तुम तरह तरह के अज़ाबों में जकड़े जाओगे.
तुम फ़रमाओ क्या यह(7)
(7) अज़ाब और जहन्नम की भयानकता, जिसका जिक्र किया गया.
भला या वो हमेशगी के बाग़ जिसका वादा डर वालों को है, वह उनका सिला और अंजाम है{15} उनके लिये वहाँ मनमानी मुरादें है जिनमें हमेशा रहेंगे, तुम्हारे रब के ज़िम्मे वादा है मांगा हुआ(8){16}
(8) यानी मांगने के लायक़ या वह जो ईमान वालों ने दुनिया में यह अर्ज़ करके मांगा- रब्बना आतिना फ़िद दुनिया हसनतौं व फ़िल आख़िरते हसनतौं, या यह अर्ज़ करके- रब्बना व आतिना मा वअत्तना अला रूसुलिका.
और जिस दिन इकट्ठा करेगा उन्हें(9)
(9) यानी मुश्रिकों को.
और जिनको अल्लाह के सिवा पूजते हैं(10)
(10) यानी उनके बातिल मअबूदों को, चाहे वो जानदार हों या गै़र जानदार. कल्बी ने कहा कि इन माबूदों से बुत मुराद हैं. उन्हें अल्लाह तआला बोलने की शक्ति देगा.
फिर उन मअबूदों से फ़रमाएगा क्या तुमने गुमराह कर दिये ये मेरे बन्दे या ये ख़ुद ही राह भूले(11){17}
(11)  अल्लाह तआला हक़ीक़ते हाल का जानने वाला है उससे कुछ छुपा नहीं, यह सवाल मुश्रिकों को ज़लील करने के लिये है कि उनके मअबूद उन्हें झुटलाएं तो उनकी हसरत और ज़िल्लत और ज़्यादा हो.
वो अर्ज़ करेंगे पाकी है तुझ को(12)
(12) इससे कि कोई तेरा शरीक हो.
हमें सज़ावार (मुनासिब) न था कि तेरे सिवा किसी और को मौला बनाएं(13)
(13) तो हम दूसरे को क्या तेरे ग़ैर के माबूद बनाने का हुक्म दे सकते थे. हम तेरे बन्दे हैं.
लेकिन तूने उन्हें और उनके बाप दादाओ को बरतने दिया(14)
(14) और उन्हें माल, औलाद और लम्बी उम्र और सेहत व सलामती इनायत की.
यहाँ तक कि वो तेरी याद भूल गए. और ये लोग थे ही हलाक होने वाले(15) {18}
(15) शक़ी. इसके बाद काफ़िरों से फ़रमाया जाएगा.
तो अब मअबूदों ने तुम्हारी बात झुटला दी तो अब तुम न अज़ाब फेर सको न अपनी मदद कर सको, और तुम में जो ज़ालिम है हम उसे बड़ा अज़ाब चखाएंगे{19} और हमने तुमसे पहले जितने रसूल भेजे सब ऐसे ही थे खाना खाते और बाज़ारों में चलते(16)
(16) यह काफ़िरों के उस तअने का जवाब है जो उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर किया था कि वह बाज़ारों में चलते हैं, खाना खाते हैं. यहाँ बताया गया कि यह सारे काम नबुव्वत के विपरीत नहीं है बल्कि ये सारे नबियों की आदतें रही हैं.
और हमने तुममें एक को दूसरे की जांच किया है(17)
(17) शरीफ़ जब इस्लाम लाने का इरादा करते थे तो ग़रीबों को देख कर यह ख़याल करते कि ये हम से पहले इस्लाम ला चुके, इनको हमपर एक फ़ज़ीलत रहेगी. इस ख़याल से वो इस्लाम से दूर रहते और शरीफ़ों के लिये ग़रीब लोग आज़माइश बन जाते, एक क़ौल यह है कि यह आयत अबू जहल और वलीद बिन अक़बा और आस बिन वाइल सहमी और नज़र बिन हारिस के बारे में उतरी. उन लोगों ने हज़रत अबू ज़र और इब्ने मसऊद और अम्मार बिन यासिर और बिलाल व सुहैब व आमिर बिन फ़हीरा को देखा कि पहले से इस्लाम लाए हैं तो घमण्ड से कहा कि हम भी इस्लाम ले आएं तो उन्हीं जैसे हो जाएंगे तो हम में और उनमें फ़र्क़ ही क्या रह जाएगा. एक क़ौल यह है कि यह आयत मुसलमान फ़क़ीरों की आज़माइश में उतरी जिनकी क़ुरैश के काफ़िर हंसी बनाते थे और कहते थे कि ये लोग मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) का अनुकरण करने वाले लोग हैं जो हमारे ग़ुलाम और नीच हैं. अल्लाह तआला ने यह आयत उतारी और उन ईमान वालों से फ़रमाया (ख़ाज़िन)
और ऐ लोगो क्या तुम सब्र करोगे (18)
(18) इस ग़रीबी और सख़्ती पर, और काफ़िरों की इस बदगोई पर.
और ऐ मेहबूब तुम्हारा रब देखता है (19){20}
(19) उसको जो सब्र करे और उसको जो बेसब्री करे.
पारा अठ्ठारह समाप्त



उन्नीसवाँ पारा – व क़ालल्लज़ीना

सूरए फ़ुरक़ान (जारी)
25 सूरए फ़ुरक़ान – तीसरा रूकू

۞ وَقَالَ ٱلَّذِينَ لَا يَرْجُونَ لِقَآءَنَا لَوْلَآ أُنزِلَ عَلَيْنَا ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ أَوْ نَرَىٰ رَبَّنَا ۗ لَقَدِ ٱسْتَكْبَرُوا۟ فِىٓ أَنفُسِهِمْ وَعَتَوْ عُتُوًّۭا كَبِيرًۭا
يَوْمَ يَرَوْنَ ٱلْمَلَٰٓئِكَةَ لَا بُشْرَىٰ يَوْمَئِذٍۢ لِّلْمُجْرِمِينَ وَيَقُولُونَ حِجْرًۭا مَّحْجُورًۭا
وَقَدِمْنَآ إِلَىٰ مَا عَمِلُوا۟ مِنْ عَمَلٍۢ فَجَعَلْنَٰهُ هَبَآءًۭ مَّنثُورًا
أَصْحَٰبُ ٱلْجَنَّةِ يَوْمَئِذٍ خَيْرٌۭ مُّسْتَقَرًّۭا وَأَحْسَنُ مَقِيلًۭا
وَيَوْمَ تَشَقَّقُ ٱلسَّمَآءُ بِٱلْغَمَٰمِ وَنُزِّلَ ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ تَنزِيلًا
ٱلْمُلْكُ يَوْمَئِذٍ ٱلْحَقُّ لِلرَّحْمَٰنِ ۚ وَكَانَ يَوْمًا عَلَى ٱلْكَٰفِرِينَ عَسِيرًۭا
وَيَوْمَ يَعَضُّ ٱلظَّالِمُ عَلَىٰ يَدَيْهِ يَقُولُ يَٰلَيْتَنِى ٱتَّخَذْتُ مَعَ ٱلرَّسُولِ سَبِيلًۭا
يَٰوَيْلَتَىٰ لَيْتَنِى لَمْ أَتَّخِذْ فُلَانًا خَلِيلًۭا
لَّقَدْ أَضَلَّنِى عَنِ ٱلذِّكْرِ بَعْدَ إِذْ جَآءَنِى ۗ وَكَانَ ٱلشَّيْطَٰنُ لِلْإِنسَٰنِ خَذُولًۭا
وَقَالَ ٱلرَّسُولُ يَٰرَبِّ إِنَّ قَوْمِى ٱتَّخَذُوا۟ هَٰذَا ٱلْقُرْءَانَ مَهْجُورًۭا
وَكَذَٰلِكَ جَعَلْنَا لِكُلِّ نَبِىٍّ عَدُوًّۭا مِّنَ ٱلْمُجْرِمِينَ ۗ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ هَادِيًۭا وَنَصِيرًۭا
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَوْلَا نُزِّلَ عَلَيْهِ ٱلْقُرْءَانُ جُمْلَةًۭ وَٰحِدَةًۭ ۚ كَذَٰلِكَ لِنُثَبِّتَ بِهِۦ فُؤَادَكَ ۖ وَرَتَّلْنَٰهُ تَرْتِيلًۭا
وَلَا يَأْتُونَكَ بِمَثَلٍ إِلَّا جِئْنَٰكَ بِٱلْحَقِّ وَأَحْسَنَ تَفْسِيرًا
ٱلَّذِينَ يُحْشَرُونَ عَلَىٰ وُجُوهِهِمْ إِلَىٰ جَهَنَّمَ أُو۟لَٰٓئِكَ شَرٌّۭ مَّكَانًۭا وَأَضَلُّ سَبِيلًۭا


और बोले वो जो(1)
(1) काफ़िर हैं. हश्र  और मरने के बाद दोबारा उठाए जाने को नहीं मानते इसी लिये….
हमारे मिलने की उम्मीद नहीं रखते, हम पर फ़रिश्ते क्यों न उतारे(2)
(2)  हमारे लिये रसूल बनाकर या सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नबुव्वत और रिसालत के गवाह बनाकर.
या हम अपने रब को देखते(3)
(3)  वह ख़ुद हमें ख़बर दे देता कि सैयदे आलम मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम उसके रसूल हैं.
बेशक अपने जी में बहुत ही ऊंची खींची और बड़ी सरकशी (नाफ़रमानी) पर आए (4){21}
(4) और उनका घमण्ड चरम सीमा को पहुंच गया सरकशी हद से गुज़र गई कि चमत्कारों का अवलोकन करने के बाद, फ़रिश्तों के अपने ऊपर उतरने और अल्लाह तआला को देखने का सवाल किया.
जिस दिन फ़रिश्तों को देखेंगे(5)
(5) यानी मौत के दिन या क़यामत के दिन.
वह दिन मुजरिमों की कोई ख़ुशी का न होगा(6)
(6)  क़यामत के दिन फ़रिश्ते ईमान वालों को ख़ुशख़बरी सुनाएंगे और काफ़िरों से कहेंगे कि तुम्हारे लिये कोई ख़ुशख़बरी नहीं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि फ़रिश्ते कहेंगे कि मूमिन के सिवा किसी के लिये जन्नत में दाख़िल होना हलाल नहीं. इसलिये वह दिन काफ़िरों के वास्ते बहुत निराशा और दुख का होगा.
और कहेंगे, इलाही हम में उनमें कोई आड़ कर दे रूकी हुई(7){22}
(7) इस कलिमे से वो फ़रिश्तों से पनाह चाहेंगे.
और जो कुछ उन्होंने काम किये थे(8),
(8) कुफ़्र की हालत में,  जैसे रिश्तेदारों से अच्छा सुलूक, मेहमानदारी और अनाथों का ख़याल रखना वग़ैरह.
हमने क़स्द(इरादा) फ़रमाकर उन्हें बारीक़ बारीक़ ग़ुबार(धूल) के बिखरे हुए ज़र्रे कर दिया कि रौज़न (छेद) की धूप में नज़र आते हैं (9){23}
(9) न हाथ से छुए जाएं न उनका साया हो. मुराद यह है कि वो कर्म बातिल कर दिये गए. उनका कुछ फल और कोई फ़ायदा नहीं क्योंकि कर्मों की क़ुबूलियत के लिये ईमान शर्त है और वह उनके पास न था. इसके बाद जन्न्त वालों की बुज़ुर्गी बयान होती है.
जन्नत वालों का उस दिन अच्छा ठिकाना(10)
(10) और उनका स्थान उन घमण्डी मुश्रिकों से बलन्द और बेहतर.
और हिसाब के दोपहर के बाद अच्छी आराम की जगह {24} और जिस दिन फट जाएगा आसमान बादलों से और फ़रिश्ते उतारे जाएंगे पूरी तरह(11){25}
(11) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया, दुनिया का आसमान फटेगा और वहाँ के रहने वाले फ़रिश्ते उतरेंगे और वो सारे ज़मीन वालों से अधिक हैं, जिन्न और इन्सान सबसे. फिर  दूसरा आसमान फटेगा, वहाँ के रहने वाले उतरेंगे, वो दुनिया के आसमान के रहने वालों और जिन्न और इन्सान सब से ज़्यादा हैं. इसी तरह आसमान फटते जाएंगे और हर आसमान वालों की संख्या अपने मातहतों से ज़्यादा है, यहाँ तक कि सातवाँ आसमान फटेगा. फिर कर्रूबी फ़रिश्ते उतरेंगे, फिर अर्श उठाने वाले फ़रिश्ते और यह क़यामत का दिन होगा.
उस दिन सच्ची बादशाही रहमान की है, और वह दिन काफ़िरों पर सख़्त है(12){26}
(12) और अल्लाह के फ़ज़्ल से मुसलमानों पर आसान. हदीस शरीफ़ है कि क़यामत का दिन मुसलमानों पर आसान किया जाएगा यहाँ तक कि वो उनके लिये एक फ़र्ज़ नमाज़ से हल्का होगा जो दुनिया में पढी जाती थी.
और जिस दिन ज़ालिम अपने हाथ चबा चबा लेगा(13)
(13) निराशा और शर्मिन्दगी से. यह हाल अगरचे काफ़िरों के लिये आया है मगर अक़बह दिन अबी मुईत से इसका ख़ास सम्बन्ध है. अक़बह उबई बिन ख़लफ़ का गहरा दोस्त था. हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के फ़रमाने से उसने लाइलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर रसूलुल्लाह की गवाही दी और उसके बाद उबई बिन ख़लफ़ के ज़ोर डालने से फिर मुर्तद हो गया. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उसको मक़तूल होने की ख़बर दी. चुनाँन्चे बद्र में मारा गया. यह आयत उसके बारे में उतरी कि क़यामत के दिन उसको इन्तिहा दर्जे की हसरत और निदामत होगी. इस हसरत में वह अपने हाथ चाब चाब लेगा.
कि हाय किसी तरह से मैं ने रसूल के साथ राह ली होती(14){27}
(14) जन्नत और निजात की और उनका अनुकरण किया होता और उनकी हिदायत क़ुबूल की होती.
हाए, ख़राबी मेरी, हाय किसी तरह मैं ने फ़लाने(अमुक) को दोस्त न बनाया होता{28} बेशक उसने मुझे बहका दिया मेरे पास आई हुई नसीहत से,(15)
(15) यानी क़ुरआन और ईमान से.
और शैतान आदमी को बे मदद छोड़ देता है(16){29}
(16) और बला और अज़ाब उतरने के वक़्त उससे अलाहिदगी करता है. हज़रत अबू हुरैरह रदियल्लाहो अन्हो से अबू दाऊद और तिरमिज़ी में एक हदीस आई है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया, आदमी अपने दोस्त के दीन पर होता है तो देखना चाहिये किस को दोस्त बनाता है. हज़रत अबू सईद खुदरी रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया, हमनशीनी न करो मगर ईमानदार के साथ और खाना न खिलाओ मगर परहेज़गार को. बेदीन और बदमज़हब की दोस्ती और उसके साथ मिलना जुलना और महब्बत और सत्कार मना है.
और रसूल ने अर्ज़ की कि ऐ मेरे रब मेरी क़ौम ने इस क़ुरआन को छोड़ने के क़ाबिल ठहरा लिया(17){30}
(17) किसी ने उसको जादू कहा, किसी ने शेअर, और वो लोग ईमान लाने से मेहरूम रहे. इसपर अल्लाह तआला ने हुज़ूर को तसल्ली दी. और आपसे मदद का वादा फ़रमाया जैसा कि आगे इरशाद होता है.
और इसी तरह हमने हर नबी के लिये दुश्मन बना दिये थे मुजरिम लोग,(18)
(18) यानी नबियों के साथ बदनसीबों का यही सुलूक रहा है.
और तुम्हारा रब काफ़ी है हिदायत करने और मदद देने को{31} और काफ़िर बोले, क़ुरआन उनपर एक साथ क्यों न उतार दिया(19)
(19) जैसे कि तौरात व इन्जील व जुबूर में से हर एक किताब एक साथ उतरी थी. काफ़िरों की यह आलोचना बिल्कुल फ़ुज़ूल और निरर्थक है क्योंकि क़ुरआने मजीद का चमत्कारी होना हर हाल में एक सा है चाहे एक बार उतरे या थोड़ा थोड़ा करके, बल्कि थोड़ा थोड़ा उतारने में इसके चमत्कारी होने का और भी भरपूर प्रमाण है कि जब एक आयत उतरी और सृष्टि का उसके जैसा कलाम बनाने से आजिज़ होना ज़ाहिर हुआ, फिर दूसरी उतरी. इसी तरह इसका चमत्कार ज़ाहिर हुआ. इस तरह बराबर आयत-आयत होकर क़ुरआने पाक उतरता रहा और हर दम उसकी बेमिसाली और लोगों की आजिज़ी और लाचारी ज़ाहिर होती रही. ग़रज़ काफ़िरों का ऐतिराज़ केवल बेकार और व्यर्थ है. आयत में अल्लाह तआला थोड़ा थोड़ा करके उतारने की हिकमत ज़ाहिर फ़रमाता है.
हमने यूंही धीरे धीरे इसे उतारा है कि इससे तुम्हारा दिल मज़बूत करें(20)
(20) और संदेश का सिलसिला जारी रहने से आपके दिल को तस्कीन होती रहे और काफ़िरों को हर हर अवसरों पर जवाब मिलते रहें. इसके अलावा यह भी फ़ायदा है कि इसे याद करना सहल और आसान हो.
और हमने इसे ठहर ठहर कर पढ़ा(21){32}
(21) जिब्रईल की ज़बान से थोड़ा थोड़ा बीस या तेईस साल की मुद्दत में. या ये मानी हैं कि हमने आयत के बाद आयत थोड़ा थोड़ा करके उतारा. कुछ ने कहा कि अल्लाह तआला ने हमें क़िरअत में ठहर ठहर कर इत्मीनान से पढने और क़ुरआन शरीफ़ को अच्छी तरह अदा करने का हुक्म फ़रमाया जैसा कि दूसरी आयत में इरशाद हुआ व रत्तिलिल क़ुरआना तर्तीला (और क़ुरआन खूब ठहर ठहर कर पढो – सूरए मुज़्ज़म्मिल, आयत 4)
और वो कोई कहावत तुम्हारे पास न लाएंगे(22)
(22) यानी मुश्रिक आपके दीन के ख़िलाफ़ या आपकी नबुव्वत में आलोचना करने वाला कोई सवाल पेश न कर सकेंगे.
मगर हम हक़ (सत्य) और इससे बेहतर बयान ले आएंगे{33} वो जो जहन्नम की तरफ़ हांके जाएंगे अपने मुंह के बल, उनका ठिकाना सबसे बुरा(23)और वो सबसे गुमराह{34}
(23)  हदीस शरीफ़ में है कि आदमी क़यामत के दिन तीन तरीक़े पर उठाए जाएंगे. एक गिरोह सवारियों पर, एक समूह पैदल और एक जमाअत मुंह के बल घिसटती हुई. अर्ज़ किया गया या रसूलल्लाह, वो मुंह के बल कैसे चलेंगे. फ़रमाया जिसने पाँव पर चलाया हे वही मुंह के बल चलाएगा.




25 सूरए फ़ुरक़ान – चौथा रूकू

وَلَقَدْ ءَاتَيْنَا مُوسَى ٱلْكِتَٰبَ وَجَعَلْنَا مَعَهُۥٓ أَخَاهُ هَٰرُونَ وَزِيرًۭا
فَقُلْنَا ٱذْهَبَآ إِلَى ٱلْقَوْمِ ٱلَّذِينَ كَذَّبُوا۟ بِـَٔايَٰتِنَا فَدَمَّرْنَٰهُمْ تَدْمِيرًۭا
وَقَوْمَ نُوحٍۢ لَّمَّا كَذَّبُوا۟ ٱلرُّسُلَ أَغْرَقْنَٰهُمْ وَجَعَلْنَٰهُمْ لِلنَّاسِ ءَايَةًۭ ۖ وَأَعْتَدْنَا لِلظَّٰلِمِينَ عَذَابًا أَلِيمًۭا
وَعَادًۭا وَثَمُودَا۟ وَأَصْحَٰبَ ٱلرَّسِّ وَقُرُونًۢا بَيْنَ ذَٰلِكَ كَثِيرًۭا
وَكُلًّۭا ضَرَبْنَا لَهُ ٱلْأَمْثَٰلَ ۖ وَكُلًّۭا تَبَّرْنَا تَتْبِيرًۭا
وَلَقَدْ أَتَوْا۟ عَلَى ٱلْقَرْيَةِ ٱلَّتِىٓ أُمْطِرَتْ مَطَرَ ٱلسَّوْءِ ۚ أَفَلَمْ يَكُونُوا۟ يَرَوْنَهَا ۚ بَلْ كَانُوا۟ لَا يَرْجُونَ نُشُورًۭا
وَإِذَا رَأَوْكَ إِن يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَٰذَا ٱلَّذِى بَعَثَ ٱللَّهُ رَسُولًا
إِن كَادَ لَيُضِلُّنَا عَنْ ءَالِهَتِنَا لَوْلَآ أَن صَبَرْنَا عَلَيْهَا ۚ وَسَوْفَ يَعْلَمُونَ حِينَ يَرَوْنَ ٱلْعَذَابَ مَنْ أَضَلُّ سَبِيلًا
أَرَءَيْتَ مَنِ ٱتَّخَذَ إِلَٰهَهُۥ هَوَىٰهُ أَفَأَنتَ تَكُونُ عَلَيْهِ وَكِيلًا
أَمْ تَحْسَبُ أَنَّ أَكْثَرَهُمْ يَسْمَعُونَ أَوْ يَعْقِلُونَ ۚ إِنْ هُمْ إِلَّا كَٱلْأَنْعَٰمِ ۖ بَلْ هُمْ أَضَلُّ سَبِيلًا


और बेशक हमने मूसा को किताब अता फ़रमाई और उसके भाई हारून को वज़ीर किया{35} तो हमने फ़रमाया, तुम दोनों जाओ उस क़ौम की तरफ़ जिसने हमारी आयतें झुटलाईं(1)
(1) यानी फिरऔन क़ौम की तरफ़, चुनांचे वह दोनो हज़रात उनकी तरफ़ गए और उन्हें ख़ुदा का ख़ौफ़ दिलाया और अपनी रिसालत का प्रचार किया, लेकिन उन बदबख़्तों ने उन हज़रात को झुटलाया.
फिर हमने उन्हें तबाह करके हलाक कर दिया{36} और नूह की क़ौम को(2)
(2) …. भी हलाक कर दिया.
जब उन्होंने रसूलों को झुटलाया(3),
(3) यानी हज़रत नूह और हज़रत इद्रीस को और हज़रत शीस को. या यह बात है कि एक रसूल को झुटलाना सारे रसूलों को झुटलाना है. तो जब उन्होंने हज़रत नूह को झुटलाया तो सब रसूलों को झुटलाया.
हमने उनको डुबो दिया और उन्हें लोगों के लिये निशानी कर दिया,(4)
(4) कि बाद वालों के लिये इब्रत हो.
और हमने ज़ालिमों के लिये दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है{37} और आद और समूद (5)
(5) और हज़रत हूद अलैहिस्सलाम की क़ौम आद, और हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की क़ौम समूद, इन दोनो क़ौमों को भी हलाक किया.
और कुंवें वालों को(6)
(6) यह हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम की क़ौम थी जो बुतों को पूजती थी. अल्लाह तआला ने उनकी तरफ़ हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम को भेजा. आपने उन्हें इस्लाम की तरफ़ बुलाया. उन्होंने सरकशी की, हज़रत शुऐब अलैहिस्सलाम को झुटलाया और आपको कष्ट दिये. उन लोगों के मकान कुंए के गिर्द थे. अल्लाह तआला ने उन्हें हलाक किया और यह सारी क़ौम अपने मकानों समेत उस कुएं के साथ ज़मीन में धंस गई. इसके अलावा और अक़वाल भी हैं.
और उनके बीच में बहुत सी संगतें (क़ौमें)(7){38}
(7)  यानी आद और समूद क़ौम और कुंए वालों के बीच में बहुत सी उम्मतें हैं जिनको नबियों को झुटलाने के कारण अल्लाह तआला ने हलाक किया.
और हमने सब से मिसालें बयान फ़रमाई (8)
(8)  और हुज्जतें क़ायम की और उनमें से किसी को बिना हुज्जत पूरी किये हलाक न किया.
और सबको तबाह करके मिटा दिया{39} और ज़रूर ये(9)
(9) यानी मक्के के काफ़िर अपनी तिजारतों में शाम के सफ़र करते हुए बार बार.
हो आए हैं उस बस्ती पर जिस पर बुरा बरसाव बरसा था, (10)
(10) इस बस्ती से मुराद समूद है जो लूत क़ौम की पाँच बस्तियों में सबसे बड़ी बस्ती थी. इन बस्तियों में एक सब से छोटी बस्ती के लोग तो उस बुरे काम से दूर थे जिसमें बाक़ी चार बस्तियों के लोग जकड़े हुए थे. इसीलिये उन्होंने निजात पाई और वो चार बस्तियाँ अपने बुरे कर्म के कारण आसमान से पत्थर बरसाकर हलाक कर दी गई.
तो क्या ये उसे देखते न थे,(11)
(11)  कि इब्रत पकड़ते और ईमान लाते.
बल्कि उन्हें जी उठने की उम्मीद थी ही नहीं(12){40}
(12) यानी मरने के बाद ज़िन्दा किये जाने के क़ायल न थे कि उन्हें आख़िरत के अज़ाब सवाब की चिन्ता होती.
और जब तुम्हें देखते हैं तो तुम्हें नहीं ठहराते मगर ठ्टटा,(13)
(13) और कहते हैं.
क्या ये हैं जिन को अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा{41} क़रीब था कि ये हमें हमारे ख़ुदाओ से बहक़ा दें अगर हम उनपर सब्र न करते(14)
(14) इससे मालूम हुआ कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की दावत और आपके चमत्कारों ने काफ़िरों पर इतना असर किया था और सच्चे दीन को इस क़द्र साफ़ और स्पष्ट कर दिया था कि स्वयं काफ़िरों को यह इक़रार है कि अगर वो अपनी हठ पर न जमे रहते तो क़रीब था कि बुत परस्ती छोड़ दें और इस्लाम ले आएं यानी इस्लाम की सच्चाई उनपर ख़ूब खुल चुकी थी और शक शुबह मिटा दिया गया था, लेकिन वो अपनी हठ और ज़िद के कारण मेहरूम रहे.
और अब जाना चाहते हैं जिस दिन अज़ाब देखेंगे(15)
(15) आख़िरत में.
कि कौन गुमराह था(16){42}
(16) यह उसका जवाब है कि काफ़िरों ने कहा था क़रीब है कि ये हमें हमारे ख़ुदाओं से बहका दें. यहाँ बताया गया है कि बहक़े हुए तुम खुद हो और आख़िरत में ये तुम को ख़ुद मालूम हो जाएगा और रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तरफ़ बहकाने की निस्बत केवल बेजा और निरर्थक है.
क्या तुमने उसे देखा जिसने अपने जी की ख़्वाहिश को अपना ख़ुदा बना लिया, (17)
(17) और अपनी नफ़सानी ख़्वाहिश को पूजने लगा, उसी का फ़रमाँबरदार हो गया, वह हिदायत किस तरह क़ुबूल करेगा. रिवायत है कि जिहालत के ज़माने के लोग एक पत्थर को पूजते थे और जब कहीं उन्हें कोई दूसरा पत्थर उससे अच्छा नज़र आता, तो पहले को फैंक देते और दूसरे को पूजने लगते.
तो क्या तुम उसकी निगहबानी का ज़िम्मा लोगे (18){43}
(18) कि ख़्वाहिश परस्ती से रोक दो.
या यह समझते हो कि उनमें बहुत कुछ सुनते या समझते हैं, (19)
(19) यानी वो अपनी भरपूर दुश्मनी से न आपकी बात सुनते हैं न प्रमाणों और तर्क को समझते हैं. बेहरे और नासमझ बने हुए हैं.
वो तो नहीं मगर जैसे चौपाए बल्कि उनसे भी बदतर गुमराह(20){44}
(20) क्योंकि चौपाए भी अपने रब की तस्बीह करते हैं. और जो उन्हें खाने को दे, उसके फ़रमाँबरदार रहते हैं और एहसान करने वाले को पहचानते हैं और तकलीफ़ देने वाले से घबराते हैं. नफ़ा देने वाले की तलब करते हैं, घाटा देने वाले से बचते हैं चराहागाहों की राहें जानते हैं. ये काफ़िर उनसे भी बुरे हैं कि न रब की इताअत करते हें, न उसके एहसान को पहचानते हें, न शैतान जैसे दुश्मन की घातों को समझते हैं, न सवाब जैसी बड़े नफ़े वाली चीज़ के तालिब हैं, न अज़ाब जैसी सख़्त ख़तरनाक हलाकत से बचते हैं.



25 सूरए फ़ुरक़ान – पाँचवां रूकू

أَلَمْ تَرَ إِلَىٰ رَبِّكَ كَيْفَ مَدَّ ٱلظِّلَّ وَلَوْ شَآءَ لَجَعَلَهُۥ سَاكِنًۭا ثُمَّ جَعَلْنَا ٱلشَّمْسَ عَلَيْهِ دَلِيلًۭا
ثُمَّ قَبَضْنَٰهُ إِلَيْنَا قَبْضًۭا يَسِيرًۭا
وَهُوَ ٱلَّذِى جَعَلَ لَكُمُ ٱلَّيْلَ لِبَاسًۭا وَٱلنَّوْمَ سُبَاتًۭا وَجَعَلَ ٱلنَّهَارَ نُشُورًۭا
وَهُوَ ٱلَّذِىٓ أَرْسَلَ ٱلرِّيَٰحَ بُشْرًۢا بَيْنَ يَدَىْ رَحْمَتِهِۦ ۚ وَأَنزَلْنَا مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءًۭ طَهُورًۭا
لِّنُحْۦِىَ بِهِۦ بَلْدَةًۭ مَّيْتًۭا وَنُسْقِيَهُۥ مِمَّا خَلَقْنَآ أَنْعَٰمًۭا وَأَنَاسِىَّ كَثِيرًۭا
وَلَقَدْ صَرَّفْنَٰهُ بَيْنَهُمْ لِيَذَّكَّرُوا۟ فَأَبَىٰٓ أَكْثَرُ ٱلنَّاسِ إِلَّا كُفُورًۭا
وَلَوْ شِئْنَا لَبَعَثْنَا فِى كُلِّ قَرْيَةٍۢ نَّذِيرًۭا
فَلَا تُطِعِ ٱلْكَٰفِرِينَ وَجَٰهِدْهُم بِهِۦ جِهَادًۭا كَبِيرًۭا
۞ وَهُوَ ٱلَّذِى مَرَجَ ٱلْبَحْرَيْنِ هَٰذَا عَذْبٌۭ فُرَاتٌۭ وَهَٰذَا مِلْحٌ أُجَاجٌۭ وَجَعَلَ بَيْنَهُمَا بَرْزَخًۭا وَحِجْرًۭا مَّحْجُورًۭا
وَهُوَ ٱلَّذِى خَلَقَ مِنَ ٱلْمَآءِ بَشَرًۭا فَجَعَلَهُۥ نَسَبًۭا وَصِهْرًۭا ۗ وَكَانَ رَبُّكَ قَدِيرًۭا
وَيَعْبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَنفَعُهُمْ وَلَا يَضُرُّهُمْ ۗ وَكَانَ ٱلْكَافِرُ عَلَىٰ رَبِّهِۦ ظَهِيرًۭا
وَمَآ أَرْسَلْنَٰكَ إِلَّا مُبَشِّرًۭا وَنَذِيرًۭا
قُلْ مَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ إِلَّا مَن شَآءَ أَن يَتَّخِذَ إِلَىٰ رَبِّهِۦ سَبِيلًۭا
وَتَوَكَّلْ عَلَى ٱلْحَىِّ ٱلَّذِى لَا يَمُوتُ وَسَبِّحْ بِحَمْدِهِۦ ۚ وَكَفَىٰ بِهِۦ بِذُنُوبِ عِبَادِهِۦ خَبِيرًا
ٱلَّذِى خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِى سِتَّةِ أَيَّامٍۢ ثُمَّ ٱسْتَوَىٰ عَلَى ٱلْعَرْشِ ۚ ٱلرَّحْمَٰنُ فَسْـَٔلْ بِهِۦ خَبِيرًۭا
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱسْجُدُوا۟ لِلرَّحْمَٰنِ قَالُوا۟ وَمَا ٱلرَّحْمَٰنُ أَنَسْجُدُ لِمَا تَأْمُرُنَا وَزَادَهُمْ نُفُورًۭا


ऐ मेहबूब क्या तुमने अपने रब को न देखा(1)
(1) कि उसकी सनअत(सृजन-शक्ति) और क़ुदरत कितनी अजीब है.
कि कैसा फैलाया साया(2)
(2) सुब्हे सादिक़ के निकलने के बाद से सूर्योदय तक, कि उस वक़्त सारी धरती पर साया ही साया होता है, न धूप है न अंधेरा
और अगर चाहता तो उसे ठहराया हुआ कर देता(3)
(3) कि सूरज के निकलने से भी न मिटता.
फिर हमने सूरज को उसपर दलील किया{45} फिर हमने आहिस्ता आहिस्ता उसे अपनी तरफ़ समेटा (4){46}
(4) कि उदय होने के बाद सूरज जितना ऊपर होता गया, साया सिमटता गया.
और वही है जिसने रात को तुम्हारे लिये पर्दा किया और नींद को आराम, और दिन बनाया उठने के लिये(5){47}
(5)  कि उसमें रोज़ी तलाश करो और कामों में जुट जाओ. हज़रत लुक़मान ने अपने बेटे से फ़रमाया, जैसे सोते हो फिर उठते हो ऐसे ही मरोगे और मौत के बाद फिर उठोगे.
और वही है जिसने हवाएं भेजी अपनी रहमत के आगे, ख़ुशख़बरी सुनाती हुई,(6)
(6) यहाँ रहमत से मुराद बारिश है.
और हमने आसमान से पानी उतारा पाक करने वाला{48} ताकि हम उससे ज़िन्दा करें किसी मुर्दा शहर को(7)
(7) जहाँ की ज़मीन ख़ुश्की से बेजान हो गई.
और उसे पिलाएं अपने बनाए हुए बहुत से चौपाए और आदमियों को{49} और बेशक हमने उनमें पानी के फेरे रखे(8)
(8) कि कभी किसी शहर में बारिश हो कभी किसी में, कभी कहीं ज़्यादा हो कभी कहीं अलग तौर से, अल्लाह की हिकमत के अनुसार. एक हदीस में है कि आसमान से रात दिन की तमाम घड़ियों में बारिश होती रहती है, अल्लाह तआला उसे जिस प्रदेश की तरफ़ चाहता है फेरता है और जिस धरती को चाहता है सैराब करता है.
कि वो ध्यान करें,(9)
(9) और अल्लाह तआला की क़ुदरत और नेअमत में ग़ौर करें.
तो बहुत लोगों ने न माना नाशुक्री करना{50} और हम चाहते तो हर बस्ती में एक डर सुनाने वाला भेजते (10){51}
(10) और आप पर से डराने का बोझ कम कर देते लेकिन हमने सारी बस्तियों को डराने का बोझ आप ही पर रखा ताकि आप सारे जगत के रसूल होकर कुल रसूलों की फ़ज़ीलतों और बुज़ुर्गियों के संगम हो और नबुव्वत आप पर खत्म हो कि आप के बाद फिर कोई नबी न हो.
तो काफ़िरों का कहा न मान और इस क़ुरआन से उनपर जिहाद कर, बड़ा जिहाद{52} और वही है जिसने मिले हुए बहाए दो समन्दर, यह मीठा है बहुत मीठा और यह खारी है बहुत तल्ख़, और इन के बीच में पर्दा रखा और रोकी हुई आड़(11){53}
(11) कि न मीठा खारी हो, न खारी मीठा न कोई किसी के स्वाद को बदल सके जैसे कि दजलह, दरियाए शोर में मीलो तक चला जाता है और उसके पानी के स्वाद में कोई परिवर्तन नहीं आता, यह अल्लाह की अजीब शान है.
और वही है जिसने पानी से(12)
(12) यानी नुत्फ़े से.
बनाया आदमी, फिर उसके रिश्ते और ससुराल मुक़र्रर की(13)
(13) कि नस्ल चले.
और तुम्हारा रब क़ुदरत वाला है (14){54}
(14) कि उसने एक नुत्फ़े से दो क़िस्म के इन्सान पैदा किए, नर और मादा, फिर भी काफ़िरों का यह हाल है कि उसपर ईमान नहीं लाते.
और अल्लाह के सिवा ऐसों को पूजते हैं(15)
(15) यानी बुतों को.
जो उनका भला बुरा कुछ न करें, और काफ़िर अपने रब के मुक़ाबिल शैतान को मदद देता है(16){55}
(16) क्योंकि बुत परस्ती करना शैतान को मदद देना है.
और हमने तुम्हे न भेजा मगर(17)
(17) ईमान और फ़रमाँबरदारी पर जन्नत की.
ख़ुशी और (18)
(18) कुफ़्र और गुमराही पर जहन्नम के अज़ाब का.
डर सुनाता{56} तुम फ़रमाओ मैं इस(19)
(19) तबलीग़ और हिदायत.
पर तुम से कुछ उजरत (वेतन)नहीं मांगता मगर जो चाहे कि अपने रब की तरफ़ राह ले(20){57}
(20) और उसका क़ु्र्ब और उसकी रज़ा हासिल करे. मुराद यह है कि ईमानदारों का ईमान लाना और उनका अल्लाह की फ़रमाँबरदारी में जुट जाना ही मेरा बदला है क्योंकि अल्लाह तआला मुझे उसपर जज़ा अता फ़रमाएगा, इसीलिये कि उम्मत के नेक लोगों के ईमान और उनकी नेकियों के सवाब उन्हें मिलते हैं और उसके नबियों को भी जिनकी हिदायत से वो इस दर्जे पर पहुंचे.
और भरोसा करो उस ज़िन्दा पर जो कभी न मरेगा(21)
(21) उसी पर भरोसा करना चाहिये क्योंकि मरने वाले पर भरोसा करना समझ वाले की शान नहीं है.
और उसे सराहते हुए उसकी पाकी बोलो,(22)
(22) उसकी तस्बीह और तारीफ़ करो, उसकी फ़रमाँबरदारी करो और शुक्र अदा करो.
और वही काफ़ी है अपने बन्दों के गुनाहों पर ख़बरदार(23){58}
(23) न उससे किसी का गुनाह छुपे, न कोई उसकी पकड़ से अपने को बचा सके.
जिसने आसमान और ज़मीन और जो कुछ इन के बीच है छ दिन में बनाए(24)
(24) यानी उतनी मात्रा में, क्योंकि रात और दिन और सूरज तो थे ही नहीं और उतनी मात्रा में पैदा करना अपनी मख़लूक़ को आहिस्तगी और इत्मीनान सिखाने के लिये है, वरना वो एक पल में सब कुछ पैदा करने की क़ुदरत रखता है.
फिर अर्श पर इस्तिवा फ़रमाया जैसा उसकी शान के लायक़ है(25)
(25) बुज़ुर्गो का मज़हब यह है कि इस्तिवा और इस जैसे जो भी शब्द आए हैं हम उन पर ईमान रखते हैं और उनकी कैफ़ियत के पीछे नहीं पड़ते, उसको अल्लाह ही जाने. कुछ मुफ़स्सिरों ने इस्तिवा को बलन्दी और बरतरी के मानी में लिया है और यही बेहतर है…
वह बड़ी मेहर वाला, तो किसी जानने वाले से उसकी तअरीफ़ पूछ(26){59}
(26) इसमें इन्सान को सम्बोधन है कि हज़रत रहमान की विशेषताएं और सिफ़ात पहचानने वाले शख़्स से पूछे…
और जब उनसे कहा जाए(27)
(27) यानी जब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मुश्रिकों से फ़रमाएं कि…
रहमान को सज्दा करो कहते हैं रहमान क्या है क्या हम सज्दा कर लें जिसे तुम कहो(28)
(28) इससे उनका मक़सद यह है कि रहमान को जानते नहीं और यह बातिल है जो उन्होंने दुश्मनी के तहत कहा क्योंकि अरबी ज़बान जानने वाला ख़ूब जानता है कि रहमान का अर्थ बहुत रहमत वाला है और यह अल्लाह तआला ही की विशेषता है.
और इस हुक्म ने उन्हें और बिदकना बढ़ाया(29){60}
(29) यानी सज्दे का हुक्म उनके लिये और ज़्यादा ईमान से दूरी का कारण हुआ.




25 सूरए फ़ुरक़ान – छटा रूकू

تَبَارَكَ ٱلَّذِى جَعَلَ فِى ٱلسَّمَآءِ بُرُوجًۭا وَجَعَلَ فِيهَا سِرَٰجًۭا وَقَمَرًۭا مُّنِيرًۭا
وَهُوَ ٱلَّذِى جَعَلَ ٱلَّيْلَ وَٱلنَّهَارَ خِلْفَةًۭ لِّمَنْ أَرَادَ أَن يَذَّكَّرَ أَوْ أَرَادَ شُكُورًۭا
وَعِبَادُ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلَّذِينَ يَمْشُونَ عَلَى ٱلْأَرْضِ هَوْنًۭا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ ٱلْجَٰهِلُونَ قَالُوا۟ سَلَٰمًۭا
وَٱلَّذِينَ يَبِيتُونَ لِرَبِّهِمْ سُجَّدًۭا وَقِيَٰمًۭا
وَٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا ٱصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَ ۖ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا
إِنَّهَا سَآءَتْ مُسْتَقَرًّۭا وَمُقَامًۭا
وَٱلَّذِينَ إِذَآ أَنفَقُوا۟ لَمْ يُسْرِفُوا۟ وَلَمْ يَقْتُرُوا۟ وَكَانَ بَيْنَ ذَٰلِكَ قَوَامًۭا
وَٱلَّذِينَ لَا يَدْعُونَ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ وَلَا يَقْتُلُونَ ٱلنَّفْسَ ٱلَّتِى حَرَّمَ ٱللَّهُ إِلَّا بِٱلْحَقِّ وَلَا يَزْنُونَ ۚ وَمَن يَفْعَلْ ذَٰلِكَ يَلْقَ أَثَامًۭا
يُضَٰعَفْ لَهُ ٱلْعَذَابُ يَوْمَ ٱلْقِيَٰمَةِ وَيَخْلُدْ فِيهِۦ مُهَانًا
إِلَّا مَن تَابَ وَءَامَنَ وَعَمِلَ عَمَلًۭا صَٰلِحًۭا فَأُو۟لَٰٓئِكَ يُبَدِّلُ ٱللَّهُ سَيِّـَٔاتِهِمْ حَسَنَٰتٍۢ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورًۭا رَّحِيمًۭا
وَمَن تَابَ وَعَمِلَ صَٰلِحًۭا فَإِنَّهُۥ يَتُوبُ إِلَى ٱللَّهِ مَتَابًۭا
وَٱلَّذِينَ لَا يَشْهَدُونَ ٱلزُّورَ وَإِذَا مَرُّوا۟ بِٱللَّغْوِ مَرُّوا۟ كِرَامًۭا
وَٱلَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا۟ بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِمْ لَمْ يَخِرُّوا۟ عَلَيْهَا صُمًّۭا وَعُمْيَانًۭا
وَٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَٰجِنَا وَذُرِّيَّٰتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍۢ وَٱجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا
أُو۟لَٰٓئِكَ يُجْزَوْنَ ٱلْغُرْفَةَ بِمَا صَبَرُوا۟ وَيُلَقَّوْنَ فِيهَا تَحِيَّةًۭ وَسَلَٰمًا
خَٰلِدِينَ فِيهَا ۚ حَسُنَتْ مُسْتَقَرًّۭا وَمُقَامًۭا
قُلْ مَا يَعْبَؤُا۟ بِكُمْ رَبِّى لَوْلَا دُعَآؤُكُمْ ۖ فَقَدْ كَذَّبْتُمْ فَسَوْفَ يَكُونُ لِزَامًۢا


बड़ी बरकत वाला है जिसने आसमान में बुर्ज बनाए (1)
(1) हज़रत इब्ने  अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि बुर्ज से सात ग्रहों की मंज़िलें मुराद है जिनकी तादाद बारह है- (1) हमल(मेष),(2)सौर (वृषभ), (3) जौज़ा (मिथुन), (4) सरतान (कर्क), (5)असद (सिंह), (6) सुंबुला (कन्या), (7) मीज़ान (तुला), (8) अक़रब(वृश्चिक), (9) क़ौस (धनु), (10) जदी (मकर), (11)दलव (कुम्भ),  (12) हूत (मीन).
उनमें चिराग़ रखा(2)
(2) चिराग से यहाँ सूरज मुराद है.
और चमकता चाँद {61} और वही है जिसने रात और दिन की बदली रखी (3)
(3) कि उनमें एक के बाद दूसरा आता है और उसका क़ायम मुकाम होता है कि जिसका अमल रात या दिन में से किसी एक में क़ज़ा हो जाए तो दूसरे में अदा करे, ऐसा ही फ़रमाया हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने. और रात दिन का एक दूसरे के बाद आना और क़ायम मुकाम होना अल्लाह तआला की क़ुदरत और हिकमत का प्रमाण है.
उसके लिये जो ध्यान करना चाहे या शुक्र का इरादा करे{62} और रहमान के वो बन्दे कि ज़मीन पर आहिस्ता चलते हैं(4)
(4) इत्मीनान और विक़ार के साथ, विनम्रता की शान से, कि घमण्डी तरीक़े से जूते खटखटाते, पाँव ज़ोर से मारते, इतराते कि यह घमण्डियों का तरीक़ा है और शरीअत ने इसे मना फ़रमाया है.
और जब ज़ाहिल उनसे बात करते हैं(5)
(5) और कोई नागवार कलिमा या बेहूदा या अदब और तहज़ीब के ख़िलाफ़ बात कहते हैं…
तो कहते हैं बस सलाम(6){63}
(6) यह सलाम मुतारिकत का है यानी जाहिलों के साथ बहस या लड़ाई झगड़ा करने से परहेज़ करते हैं या ये मानी है कि ऐसी बात कहते हैं जो दुरूस्त हो और उसमें कष्ट और गुनाह से मेहफ़ूज़ रहें. हसन बसरी ने फ़रमाया कि यह तो उन बन्दों के दिन का हाल है. और उनकी रात का बयान आगे आता है. मुराद यह है कि उसकी मजलिसी ज़िन्दगी और लोगों के साथ व्यवहार ऐसा पाकीज़ा है. और उनकी एकान्त की ज़िन्दगी और सच्चाई के साथ सम्बन्ध यह है जो आगे बयान किया जाता है.
और वो जो रात काटते हैं अपने रब के लिये सज्दे और क़याम में(7){64}
(7) यानी नमाज़ और इबादत में रात भर जागते हैं और रात अपने रब की इबादत में गुज़ारते हैं और अल्लाह तआला अपने करम से थोड़ी इबादत वालों को भी रात भर जागने का सवाब अता फ़रमाता है. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि जिस किसी ने इशा के बाद दो रकअत या ज़्यादा नफ़्ल पढे वह रात भर जागने वालों मे दाख़िल है. मुस्लम शरीफ़ में हज़रत उस्मान ग़नी रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि जिसने इशा की नमाज़ जमाअत से अदा की उसने आधी रात के क़याम का सवाब पाया और जिसने फ़ज्र भी जमाअत के साथ अदा की वह सारी रात इबादत करने वाले की तरह है.
और वो जो अर्ज़ करते हैं ऐ हमारे रब हमसे फेर दे जहन्नम का अज़ाब, बेशक उसका अज़ाब गले का गिल {फन्दा} है(8){65}
(8) यानी लाज़िम, जुदा न होने वाला. इस आयत में उन बन्दों की शब-बेदारी और इबादत का ज़िक्र फ़रमाने के बाद उनकी उस दुआ का बयान किया. इससे यह ज़ाहिर करना मक़सूद है कि वो इतनी ज़्यादा इबादत करने के बावुजूद अल्लाह तआला का ख़ौफ़ खाते हैं और उसके समक्ष गिड़गिड़ाते हैं.
बेशक वह बहुत ही बुरी ठहरने की जगह है{66} और वो कि जब ख़र्च करते हैं, न हद से बढ़ें और न तंगी करें(9)
(9) इसराफ़ गुनाहों में ख़र्च करने को कहते हैं. एक बुज़ुर्ग ने कहा कि इसराफ़ में भलाई नहीं, दूसरे बुज़ुर्ग ने कहा नेकी में इसराफ़ ही नहीं. और तंगी करना यह है कि अल्लाह तआला के निर्धारित   अधिकारों को अदा करने में कमी करे. यही हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया. हदीस शरीफ़ में है, सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया  जिस ने किसी हक़ को मना किया उसने तंगी की और जिसने नाहक़ में ख़र्च किया उसने इसराफ़ किया. यहाँ उन बन्दों के ख़्रर्च करने का हाल बयान फ़रमाया जा रहा है कि वो इसराफ़ और तंगी के दोनों बुरे तरीक़ों से बचते हैं.
और इन दोनों के बीच एतिदाल {संतुलन} पर रहें(10){67}
(10) अब्दुल मलिक बिन मरवान ने हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रदियल्लाहो अन्हो से अपनी बेटी ब्याहते वक़्त ख़र्च का हाल पूछा तो हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने फ़रमाया कि नेकी दो बुराइयों के बीच है. इससे मुराद यह थी कि ख़र्च में बीच का तरीक़ा इख़्तियार करना नेकी है और वह इसराफ़ यानी हद से अधिक खर्च करने और तंगी के बीच है जो दोनों बुराईयाँ है. इससे अब्दुल मलिक ने पहचान लिया कि वह इस आयत के मज़मून की तरफ़ इशारा कर रहे हैं. मुफ़स्सिरों का क़ौल है कि इस आयत में जिन हज़रात का ज़िक्र है वो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के बड़े सहाबा हैं जो न स्वाद के लिये खाते हैं, न ख़ूबसूरती और ज़ीनत (श्रंगार) के लिये पहनते हैं. भूख रोकना, तन ढाँपना, सर्दी गर्मी की तकलीफ़ से बचना, इतना ही उनका मक़सद है.
और वो जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे मअबूद को नहीं पूजते(11)
(11) शिर्क से बरी और बेज़ार हैं.
और उस जान को जिसकी अल्लाह ने हुरमत{इज़्ज़त} रखी(12)
(12) और उसका ख़ून मुबाह न किया जैसे कि मूमिन और एहद वाले उसको…
नाहक़ नहीं मारते और बदकारी नहीं करते, (13)
(13) नेकों से. इन बड़े गुनाहों की नफ़ी फ़रमाने में काफ़िरों पर तअरीज़ है जो इन बुराइयों में जकड़े हुए थे.
और जो वह काम करे वह सज़ा पाएगा, बढाया जाएगा उसपर अज़ाब क़यामत के दिन(14)
(14) यानी वह शिर्क के अज़ाब में भी गिरफ़्तार होगा और इन गुनाहों का अज़ाब उसपर और ज़्यादा किया जाएगा.
और हमेशा उसमें ज़िल्लत से रहेगा{69} मगर जो तौबह करे(15)
(15) शिर्क और बड़े गुनाहों से.
और ईमान लाए(16)
(16) सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर.
और अच्छा काम करे(17)
(17) यानी तौबह के बाद नेकी अपनाए.
तो ऐसों की बुराइयों को अल्लाह भलाइयों में बदल देगा, (18)
(18) यानी बुराई करने के बाद नेकी की तोफ़ीक़ देकर या ये मानी कि बुराईयों को तौबह से मिटा देगा और उनकी जगह ईमान और फ़रमाँबरदारी वग़ैरह नेकियाँ क़ायम फ़रमाएगा. (मदारिक) मुस्लिम की हदीस में है कि क़यामत के दिन एक व्यक्ति हाज़िर किया जाएगा. फ़रिश्ते अल्लाह के हुक्म से उसके छोटे गुनाह एक एक करके उसको याद दिलाते जाएंगे. वह इक़रार करता जाएगा और अपने बड़े गुनाहों के पेश होने से डरता होगा. इसके बाद कहा जाएगा कि हर एक बुराई के बदले तुझे नेकी दी गई. यह बयान फ़रमाते हुए सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को अल्लाह तआला की बन्दानवाज़ी और उसकी करम की शान पर ख़ुशी हुई और नूरानी चेहरे पर सुरूर से तबस्सुम के निशान ज़ाहिर हुए.
और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है{70} और जो तौबह करे और अच्छा काम करे तो वह अल्लाह की तरफ़ रूजू लाया जैसी चाहिये थी{71} और जो झूठी गवाही नहीं देते (19)
(19) और झूठों की मजलिस से अलग रहते हैं और उनके साथ मुख़ालिफ़त नहीं करते.
और जब बेहूदा पर गुज़रते हैं अपनी इज़्ज़त संभाले गुज़र जाते हैं(20){72}
(20) और अपने आए को लहव (व्यर्थ् कर्म) और बातिल से प्रभावित नहीं होने देते. ऐसी मजलिसों से परहेज़ करते हैं.
और वो कि जब उन्हें उनके रब की आयतें याद दिलाई जाएं तो उनपर (21)
(21)  अनजाने तरीक़े से. अज्ञानता के अन्दाज़ में.
बहरे अंधे होकर नहीं गिरते(22){73}
(22) कि न सोचें न समझें बल्कि होश के कानों से सुनते हैं और देखने वाली आँख से देखते हैं और नसीहत से फ़ायदा उठाते हैं. और इन आयतों पर फ़रमाँबरदारी के साथ अमल करते हैं.
और वो जो अर्ज़ करते हैं ऐ हमरे रब हमें दे हमारी बीबियों और हमारी औलाद से आँखों की ठण्डक(23)
(23) यानी फ़रहत और सुरूर. मुराद यह है कि हमें बीबियाँ और नेक औलाद, परहेज़ग़ार और अल्लाह से डरने वाली, अता फ़रमा कि उनके अच्छे कर्म, अल्लाह व रसूल के अहकाम का पालन देखकर हमारी आँखें ठण्डी और दिल ख़ुश हों.
और हमें परहेज़गारों का पेशवा बना(24){74}
(24) यानी हमें ऐसा परहेज़गार और ऐसा इबादत वाला और ख़ुदापरस्त बना कि हम परहेज़गारों की पेशवाई के क़ाबिल हों और वो दीन के कामों में हमारा अनुकरण करें. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि इसमें दलील है कि आदमी को दीनी पेशवाई और सरदारी की रग़बत और तलब चाहिये. इन आयतों में अल्लाह तआला ने अपने नेक बन्दों के गुण बयान फ़रमाए. इसके बाद उनकी जज़ा ज़िक्र फ़रमाई जाती हैं.
उनको जन्नत का सब से ऊँचा बालाख़ाना इनाम मिलेगा बदला उनके सब्र का और वहां मुजरे और सलाम के साथ उनकी पेशवाई होगी(25){75}
(25) फ़रिश्ते अदब के साथ उनका सत्कार करेंगे या अल्लाह तआला उनकी तरफ़ सलाम भेजेगा.
हमेशा उसमें रहेंगे, क्या ही अच्छी ठहरने और बसने की जगह{76} तुम फ़रमाओ (26)
(26) ऐ नबियों के सरदार, मक्के वालों से कि….
तुम्हारी कुछ क़द्र नहीं मेरे रब के यहाँ अगर तुम उसे न पूजो तो तुमने झुटलाया(27)
(27) मेरे रसूल और मेरी किताब को…
तो अब होगा वह अज़ाब कि लिपट रहेगा(28){77}
(28) यानी हमेशा का अज़ाब और लाज़मी हलाकत.

Kanzul Iman in Hindi SURAH AN-NAML

27 – सूरए नम्ल – पहला रूकू

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
طس ۚ تِلْكَ آيَاتُ الْقُرْآنِ وَكِتَابٍ مُّبِينٍ
هُدًى وَبُشْرَىٰ لِلْمُؤْمِنِينَ
الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُم بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ
إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ زَيَّنَّا لَهُمْ أَعْمَالَهُمْ فَهُمْ يَعْمَهُونَ
أُولَٰئِكَ الَّذِينَ لَهُمْ سُوءُ الْعَذَابِ وَهُمْ فِي الْآخِرَةِ هُمُ الْأَخْسَرُونَ
وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى الْقُرْآنَ مِن لَّدُنْ حَكِيمٍ عَلِيمٍ
إِذْ قَالَ مُوسَىٰ لِأَهْلِهِ إِنِّي آنَسْتُ نَارًا سَآتِيكُم مِّنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ آتِيكُم بِشِهَابٍ قَبَسٍ لَّعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ
فَلَمَّا جَاءَهَا نُودِيَ أَن بُورِكَ مَن فِي النَّارِ وَمَنْ حَوْلَهَا وَسُبْحَانَ اللَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
يَا مُوسَىٰ إِنَّهُ أَنَا اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ
وَأَلْقِ عَصَاكَ ۚ فَلَمَّا رَآهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ وَلَّىٰ مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ ۚ يَا مُوسَىٰ لَا تَخَفْ إِنِّي لَا يَخَافُ لَدَيَّ الْمُرْسَلُونَ
إِلَّا مَن ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسْنًا بَعْدَ سُوءٍ فَإِنِّي غَفُورٌ رَّحِيمٌ
وَأَدْخِلْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاءَ مِنْ غَيْرِ سُوءٍ ۖ فِي تِسْعِ آيَاتٍ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ وَقَوْمِهِ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ
فَلَمَّا جَاءَتْهُمْ آيَاتُنَا مُبْصِرَةً قَالُوا هَٰذَا سِحْرٌ مُّبِينٌ
وَجَحَدُوا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَا أَنفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا ۚ فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِينَ


सूरए नम्ल मक्का में उतरी, इसमें 93 आयतें, 7 रूकू हैं
पहला रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए नम्ल मक्के में उतरी, इसमें सात रूकू, तिरानवे आयतें, एक हज़ार तीन सौ सत्रह कलिमे और चार हज़ार सात सौ निनानवे अक्षर हैं.
ये आयतें हैं क़ुरआन और रौशन किताब की(2){1}
(2) जो सच और झूट में फ़र्क़ करती है और जिसमें इल्म और हिकमत के खज़ाने रखे गए हैं.
हिदायत और ख़ुशख़बरी ईमान वालों को{2} जो नमाज़ क़ायम रखते हैं(3)
(3) और उस पर हमेशगी करते हैं और उसकी शर्तों और संस्कार और तमाम अधिकारों की हिफ़ाज़त करते हैं.
और ज़कात देते है(4)
(4) ख़ुश दिली से.
और वो आख़िरत पर यक़ीन रखते हैं{3} वो जो आख़िरत पर ईमान नहीं लाते, हमने उनके कौतुक उनकी निगाह में भलें कर दिखाए हैं(5){4}
(5) कि वो अपनी बुराइयों को शवहात यानि वासनाओ के कारण से भलाई जानते हैं.
तो वो भटक रहे हैं, ये वो हैं जिनके लिये बड़ा अज़ाब है(6)
(6) दुनिया में क़त्ल और गिरफ़्तारी.
और यही आख़िरत में सबसे बढ़कर नुक़सान में(7){5}
(7) उनका परिणाम हमेशा का अज़ाब है. इसके बाद सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से सम्बोधन होता है.
और बेशक तुम क़ुरआन सिखाए जाते हो हिकमत वाले इल्म वाले की तरफ़ से(8){6}
(8) इसके बाद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का एक वाक़िआ बयान किया जाता है जो इल्म की गहरी बातों और हिकमत की बारीकियों पर आधारित है.
जब कि मूसा ने अपनी घर वाली से कहा(9)
(9) मदयन से मिस्र को सफ़र करते हुए अंधेरी रात में, जबकि बर्फ़ पड़ने से भारी सर्दी पड़ रही थी और रास्ता खो गया था और बीबी साहिबा को ज़चगी का दर्द शुरू हो गया था.
मुझे  एक आग नज़र पड़ी है, बहुत जल्द मैं तुम्हारे पास उसकी कोई ख़बर लाता हूँ या उसमें से कोई चमकती चिंगारी लाऊंगा ताकि तुम तापो(10){7}
(10) और सर्दी की तक़लीफ़ से अम्न पाओ.
फिर जब आग के पास आया, निदा (पुकार) की गई कि बरकत दिया गया वह जो इस आग की जलवा-गाह (दर्शन स्थल) में है यानी मूसा और जो उसके आस पास हैं यानी फ़रिश्ते(11)
(11) यह हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की फ़ज़ीलत है, अल्लाह तआला की तरफ से बरकत के साथ.
और पाकी है अल्लाह को जो रब है सारे जगत का{8} ऐ मूसा बात यह है कि मैं ही हूँ अल्लाह इज़्ज़त वाला हिकमत वाला{9}और अपना असा डाल दे(12)
(12) चुंनान्चे हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म से अपनी लाठी डाल दी और वह साँप हो गई.
फिर मूसा ने उसे देखा लहराता हुआ मानो साँप है पीठ फेर कर चला और मुड़कर न देखा, हमने फ़रमाया ऐ मूसा डर नहीं बेशक मेरे हुज़ूर रसूलों को डर नहीं होता(13){10}
(13)  न साँप का, न किसी चीज़ का, यानी जब मैं उन्हें अम्न दूँ तो फिर क्या अन्देशा.
हाँ जो कोई ज़ियादती करे(14)
(14) उसको डर होगा और वह भी जब तौबह करे.
फिर बुराई के बाद भलाई से बदले तो बेशक मैं बख़्शने वाला मेहरबान हूँ (15){11}
(15) तौबह क़ुबूल करता हूँ और बख़्श देता हूँ. इसके बाद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को दूसरी निशानी दिखाई गई, फ़रमाया गया,
और अपना हाथ अपने गिरेबान में डाल निकलेगा सफ़ेद चमकता बे ऐब (16)
(16) यह निशानी है उन…
नौ निशानियों में(17)
(17) जिन के साथ रसूल बना कर भेजे गए हो.
फ़िरऔन और उसकी क़ौम की तरफ, बेशक वो बेहुक्म लोग हैं{12} फिर जब हमारी निशानियाँ आंखें खोलती उनके पास आई(18)
(18) यानी उन्हें चमत्कार दिखाए गए.
बोले यह तो खुला जादू है {13} और उनके इन्कारी हुए और उनके दिलों में उनका यक़ीन था(19)
(19) और वो जानते थे कि बेशक ये निशानियाँ अल्लाह की तरफ़ से हैं लेकिन इसके बावुजूद अपनी ज़बानों से इन्कार करते रहे.
ज़ुल्म और घमण्ड से, तो देखो कैसा अंजाम हुआ फ़सादियों का (20){14}
(20) कि डुबो कर हलाक किये गए.



27 – सूरए नम्ल – दूसरा रूकू

وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ عِلْمًا ۖ وَقَالَا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي فَضَّلَنَا عَلَىٰ كَثِيرٍ مِّنْ عِبَادِهِ الْمُؤْمِنِينَ
وَوَرِثَ سُلَيْمَانُ دَاوُودَ ۖ وَقَالَ يَا أَيُّهَا النَّاسُ عُلِّمْنَا مَنطِقَ الطَّيْرِ وَأُوتِينَا مِن كُلِّ شَيْءٍ ۖ إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ الْفَضْلُ الْمُبِينُ
وَحُشِرَ لِسُلَيْمَانَ جُنُودُهُ مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنسِ وَالطَّيْرِ فَهُمْ يُوزَعُونَ
حَتَّىٰ إِذَا أَتَوْا عَلَىٰ وَادِ النَّمْلِ قَالَتْ نَمْلَةٌ يَا أَيُّهَا النَّمْلُ ادْخُلُوا مَسَاكِنَكُمْ لَا يَحْطِمَنَّكُمْ سُلَيْمَانُ وَجُنُودُهُ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ
فَتَبَسَّمَ ضَاحِكًا مِّن قَوْلِهَا وَقَالَ رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَىٰ وَالِدَيَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ وَأَدْخِلْنِي بِرَحْمَتِكَ فِي عِبَادِكَ الصَّالِحِينَ
وَتَفَقَّدَ الطَّيْرَ فَقَالَ مَا لِيَ لَا أَرَى الْهُدْهُدَ أَمْ كَانَ مِنَ الْغَائِبِينَ
لَأُعَذِّبَنَّهُ عَذَابًا شَدِيدًا أَوْ لَأَذْبَحَنَّهُ أَوْ لَيَأْتِيَنِّي بِسُلْطَانٍ مُّبِينٍ
فَمَكَثَ غَيْرَ بَعِيدٍ فَقَالَ أَحَطتُ بِمَا لَمْ تُحِطْ بِهِ وَجِئْتُكَ مِن سَبَإٍ بِنَبَإٍ يَقِينٍ
إِنِّي وَجَدتُّ امْرَأَةً تَمْلِكُهُمْ وَأُوتِيَتْ مِن كُلِّ شَيْءٍ وَلَهَا عَرْشٌ عَظِيمٌ
جَدتُّهَا وَقَوْمَهَا يَسْجُدُونَ لِلشَّمْسِ مِن دُونِ اللَّهِ وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ السَّبِيلِ فَهُمْ لَا يَهْتَدُونَ
أَلَّا يَسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي يُخْرِجُ الْخَبْءَ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَيَعْلَمُ مَا تُخْفُونَ وَمَا تُعْلِنُونَ
اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ ۩
۞ قَالَ سَنَنظُرُ أَصَدَقْتَ أَمْ كُنتَ مِنَ الْكَاذِبِينَ
اذْهَب بِّكِتَابِي هَٰذَا فَأَلْقِهْ إِلَيْهِمْ ثُمَّ تَوَلَّ عَنْهُمْ فَانظُرْ مَاذَا يَرْجِعُونَ
قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ إِنِّي أُلْقِيَ إِلَيَّ كِتَابٌ كَرِيمٌ
إِنَّهُ مِن سُلَيْمَانَ وَإِنَّهُ بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
أَلَّا تَعْلُوا عَلَيَّ وَأْتُونِي مُسْلِمِينَ


और बेशक हमने दाऊद और सुलैमान को बड़ा इल्म अता फ़रमाया(1)
(1) यानी क़ज़ा का इल्म और राजनीति. हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम को पहाड़ों और पक्षियों की तस्बीह का इल्म दिया और हज़रत सुलैमान को चौपायों और पक्षियों की बोलियों का. (खाज़िन)
और दोनो ने कहा सब ख़ूबियां अल्लाह को जिसने हमें अपने बहुत से ईमान वाले बन्दों पर बुज़ुर्गी बख़्शी (2){15}
(2) नबुव्वत और हुकूमत अता फ़रमा कर और जिन्न व इन्सान और शैतानों को उनके आधीन करके.
और सुलैमान दाऊद का जानशीन हुआ(3)
(3) नबुव्वत और इल्म और मुल्क में.
और कहा ऐ लोगों हमें परिन्दों की बोली सिखाई गई और हर चीज़ में से हमको अता हुआ(4)
(4) यानी दुनिया और आख़िरत की नेअमतें बहुतात से हमको अता की गई.
बेशक यही ज़ाहिर फ़ज़्ल है (5){16}
(5) रिवायत है कि हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम को अल्लाह तआला ने पू्र्व और पश्चिम की धरती की हुकूमत अता की. चालीस साल आप उसके मालिक रहे फिर सारी दुनिया की हुकमत दी गई. जिन्न, इन्सान, शैतान, पक्षी, चौपाए, जानवर, सब पर आपकी हुकूमत थी और हर एक चीज़ की ज़बान आप को अता फ़रमाई और अजीब अनोखी सनअतें आप के ज़माने में काम में लाईं गईं.
और जमा किये गए, सुलैमान के लिये उसके लश्कर, जिन्नों और आदमियों और परिन्दों से, तो वो रोके जाते थे(6){17}
(6) आगे बढ़ने से ताकि सब इकट्ठे हो जाएं, फिर चलाए जाते थे.
यहां तक कि जब च्यूंटियों के नाले पर आए(7)
(7) यानी ताइफ़ या शाम में उस वादी पर गुज़रें जहाँ चूंटियाँ बहुत थीं.
एक च्यूंटी बोली(8)
(8) जो चूंटीयों की रानी थी, वह लंगड़ी थी. जब हज़रत क़तादह रदियल्लाहो अन्हो कूफ़ा में दाखिल हुए और वहाँ के लोग आपके आशिक़ हो गए तो आपने लोगों से कहा जो चाहो पूछो. हज़रत इमाम अबू हनीफ़ा उस वक़्त नौ जवान थे, आपने पूछा कि हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की चूंटी मादा थी या नर. हज़रत क़तादह ख़ामोश हो गए तो इमाम साहिब ने फ़रमाया कि वह मादा थी आपसे पूछा गया कि यह आप को किस तरह मालूम हुआ. आपने फ़रमाया क़ुरआन शरीफ़ में इरशाद हुआ “क़ालत नम्लतुन”  अगर नर होती तो “क़ाला नम्लतुन” आता (सुब्हानल्लाह, इससे हज़रत इमाम की शाने इल्म मालूम होती है) ग़रज़ जब उस चूंटी की रानी ने हज़रत सुलैमान के लश्कर को देखा तो कहने लगी.
ऐ च्यूंटियों, अपने घरों में चली जाओ तुम्हें कुचल न डालें सुलैमान और उनके लश्कर बेख़बरी में(9){18}
(9) यह उसने इसलिये कहा कि वह जानती थी कि हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम नबी हैं, इन्साफ़ वाले हैं, अत्याचार और ज़ियादती आपकी शान नहीं है. इसलिये अगर आप के लश्कर से चूंटियाँ कुचल जाएंगी तो बेख़बरी ही में कुचल जाएंगी कि वो गुज़रते हों और इस तरफ़ तवज्जोह न करें. चूंटी की यह बात हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने तीन मील से सुन ली और हवा हर शख़्स का कलाम आपके मुबारक कानों तक पहुंचाती थी. जब आप चूंटियों की घाटी पर पहुंचे तो आपने अपने लश्करों को ठहरने का हुक्म दिया यहाँ तक कि चूंटियाँ अपने घरों में दाख़िल हो गईं. हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम का सफ़र अगरचे हवा पर था मगर दूर नहीं कि ये मका़म आपके उतरने की जगह हो.
तो उसकी बात से मुस्कुरा कर हंसा(10)
(10) नबियों का हंसना तबस्सुम ही होता है जैसा कि हदीसों में आया है. वो हज़रात क़हक़हा मार कर नहीं हंसते थे.
और अर्ज़ की ऐ मेरे रब मुझे तौफ़िक़ (सामर्थ्य) दे कि मैं शुक्र करूं तेरे एहसान का जो तूने (11)
(11) नबुव्वत और हुकूमत और इल्म अता फ़रमाकर.
मुझपर और मेरे माँ बाप पर किये और यह कि मैं वह भला काम कर सकूं जो तुझे पसन्द आए और मुझे अपनी रहमत से अपने उन बन्दों में शामिल कर जो तेरे ख़ास क़ुर्ब के हक़दार हैं(12){19}
(12) नबी और औलिया हज़रात.
और परिन्दों का जायज़ा लिया तो बोला मुझे क्या हुआ कि मैं हुदहुद को नहीं देखता या वह वाक़ई हाज़िर नहीं{20} ज़रूर मैं उसे सख़्त अज़ाब करूंगा(13)
(13) उसके पर उखाड़कर, या उसको उसके प्यारों से अलग करके या उसको उसके क़रीब वालों का ख़ादिम बनाकर या उसको ग़ैर जानवरों के साथ क़ैद करके और हुदहुद को मसलिहत के अनुसार अज़ाब करना आपके लिये हलाल था और जब पक्षी आप के आधीन किये गए थे तो उनको अदब और सियासत सिखाना इसकी ज़रूरत है.
या ज़िब्ह करूंगा या कोई रौशन सनद (प्रमाण) मेरे पास लाए(14){21}
(14) जिससे उसकी मअज़ूरी और लाचारी ज़ाहिर हो.
तो हुदहुद कुछ ज़्यादा देर न ठहरा और आकर (15)
(15) बहुत विनम्रता और इन्किसारी और अदब के साथ माफ़ी चाह कर.
अर्ज़ की कि मैं वह बात देख आया हूँ जो हुज़ूर ने न देखी और मैं सबा शहर से हुज़ूर के पास एक यक़ीनी ख़बर लाया हँ {22} मैं ने एक औरत देखी (16)
(16) जिसका नाम बिल्क़ीस है.
कि उनपर बादशाही कर रही है और उसे हर चीज़ में से मिला है(17)
(17) जो बादशाहों की शान के लायक़ होता है.
और उसका बड़ा तख़्त है (18){23}
(18) जिसकी लम्बाई अस्सी गज, चौड़ाई चालीस गज, सोने चाँदी का, जवाहिरात से सजा हुआ.
मैं ने उसे और उसकी क़ौम को पाया कि अल्लाह को छोड़कर सूरज को सज्दा करते हैं (19)
(19) क्योंकि वो लोग सूरज परस्त मजूसी थे.
और शैतान ने उनके कर्म उनकी निगाह में सवार कर उनको सीधी राह से रोक दिया(20)
(20)सीधी राह से मुराद सच्चाई का तरीक़ा और दीने इस्लाम है.
तो वो राह नहीं पाते {24} क्यों नहीं सज्दा करते अल्लाह को जो निकालता है आसमानों और ज़मीन की छुपी चीज़ें (21)
(21) आसमान की छुपी चीज़ों से मेंह और ज़मीन की छुपी चीज़ों से पेड़ पौदें मुराद हैं.
और जानता है जो कुछ तुम छुपाते और ज़ाहिर करते हो(22){25}
(22) इसमें सूरज के पुजारियों बल्कि सारे बातिल परस्तों का रद है जो अल्लाह तआला के सिवा किसी को भी पूजे, मक़सूद यह है कि इबादत का मुस्तहिक़ सिर्फ़ वही है जो आसमान और ज़मीन की सृष्टि पर क़ुदरत रखता हो और सारी जानकारी का मालिक हो, जो ऐसा नहीं, वह किसी तरह इबादत का मुस्तहिक़ नहीं.
अल्लाह है कि उसके सिवा कोई सच्चा मअबूद नहीं, वह बड़े अर्श का मालिक है {26} सुलैमान ने फ़रमाया, अब हम देखेंगे कि तूने सच कहा या तू झूटों में है (23) {27}
(23) फिर हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने एक खत लिखा जिसका मज़मून यह था कि “अल्लाह के बन्दे, दाऊद के बेटे सुलैमान की तरफ़ से शहरे सबा की रानी बिल्कीस के लिये… अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला… उसपर सलाम जो हिदायत क़ुबूल करे, उसके बाद मुद्दआ यह कि तुम मुझ पर बलन्दी न चाहो और मेरे हुज़ूर फ़रमाँबरदार होकर हाज़िर हो, उसपर आपने अपनी मोहर लगाई और हुदहुद से फ़रमाया.”
मेरा यह फ़रमान ले जाकर उनपर डाल फिर उनसे अलग हट कर देख कि वो क्या जवाब देते हैं(24){28}
(24) चुनांन्चे हुदहुद वह मुबारक खत लेकर बिल्क़ीस के पास पहुंचा, उस वक़्त बिल्क़ीस के चारों तरफ़ उसके वज़ीरों और सलाहकारों की भीड़ थी. हुदहुद ने वह खत बिल्कीस की गोद में डाल दिया और वह उसको देखकर खौफ़ से लरज़ गई और फिर उस पर मोहर देखकर.
वह औरत बोली, ऐ सरदारो बेशक मेरी तरफ़ एक इज़्ज़त वाला ख़त डाला गया(25){29}
(25) उसने उस खत को इज़्ज़त वाला या तो इसलिये कहा कि उसपर मोहर लगी हुई थी. उसने जाना कि किताब का भेजने वाला बड़ी बुज़ुर्गी वाला बादशाह है. या इसलिये कि उस खत की शुरूआत अल्लाह तआला के नामे पाक से थी फिर उसने बताया कि वह ख़त किस की तरफ़ से आया है. चुंनान्चे कहा.
बेशक वह सुलैमान की तरफ़ से है और बेशक वह अल्लाह के नाम से है जो बहुत मेहरबान रहम वाला {30} यह कि मुझ पर बलन्दी न चाहो(26)
(26) यानी मेरे हुक्म को पूरा करो और घमण्ड न करो जैसा कि कुछ बादशाह किया करते हैं.
और गर्दन रखते मेरे हुज़ूर हाज़िर हो(27) {31}
(27) फ़रमाँबरदारी की शान से, खत का यह मज़मून सुनाकर बिल्क़ीस अपने सलाहकारों वज़ीरों की तरफ़ मुतवज्जह हुई.



27 – सूरए नम्ल – तीसरा रूकू

قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَفْتُونِي فِي أَمْرِي مَا كُنتُ قَاطِعَةً أَمْرًا حَتَّىٰ تَشْهَدُونِ
قَالُوا نَحْنُ أُولُو قُوَّةٍ وَأُولُو بَأْسٍ شَدِيدٍ وَالْأَمْرُ إِلَيْكِ فَانظُرِي مَاذَا تَأْمُرِينَ
قَالَتْ إِنَّ الْمُلُوكَ إِذَا دَخَلُوا قَرْيَةً أَفْسَدُوهَا وَجَعَلُوا أَعِزَّةَ أَهْلِهَا أَذِلَّةً ۖ وَكَذَٰلِكَ يَفْعَلُونَ
وَإِنِّي مُرْسِلَةٌ إِلَيْهِم بِهَدِيَّةٍ فَنَاظِرَةٌ بِمَ يَرْجِعُ الْمُرْسَلُونَ
فَلَمَّا جَاءَ سُلَيْمَانَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالٍ فَمَا آتَانِيَ اللَّهُ خَيْرٌ مِّمَّا آتَاكُم بَلْ أَنتُم بِهَدِيَّتِكُمْ تَفْرَحُونَ
ارْجِعْ إِلَيْهِمْ فَلَنَأْتِيَنَّهُم بِجُنُودٍ لَّا قِبَلَ لَهُم بِهَا وَلَنُخْرِجَنَّهُم مِّنْهَا أَذِلَّةً وَهُمْ صَاغِرُونَ
قَالَ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَيُّكُمْ يَأْتِينِي بِعَرْشِهَا قَبْلَ أَن يَأْتُونِي مُسْلِمِينَ
قَالَ عِفْرِيتٌ مِّنَ الْجِنِّ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَن تَقُومَ مِن مَّقَامِكَ ۖ وَإِنِّي عَلَيْهِ لَقَوِيٌّ أَمِينٌ
قَالَ الَّذِي عِندَهُ عِلْمٌ مِّنَ الْكِتَابِ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَن يَرْتَدَّ إِلَيْكَ طَرْفُكَ ۚ فَلَمَّا رَآهُ مُسْتَقِرًّا عِندَهُ قَالَ هَٰذَا مِن فَضْلِ رَبِّي لِيَبْلُوَنِي أَأَشْكُرُ أَمْ أَكْفُرُ ۖ وَمَن شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ ۖ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيٌّ كَرِيمٌ
قَالَ نَكِّرُوا لَهَا عَرْشَهَا نَنظُرْ أَتَهْتَدِي أَمْ تَكُونُ مِنَ الَّذِينَ لَا يَهْتَدُونَ
فَلَمَّا جَاءَتْ قِيلَ أَهَٰكَذَا عَرْشُكِ ۖ قَالَتْ كَأَنَّهُ هُوَ ۚ وَأُوتِينَا الْعِلْمَ مِن قَبْلِهَا وَكُنَّا مُسْلِمِينَ
وَصَدَّهَا مَا كَانَت تَّعْبُدُ مِن دُونِ اللَّهِ ۖ إِنَّهَا كَانَتْ مِن قَوْمٍ كَافِرِينَ
قِيلَ لَهَا ادْخُلِي الصَّرْحَ ۖ فَلَمَّا رَأَتْهُ حَسِبَتْهُ لُجَّةً وَكَشَفَتْ عَن سَاقَيْهَا ۚ قَالَ إِنَّهُ صَرْحٌ مُّمَرَّدٌ مِّن قَوَارِيرَ ۗ قَالَتْ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي وَأَسْلَمْتُ مَعَ سُلَيْمَانَ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ


बोली, ऐ सरदारों मेरे इस मामले में मुझे राय दो, मैं किसी मामले में कोई क़तई फ़ैसला नहीं करती जब तक तुम मेरे पास हाज़िर न हो{32} वो बोले हम ज़ोर वाले और बड़ी सख़्त लड़ाई वाले हैं(1)
(1) इससे उनकी मुराद यह थी कि अगर तेरी राय जंग की हो तो हम लोग उसके लिये तैयार हैं, बहादुर और साहसी है, क़ुव्वत और शक्ति के मालिक हैं. बहुत से लश्कर रखते हैं. जंगों का अनुभव भी है.
और इख़्तियार तेरा है तू नज़र कर कि क्या हुक्म देती है(2){33}
(2) ऐ रानी, हम तेरी फ़रमाँबरदारी करेंगे. तेरे हुक्म के मुन्तज़िर हैं. इस जवाब में उन्होंने यह इशारा किया कि उनकी राय जंग की है या उनका इरादा यह हो कि हम जंगी लोग हैं. राय और मशवरा हमारा काम नहीं है, तू ख़ुद अक़्ल और तदबीर वाली है. हम हर हाल में तेरी आज्ञा का पालन करेंगे. जब बिल्क़ीस ने देखा कि ये लोग जंग की तरफ़ झुके हैं तो उसने उन्हें उनकी राय की ख़ता पर आगाह किया और जंग के नतीजे सामने किये.
बोली बेशक बादशाह जब किसी बस्ती में (3)
(3) अपने ज़ोर और क़ुव्वत से.
दाख़िल होते हैं उसे तबाह कर देते हैं और उसके इज़्ज़त वालों को (4)
(4) क़त्ल और क़ैद और अपमान के साथ.
ज़लील और ऐसा ही करते हैं(5){34}
(5) यही बादशाहों का तरीक़ा है. बादशाहों की आदत का. जो उसको इल्म या उसकी बुनियाद पर उसने यह कहा और मुराद उसकी यह थी कि जंग उचित नहीं है. उसमें मुल्क और मुल्क के निवासियों की तबाही व बरबादी का ख़तरा है. उसके बाद अपनी राय का इज़हार किया और कहा.
और मैं उनकी तरफ़ एक तोहफ़ा भेजने वाली हूँ फिर देखूंगी कि एलची क्या जवाब लेकर पलटे(6){35}
(6) इससे मालूम हो जाएगा कि वह बादशाह हैं तो हदिया क़ुबूल कर लेंगे और अगर नबी हैं तो भेंट स्वीकार न करेंगे और सिवा उसके हम उनके दीन का अनुकरण करें, वह और किसी बात से राज़ी न होंगे. तो उसने पांच सौ ग़ुलाम और पाँच सौ दासियाँ बेहतरीन लिबास और ज़ेवरों के साथ सजा कर सोने चांदी की ज़ीनों पर सवार करके भेजे और पाँच सौ ईंटें सोने की और जवाहिर व ताज और मुश्क व अंबर वग़ैरह, एक ख़त के साथ अपने ऐलची के हमराह रवाना किये. हुदहुद यह देखकर चल दिया और उसने हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के पास सारी ख़बर पहुंचाई. आपने हुक्म दिया कि सोने चाँदी की ईंटें बनाकर सत्ताईस मील क्षैत्रफ़ल के मैदान में बिछा दी जाएं और उसके चारों तरफ़ सोने चाँदी की ऊँची दीवार बना दी जाए और समन्दर व ख़ुश्की के सुन्दर जानवर और जिन्नात के बच्चे मैदान के दाएं बाएं हाज़िर किये जाएं.
फिर जब वह (7)
(7) यानी बिल्क़ीस का पयामी, अपनी जमाअत समेत हदिया लेकर.
सुलैमान के पास आया फ़रमाया क्या माल से मेरी मदद करते हो, तो जो मुझे अल्लाह ने दिया(8)
(8) यानी दीन और नबुव्वत और हिकमत व मुल्क.
वह बेहतर है उससे जो तुम्हें दिया(9)
(9) दुनिया का माल अस्बाब.
बल्कि तुम्हीं अपने तोहफ़े पर ख़ुश होते हो(10){36}
(10) यानी तुम घमण्डी हो. दुनिया पर घमण्ड करते हो, और एक दूसरे के हदिये पर ख़ुश होते हो. मुझे न दुनिया से ख़ुशी होती है न उसकी हाजत. अल्लाह तआला ने मुझे इतना बहुत कुछ अता फ़रमाया है कि औरों को न दिया, दीन और नबुव्वत से मुझको बुज़र्गी दी. उसके बाद सुलैमान अलैहिस्सलाम ने वफ्द के सरदार मुदिर इब्ने अम्र से फ़रमाया कि ये हदिये लेकर….
पलट जा उनकी तरफ़ तो ज़रूर हम उनपर वो लश्कर लाएंगे जिन की उन्हें ताक़त न होगी और ज़रूर हम उनको इस शहर से ज़लील करके  निकाल देंगे यूं कि वो पस्त होंगे(11){37}
(11)  यानी अगर वह मेरे पास मुसलमान होकर हाज़िर न हुए तो ये अंजाम होगा. जब क़ासिद हदिये लेकर बिल्क़ीस के पास वापस गए और तमाम हालात सुनाए तो उसने कहा, बेशक वह नबी हैं और हमें उनसे मुक़ाबले की ताक़त नहीं , उसने अपना तख़्त अपने सात महलों में से सबसे पिछले महल में मेहफ़ूज़ करके तमाम दरवाज़ों पर ताले डाल दिये और उनपर पहरेदार मुक़र्रर कर दिये और हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर होने का इन्तिज़ाम किया ताकि देखे कि आप उसको क्या हुक्म फ़रमाते हैं इतने क़रीब पहुंच गई कि हज़रत से सिर्फ़ एक फ़रसंग (लगभग तीन मील) का फ़ासला रह गया.
सुलैमान ने फ़रमाया ऐ दरबारियों तुम में कौन है वह उसका तख़्त मेरे पास ले आए पहले इसके कि वह मेरे हुज़ूर मुतीअ (फ़रमांबरदार) होकर हो (12){38}
(12) इससे आपका मक़सद यह था कि उसका तख़्त हाज़िर करके उसको अल्लाह तआला की क़ुदरत और अपनी नबुव्वत पर दलालत करने वाला चमत्कार दिखाएं. कुछ ने कहा है कि आपने चाहा कि उसके आने से पहले उसकी बनावट बदल दें और उससे उसकी अक़्ल का इम्तिहान फ़रमाएं कि पहचान सकती हैं या नहीं.
एक बड़ा ख़बीस जिन्न बोला कि मैं वह तख़्त हुज़ूर में हाज़िर कर दूंगा इसके पहले कि हुज़ूर इजलास बरख़ास्त करें(13)
(13) और आपका इजलास सुबह से दोपहर तक होता था.
और मैं बेशक उसपर क़ुव्वत वाला अमानतदार हूँ(14){39}
(14) हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, मैं उससे जल्द चाहता हूँ.
उसने अर्ज़ की जिसके पास किताब का इल्म था(15)
(15) यानी आपके वज़ीर आसिफ़ बिन बर्ख़िया, जो अल्लाह तआला का इस्मे आज़म जानते थे.
कि मैं उसे हुज़ूर में हाज़िर कर दूंगा एक पल मारने से पहले(16)
(16) हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया, लाओ हाज़िर करो, आसिफ़ ने अर्ज़ किया, आप नबी इब्ने नबी है और जो रूत्बा अल्लाह की बारगाह में आपको हासिल है, यहाँ किस को मयस्सर है. आप दुआ करें तो वह आपके पास ही होगा. आपने फ़रमाया, तुम सच कहते हो और दुआ की. उसी वक़्त तख़्त ज़मीन के नीचे चलकर हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की कुर्सी के क़रीब नमूदार हुआ.
फिर जब सुलैमान ने तख़्त को अपने पास रखा देखा कहा यह मेरे रब फ़ज़्ल से है ताकि मुझे आज़माए कि मैं शुक्र करता हूँ या नाशुक्री, और जो शुक्र करे वह अपने भले को शुक्र करता है(17)
(17) कि इस शुक्र का नफ़ा ख़ुद उस शुक्रगुज़ार की तरफ़ पलटना है.
और जो नाशुक्री करे तो मेरा रब बे पर्वाह है सब ख़ूबियों वाला{40} सुलैमान ने हुक्म दिया औरत का तख़्त उसके सामने बनावट बदल कर बेगाना करदो कि हम देखें कि वह राह पाती है या उनमें होती है जो नावाक़िफ़ रहे{41} फिर जब वह आई उससे कहा गया क्या तेरा तख़्त ऐसा ही है, बोली गोया यह वही है, (18)
(18) इस जवाब से उसकी अक़्लमन्दी का कमाल मालूम हुआ. अब उससे कहा गया कि यह तेरा ही सिंहासन है, दरवाज़ा बन्द करने, ताला लगाने, पहरेदार बिठाने का क्या फ़ायदा हुआ? इसपर उसने कहा.
और हमको इस वाक़ए (घटना) से पहले ख़बर मिल चुकी (19)
(19) अल्लाह तआला की क़ुदरत और आपकी नबुव्वत की सच्चाई की, हुदहुद के वाक़ए से और वफ़्द के सरदार से.
और हम फ़रमांबरदार हुए(20){42}
(20)हमने आपकी फ़रमाँबरदारी और आपकी इताअत इख़्तियार की.
और उसे रोका(21)
(21) अल्लाह की इबादत और तौहीद से, या इस्लाम की तरफ़ बढ़ने से.
उस चीज़ ने जिसे वह अल्लाह के सिवा पूजती थी, बेशक वह काफ़िर लोगों में से थी{43} उससे कहा गया सेहन (आंगन) में आ(22)
(22) वह सहन शफ़्फ़ाफ़ आबगीने का था. उसके नीचे पानी जारी था. उसमें मछलियाँ थीं और उसके बीच में हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम का तख़्त था जिसपर आप बैठे थे.
फिर जब उसने उसे देखा उसे गहरा पानी समझी और अपनी साक़ें (पिंडलियां) खोली (23)
(23) ताकि पानी में चलकर हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में हाज़िर हो.
सुलैमान ने फ़रमाया यह तो एक चिकना सेहन है शीशों जड़ा(24)
(24) यह पानी नहीं है, यह सुनकर बिल्क़ीस ने अपनी पिंडलियाँ छुपा लीं और इससे उसको बड़ा अचरज हुआ और उसने यक़ीन किया कि हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम का मुल्क और हुकूमत अल्लाह की तरफ़ से है. इन चमत्कारों से उसने अल्लाह तआला की तौहीद और आपकी नबुव्वत पर इस्तिदलाल किया. अब सुलैमान अलेहिस्सलाम ने उसको इस्लाम की तरफ़ बुलाया.
औरत ने अर्ज़ की ऐ मेरे रब मैंने अपनी जान पर ज़ुल्म किया(25)
(25) कि तेरे ग़ैर को पूजा, सूरज की उपासना की.
और अब सुलैमान के साथ अल्लाह के हुज़ूर गर्दन रखती हूँ जो रब सारे जगत का(26){44}
(26) चुनांन्चे उसने सच्चे दिल से तौहीद और इस्लाम को क़ुबूल किया और ख़ालिस अल्लाह तआला की इबादत इख़्तियार की.



27 – सूरए नम्ल -चौथा रूकू

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَىٰ ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ فَإِذَا هُمْ فَرِيقَانِ يَخْتَصِمُونَ
قَالَ يَا قَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُونَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ ۖ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُونَ اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ
قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَن مَّعَكَ ۚ قَالَ طَائِرُكُمْ عِندَ اللَّهِ ۖ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُونَ
وَكَانَ فِي الْمَدِينَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ
قَالُوا تَقَاسَمُوا بِاللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُ وَأَهْلَهُ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ أَهْلِهِ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ
وَمَكَرُوا مَكْرًا وَمَكَرْنَا مَكْرًا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ
فَانظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ مَكْرِهِمْ أَنَّا دَمَّرْنَاهُمْ وَقَوْمَهُمْ أَجْمَعِينَ
فَتِلْكَ بُيُوتُهُمْ خَاوِيَةً بِمَا ظَلَمُوا ۗ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَةً لِّقَوْمٍ يَعْلَمُونَ
وَأَنجَيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ
وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ وَأَنتُمْ تُبْصِرُونَ
أَئِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِّن دُونِ النِّسَاءِ ۚ بَلْ أَنتُمْ قَوْمٌ تَجْهَلُونَ
۞ فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلَّا أَن قَالُوا أَخْرِجُوا آلَ لُوطٍ مِّن قَرْيَتِكُمْ ۖ إِنَّهُمْ أُنَاسٌ يَتَطَهَّرُونَ
فَأَنجَيْنَاهُ وَأَهْلَهُ إِلَّا امْرَأَتَهُ قَدَّرْنَاهَا مِنَ الْغَابِرِينَ
وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِم مَّطَرًا ۖ فَسَاءَ مَطَرُ الْمُنذَرِينَ


और बेशक हमने समूद की तरफ़ उनके हमक़ौम सालेह को भेजा कि अल्लाह को पूजो(1)
(1) और किसी को उसका शरीक न करो.
तो जभी वो दो गिरोह हो गए (2)
(2) एक ईमानदार और एक काफ़िर.
झगड़ा करते (3){45}
(3) हर पक्ष अपने ही को सच्चाई पर कहता और दोनों आपस में झगड़ते. काफ़िर गिरोह ने कहा, ऐ सालेह, जिस अज़ाब का तुम वादा देते हो उसको लाओ अगर रसूलों में से हो.
सालेह ने फ़रमाया ऐ मेरी क़ौम क्यों बुराई की जल्दी करते हो (4)
(4) यानी बला और अज़ाब का.
भलाई से पहले (5)
(5) भलाई से मुराद आफ़ियत और रहमत है.
अल्लाह से बख़्शिश क्यों नहीं मांगते(6)
(6) अज़ाब उतरने से पहले, कुफ़्र से तौबह कर के, ईमान लाकर.
शायद तुम पर रहम हो (7){46}
(7) और दुनिया में अज़ाब न किया जाए.
बोले हमने बुरा शगुन लिया तुमसे और तुम्हारे साथियों से (8)
(8) हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम जब भेजे गए और क़ौम ने झुटलाया उसके कारण बारिश रूक गई. अकाल हो गया, लोग भूखों मरने लगे, उसको उन्होंने हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम की तशरीफ़ आवरी की तरफ़ निस्बत किया और आपकी आमद को बदशगुनी समझा.
फ़रमाया तुम्हारी बदशगुनी अल्लाह के पास हैं(9)
(9) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि बदशगुनी जो तुम्हारे पास आई, यह तुम्हारे कुफ़्र के कारण अल्लाह तआला की तरफ़ से आई.
बल्कि तुम लोग फ़ित्ने में पड़े हो(10){47}
(10) आज़माइश में डाले गए या अपने दीन के कारण अज़ाब में जकड़े हुए हो.
और शहर में नौ व्यक्ति थे (11)
(11) यानी समूद के शहर में जिसका नाम हजर है. उनके शरीफ़ज़ादों में से नौ व्यक्ति थे जिनका सरदार क़दार बिन सालिफ़ था. यही लोग हैं जिन्होंने ऊंटनी की कूंचें काटने की कोशिश की थी.
कि ज़मीन में फ़साद करते और संवार न चाहते {48} आपस में अल्लाह की क़समें खाकर बोले हम ज़रूर रात को छापा मारेंगे सालेह और उसके घरवालों पर(12)
(12) यानी रात के वक़्त उनको और उनकी औलाद को और उनके अनुयाइयों को जो उनपर ईमान लाए, क़त्ल कर देंगे.
फिर उसके वारिस से (13)
(13) जिसको उनके ख़ून का बदला तलब करने का हक़ होगा.
कहेंगे इस घर वालों के क़त्ल के वक़्त हम हाज़िर न थे बेशक हम सच्चे हैं{49} और उन्होंने अपना सा मक्र किया और हमने अपनी ख़फ़िया (छुपवा) तदबीर फ़रमाई(14)
(14) यानी उनके छलकपट का बदला यह दिया कि उनके अज़ाब में जल्दी फ़रमाई.
और वो ग़ाफ़िल रहे{50} तो देखो कैसा अंजाम हुआ उनके मक्र का हमने हलाक कर दिया उन्हें(15)
(15)यानी उन नौ व्यक्तियों को. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने उस रात हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के मकान की हिफ़ाज़त के लिये फ़रिश्ते भेजे तो वो नौ व्यक्ति हथियार बांध कर तलवारें खींच कर हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के दरवाज़ें पर आए. फ़रिश्तों ने उनके पत्थर मारे. वो पत्थर लगते थे और मारने वाले नज़र नहीं आते थे. इस तरह उन नौ को हलाक किया.
और उनकी सारी क़ौम को(16){51}
(16) भयानक आवाज़ से.
तो ये हैं इनके घर ढे पड़े, बदला इनके ज़ुल्म का, बेशक इसमें निशानी है जानने वालों के लिये{52} और हमने उनको बचा लिया जो ईमान लाए(17)
(17) हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम पर.
और डरते थे (18) {53}
(18) उनकी नाफ़रमानी से. उन लोगों की तादाद चार हज़ार थी.
और लूत को जब उसने अपनी क़ौम से कहा क्या बेहयाई पर आते हो (19)
(19) इस बेहयाई से मुराद उनकी बदकारी है.
और तुम सूझ रहे हो(20){54}
(20) यानी इस काम की बुराई जानते हो या ये मानी हैं कि एक दूसरे के सामने बेपर्दा खुल्लम खुल्ला बुरा काम करते हो या ये कि तुम अपने से पहले नाफ़रमानी करने वालों की तबाही और उनके अज़ाब के आसार देखते हो फिर भी इस बुरे काम में लगे हो.
क्या तुम मर्दों के पास मस्ती से जाते हो औरतें छोड़कर (21)
(21) इसके बावुजूद कि मर्दों के लिये औरतें बनाई गई हैं. मर्दों के लिये मर्द और औरतों के लिये औरतें नहीं बनाई गई. इसलिये यह काम अल्लाह तआला की हिकमत का विरोध है.
बल्कि तुम जाहिल लोग हो(22){55}
(22) जो ऐसा काम करते हो.
तो उसकी क़ौम का कुछ जवाब न था मगर यह कि बोले लूत के घराने को अपनी बस्ती से निकाल दो, ये लोग तो सुथरापन चाहते हैं(23){56}
(23) और इस गन्दे काम को मना करते हैं.
तो हमने उसे और उसके घर वालों को निजात दी मगर उसकी औरत को हमने ठहरा दिया था वह रह जाने वालों में है(24) {57}
(24) अज़ाब में.
और हमने उनपर एक बरसाव बरसाया(25)
(25) पत्थरों का.
तो क्या बुरा बरसाव था डराए हुओं का {58}



27 – सूरए नम्ल – पाँचवां रूकू

قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَسَلَامٌ عَلَىٰ عِبَادِهِ الَّذِينَ اصْطَفَىٰ ۗ آللَّهُ خَيْرٌ أَمَّا يُشْرِكُونَ
أَمَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَنبَتْنَا بِهِ حَدَائِقَ ذَاتَ بَهْجَةٍ مَّا كَانَ لَكُمْ أَن تُنبِتُوا شَجَرَهَا ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ يَعْدِلُونَ
أَمَّن جَعَلَ الْأَرْضَ قَرَارًا وَجَعَلَ خِلَالَهَا أَنْهَارًا وَجَعَلَ لَهَا رَوَاسِيَ وَجَعَلَ بَيْنَ الْبَحْرَيْنِ حَاجِزًا ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
أَمَّن يُجِيبُ الْمُضْطَرَّ إِذَا دَعَاهُ وَيَكْشِفُ السُّوءَ وَيَجْعَلُكُمْ خُلَفَاءَ الْأَرْضِ ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ قَلِيلًا مَّا تَذَكَّرُونَ
مَّن يَهْدِيكُمْ فِي ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَمَن يُرْسِلُ الرِّيَاحَ بُشْرًا بَيْنَ يَدَيْ رَحْمَتِهِ ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ تَعَالَى اللَّهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ
أَمَّن يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ وَمَن يَرْزُقُكُم مِّنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۗ أَإِلَٰهٌ مَّعَ اللَّهِ ۚ قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
قُل لَّا يَعْلَمُ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ الْغَيْبَ إِلَّا اللَّهُ ۚ وَمَا يَشْعُرُونَ أَيَّانَ يُبْعَثُونَ
بَلِ ادَّارَكَ عِلْمُهُمْ فِي الْآخِرَةِ ۚ بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِّنْهَا ۖ بَلْ هُم مِّنْهَا عَمُونَ


तुम कहो सब ख़ूबियां अल्लाह को(1)
(1) यह सम्बोधन है सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को कि पिछली उम्मतों के हलाक पर अल्लाह तआला की हम्द बजा लाएं.
और सलाम उसके चुने हुए बन्दों पर(2)
(2) यानी अम्बिया व मुरसलीन पर. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि चुने हुए बन्दों से हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सहाबा मुराद हैं.
क्या अल्लाह बेहतर(3)
(3) ख़ुदा परस्तों के लिये, जो ख़ास उसकी इबादत करें और उस पर ईमान लाएं और वह उन्हें अज़ाब और हलाकत से बचाए.
या उनके बनाए हुए शरीक(4){59}
(4) यानी बुत, जो अपने पुजारियों के कुछ काम न आ सकें. तो जब उनमें कोई भलाई नहीं, वो कोई नफ़ा नहीं पहुंचा सकते तो उनको पूजना और मअबूद मानना बिल्कुल बेजा है. और इसके बाद कुछ क़िस्में बयान की जाती है जो अल्लाह तआला के एक होने और उसकी सम्पूर्ण क़ुदरत को प्रमाणित करती हैं.
पारा उन्नीस समाप्त
  
बीसवाँ पारा – अम्मन ख़लक़

(सूरए नम्ल – पाँचवां रूकू जारी)

या वह जिसने आसमान और ज़मीन बनाए(5)
(5) अज़ीम-तरीन चीज़ें, जो देखने में आती हैं और अल्लाह तआला की महानता, क्षमता और भरपूर क़ुदरत की दलील हैं, उनका बयान फ़रमाना. मानी ये हैं कि क्या बुत बेहतर हैं या वह जिसने आसमान और ज़मीन जैसी अज़ीम और अजीब मख़लूक़ बनाई.
और तुम्हारे लिये आसमान से पानी उतारा, तो हमने उससे बाग़ उगाए रौनक वाले, तुम्हारी ताक़त न थी कि उनके पेड़ उगाते(6)
(6) यह तुम्हारी क़ुदरत में न था.
क्या अल्लाह के साथ कोई और ख़ुदा है(7)
(7) क्या क़ुदरत के ये प्रमाण देखकर ऐसा कहा जा सकता है. हरगिज़ नहीं. वह वाहिद है, उसके सिवा कोई मअबूद नहीं.
बल्कि वो लोग राह से कतराते हैं(8){60}
(8) जो उसके लिये शरीक ठहराते हैं.
या वह जिसने ज़मीन बसने को बनाई और उसके बीच में नेहरें, निकालीं और उसके लिये लंगर बनाए(9)
(9) भारी पहाड़, जो उसे हरकत से रोकते हैं.
और दोनों समन्दरों मे आड़ रखी(10)
(10) कि ख़ारी मीठे मिलने न पाएं.
क्या अल्लाह के साथ कोई और ख़ुदा है बल्कि उनमें अक्सर ज़ाहिल है(11){61}
(11)  जो अपने रब की तौहीद और उसकी क़ुदरत और शक्ति को नहीं जानते और उस पर ईमान नहीं लाते.
या वह जो लाचार की सुनता है(12)
(12) और हाजत दूर फ़रमाता है.
जब उसे पुकारे और दूर कर देता है बुराई और तुम्हें ज़मीन का वारिस करता है(13)
(13) कि तुम उसमें रहो और एक ज़माने के बाद दूसरे ज़माने में उसका इस्तेमाल करो.
क्या अल्लाह के साथ कोई और ख़ुदा है, बहुत ही कम ध्यान करते हो{62} या वह जो तुम्हें राह दिखाता है(14)
(14) तुम्हादे उद्देश्य और मक़सदों की.
अंधेरियों में ख़ुश्की और तरी की (15)
(15) सितारों से और चिन्हों या निशानियों से.
और वह कि हवाएं भेजता है अपनी रहमत के आगे ख़ुशख़बरी सुनाती(16)
(16) रहमत से मुराद यहाँ बारिश है.
क्या अल्लाह के साथ कोई और ख़ुदा है, बरतर है अल्लाह उनके शिर्क से{63} या वह जो ख़ल्क़(सृष्टि) की शुरूआत फ़रमाता है फिर उसे दोबारा बनाएगा (17)
(17) उसकी मौत के बाद. अगरचे मौत के बाद ज़िन्दा किये जाने को काफ़िर नहीं मानते थे लेकिन जब कि इसपर तर्क और प्रमाण क़ायम हैं तो उनका इक़रार न करना कुछ लिहाज़ के क़ाबिल नहीं बल्कि जब वो शुरू की पैदाइश के क़ाइल हैं तो उन्हें दोबारा पैदाइश या दोहराए जाने को मानना पड़ेगा क्योंकि शुरूआत दोहराए जाने पर भारी प्रमाण रखती है. तो अब उनके लिये इनकार के किसी बहाने की कोई जगह बाक़ी न रही.
और वह जो तुम्हें आसमानों और ज़मीन से रोज़ी देता है, (18)
(18) आसमान से बारिश और ज़मीन से हरियाली.
क्या अल्लाह के साथ कोई और ख़ुदा है, तुम फ़रमाओ कि अपनी दलील लाओ अगर तुम सच्चे हो (19){64}
(19) अपने इस दावे में कि अल्लाह तआला के सिवा और भी मअबूद हैं. तो बताओ जो जो गुण और कमालात ऊपर बयान किये गए वो किस में हैं. और जब अल्लाह के सिवा ऐसा कोई नहीं तो फिर किसी दूसरे को किस तरह मअबूद ठहराते हो. यहाँ “हातू बुरहानकुम” यानी अपनी दलील लाओ फ़रमाकर उनकी लाचारी और बातिल होने का इज़हार मन्ज़ूर है.
तुम फ़रमाओ ग़ैब नहीं जानते जो कोई आसमानों और ज़मीन में है मगर अल्लाह (20)
(20) वही जानने वाला है ग़ैब यानी अज्ञात का. उसको इख़्तियार है जिसे चाहे बताए. चुनांन्चे अपने प्यारे नबियों को बताता है जैसा कि सूरए आले इमरान में है “वमा कानल्लाहो लियुत लिअकुम अलल ग़ैबे वलाकिन्नल्लाहा यजतबी मिर रूसुलिही मैंय यशाओ” यानी अल्लाह की शान नहीं कि तुम्हें गै़ब का इल्म दे. हाँ अल्लाह चुन लेता है अपने रसूलों में से जिसे चाहे. और बहुत सी आयतों में अपने प्यारे रसूलों को ग़ैबी उलूम अता फ़रमाने का बयान फ़रमाया गया और ख़ुद इसी पारे में इससे अगले रूकू में आया है “वमा मिल ग़ाइबतिन फ़िस्समाए वल अर्दे इल्ला फ़ी किताबिम मुबीन” यानी जितने गै़ब हैं आसमान और ज़मीन के सब एक बताने वाली किताब में हैं. यह आयत मुश्रिकों के बारे में उतरी जिन्होंने रसूल करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से क़यामत के आने का वक़्त पूछा था.
और उन्हें ख़बर नहीं कि कब उठाए जाएंगे {65} क्या उनके इल्म का सिलसिला आख़िरत के जानने तक पहुंच गया(21)
(21) और उन्हें क़यामत होने का इल्म और यक़ीन हासिल हो गया, जो वो उसका वक़्त पूछते हैं.
कोई नहीं वो उसकी तरफ़ से शक में हैं(22)बल्कि वो उससे अंधे हैं{66}
(22) उन्हें अब तक क़यामत के आने का यक़ीन नहीं है.



27 – सूरए नम्ल – छटा रूकू

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَإِذَا كُنَّا تُرَابًا وَآبَاؤُنَا أَئِنَّا لَمُخْرَجُونَ
لَقَدْ وُعِدْنَا هَٰذَا نَحْنُ وَآبَاؤُنَا مِن قَبْلُ إِنْ هَٰذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ
قُلْ سِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُجْرِمِينَ
وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَلَا تَكُن فِي ضَيْقٍ مِّمَّا يَمْكُرُونَ
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ
قُلْ عَسَىٰ أَن يَكُونَ رَدِفَ لَكُم بَعْضُ الَّذِي تَسْتَعْجِلُونَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَشْكُرُونَ
وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَعْلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمْ وَمَا يُعْلِنُونَ
وَمَا مِنْ غَائِبَةٍ فِي السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُّبِينٍ
إِنَّ هَٰذَا الْقُرْآنَ يَقُصُّ عَلَىٰ بَنِي إِسْرَائِيلَ أَكْثَرَ الَّذِي هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ
وَإِنَّهُ لَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِينَ
إِنَّ رَبَّكَ يَقْضِي بَيْنَهُم بِحُكْمِهِ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْعَلِيمُ
فَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ ۖ إِنَّكَ عَلَى الْحَقِّ الْمُبِينِ
إِنَّكَ لَا تُسْمِعُ الْمَوْتَىٰ وَلَا تُسْمِعُ الصُّمَّ الدُّعَاءَ إِذَا وَلَّوْا مُدْبِرِينَ
وَمَا أَنتَ بِهَادِي الْعُمْيِ عَن ضَلَالَتِهِمْ ۖ إِن تُسْمِعُ إِلَّا مَن يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا فَهُم مُّسْلِمُونَ
۞ وَإِذَا وَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِمْ أَخْرَجْنَا لَهُمْ دَابَّةً مِّنَ الْأَرْضِ تُكَلِّمُهُمْ أَنَّ النَّاسَ كَانُوا بِآيَاتِنَا لَا يُوقِنُونَ


और काफ़िर बोले क्या जब हम और हमारे बाप दादा मिट्टी हो जाएंगे क्या हम फिर निकाले जाएंगे(1){67}
(1) अपनी क़ब्रों से ज़िन्दा.
बेशक उसका वादा दिया गया  हमको और हमसे पहले हमारे बाप दादाओ को यह तो नहीं मगर अगलों की कहानियाँ (2){68}
(2) यानी (मआज़ल्लाह) झूठी बातें.
तुम फ़रमाओ ज़मीन में चलकर देखो कैसा हुआ अंजाम मुजरिमों का(3){69}
(3) कि वो इन्कार के कारण अज़ाब से हलाक किये गए.
और तुम उनपर ग़म न खाओ  (4)
(4) उनके मुंह फेरने और झुटलाने और इस्लाम से मेहरूम रहने के कारण.
और उनके मक्र{कपट} से दिल तंग न हो(5){70}
(5) क्योंकि अल्लाह आपका हाफ़िज़ और मददगार है.
और कहते हैं कब आएगा यह वादा(6)
(6) यानी यह अज़ाब का वादा कब पूरा होगा.
अगर तुम सच्चे हो {71} तुम फ़रमाओ क़रीब है कि तुम्हारे पीछे आ लगी हो कुछ वो चीज़ जिसकी तुम जल्दी मचा रहे हो(7){72}
(7)  यानी अल्लाह का अज़ाब, चुंनान्चे वह अज़ाब बद्र के दिन उन पर आ ही गया और बाक़ी को मौत के बाद पाएंगे.
और बेशक तेरा रब फ़ज़्ल वाला है आदमियों पर(8)
(8) इसीलिये अज़ाब में देरी करता है.
लेकिन अक्सर आदमी हक़ {सत्य} नहीं मानते(9){73}
(9) और शुक्रगुज़ारी नहीं करते और अपनी जिहालत से अज़ाब की जल्दी करते हैं.
और बेशक तुम्हारा रब जानता है जो उनके सीनों में छुपी है और जो वो ज़ाहिर करते हैं(10){74}
(10) यानी रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ दुश्मनी रखना और आपके विरोध में छलकपट करना सब कुछ अल्लाह को मालूम है, व उसकी सज़ा देगा.
और जितने ग़ैब हैं आसमानों और ज़मीन के सब एक बताने वाली किताब में हैं (11){75}
(11) यानी लौहे मेहफ़ूज़ में दर्ज़ हैं और अल्लाह के फ़ज़्ल से जिन्हें उनका देखना मयस्सर है उनके लिये ज़ाहिर हैं.
बेशक यह क़ुरआन ज़िक्र फ़रमाता है बनी इस्राईल से अक्सर वो बातें जिसमें वो इख़्तिलाफ़ (मदभेद) करते हैं(12){76}
(12) दीनी कामों में किताब वालों ने आपस में मतभेद किया, उनके बहुत से सम्प्रदाय हो गए और आपस में बुरा भला कहने लगे तो क़ुरआने करीम ने उसका बयान फ़रमाया. ऐसा बयान किया कि अगर वो इन्साफ़ करें और उसको क़ुबूल करें और इस्लाम लाएं तो उनमें यह आपसी मतभेद बाक़ी न रहे.
और बेशक वह हिदायत और रहमत है मुसलमानों के लिये {77} बेशक तुम्हारा रब उनके आपस में फै़सला फ़रमाता है अपने हुक्म से और वही है इज़्ज़त वाला इल्म वाला {78} तो तुम अल्लाह पर भरोसा करो, बेशक तुम रौशन हक़ पर हो{79} बेशक तुम्हारे सुनाए नहीं सुनते मुर्दें(13)
(13) मुर्दों से मुराद यहाँ काफ़िर लोग हैं जिनके दिल मुर्दा हैं. चुनांन्चे इसी आयत में उनके मुक़ाबले में ईमान वालों का बयान फ़रमाया “तुम्हारे सुनाए तो वही सुनते हैं जो हमारी आयतों पर ईमान लाते हैं”. जो लोग इस आयत से मुर्दों के न सुनने पर बहस करते हैं उनका तर्क ग़लत है. चूंकि यह मु्र्दा काफ़िर को कहा गया है और उन से भी बिल्कुल ही हर कलाम के सुनने का इन्कार मुराद नहीं है बल्कि नसीहत और उपदेश और हिदायत की बातें क़ुबूल करने वाले कानों से सुनने की नफ़ी है और मुराद यह है कि काफ़िर मुर्दा दिल हैं कि नसीहत से फ़ायदा नहीं उठाते. इस आयत के मानी ये बताना कि मुर्दे नहीं सुनते, बिल्कुल ग़लत है. सही हदीसों से मु्र्दों का सुनना साबित है.
और न तुम्हारे सुनाए बेहरे पुकार सुनें जब फिरें पीठ दे कर(14){80}
(14) मानी ये हैं कि काफ़िर मुंह फेरने और न मानने की वजह से मुर्दे और बहरे जैसे हो गए हैं कि उन्हें पुकारना और सच्चाई की तरफ़ बुलाना किसी तरह लाभदायक नहीं होता.
और अंधों को(15)
(15)जिनकी नज़र या दृष्टि जाती रही और दिल अन्धे हो गए.
गुमराही से तुम हिदायत करने वाले नहीं तुम्हारे सुनाएं तो वही सुनते हैं जो हमारी आयतों पर ईमान लाते हैं(16)
(16) जिनके पास समझने वाले दिल हैं और जो अल्लाह के इल्म में ईमान की सआदत से लाभान्वित होने वाले हैं. (बैज़ावी व कबीर व अबूसऊद व मदारिक)
और वो मुसलमान हैं{81} और जब बात उनपर आ पड़ेगी(17)
(17) यानी उनपर अल्लाह का ग़ज़ब होगा और अज़ाब वाजिब हो जाएगा और हुज्जत पूरी हो चुकेगी इस तरह कि लोग अच्छाई पर अमल और बुराई से दूर रहना छोड़ देंगे और उनकी दुरूस्ती की कोई उम्मीद बाक़ी न रहेगी यानी क़यामत क़रीब हो जाएगी और उसकी निशानियाँ ज़ाहिर होने लगेंगी और उस वक़्त तौबह का कोई फ़ायदा न होगा.
हम ज़मीन से उनके लिये एक चौपाया निकालेंगे (18)
(18) इस चौपाए को दाव्वतुल -अर्ज़ कहते हैं. यह अजीब शक्ल का जानवर होगा जो सफ़ा पहाड़ से निकल कर सारे शहरों में बहुत जल्द फिरेगा. फ़साहत के साथ कलाम करेगा. हर व्यक्ति के माथे पर एक निशान लगाएगा. ईमान वालों की पेशानी पर हज़रत मूसा की लाठी से नूरानी लकीर खींचेगा. काफ़िर की पेशानी पर हज़रत सुलैमान की अंगूठी से काली मोहर लगाएगा.
जो लोगों से कलाम करेगा(19)
(19) साफ़ सुथरी ज़बान में, और कहेगा यह मूमिन है, यह काफ़िर है.
इसलिये कि लोग हमारी आयतों पर ईमान न लाते थे(20){82}
(20) यानी क़ुरआने पाक पर ईमान न लाते थे जिसमें मरने के बाद उठाए जाने और हिसाब व अज़ाब और दाव्वतुल-अर्ज़ के निकलने का बयान है. इसके बाद की आयत में क़यामत का बयान फ़रमाया जाता हैं.



27 – सूरए नम्ल – सातवाँ रूकू

وَيَوْمَ نَحْشُرُ مِن كُلِّ أُمَّةٍ فَوْجًا مِّمَّن يُكَذِّبُ بِآيَاتِنَا فَهُمْ يُوزَعُونَ
حَتَّىٰ إِذَا جَاءُوا قَالَ أَكَذَّبْتُم بِآيَاتِي وَلَمْ تُحِيطُوا بِهَا عِلْمًا أَمَّاذَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
وَوَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِم بِمَا ظَلَمُوا فَهُمْ لَا يَنطِقُونَ
أَلَمْ يَرَوْا أَنَّا جَعَلْنَا اللَّيْلَ لِيَسْكُنُوا فِيهِ وَالنَّهَارَ مُبْصِرًا ۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَآيَاتٍ لِّقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ
وَيَوْمَ يُنفَخُ فِي الصُّورِ فَفَزِعَ مَن فِي السَّمَاوَاتِ وَمَن فِي الْأَرْضِ إِلَّا مَن شَاءَ اللَّهُ ۚ وَكُلٌّ أَتَوْهُ دَاخِرِينَ
وَتَرَى الْجِبَالَ تَحْسَبُهَا جَامِدَةً وَهِيَ تَمُرُّ مَرَّ السَّحَابِ ۚ صُنْعَ اللَّهِ الَّذِي أَتْقَنَ كُلَّ شَيْءٍ ۚ إِنَّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَفْعَلُونَ
مَن جَاءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ خَيْرٌ مِّنْهَا وَهُم مِّن فَزَعٍ يَوْمَئِذٍ آمِنُونَ
وَمَن جَاءَ بِالسَّيِّئَةِ فَكُبَّتْ وُجُوهُهُمْ فِي النَّارِ هَلْ تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
إِنَّمَا أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ رَبَّ هَٰذِهِ الْبَلْدَةِ الَّذِي حَرَّمَهَا وَلَهُ كُلُّ شَيْءٍ ۖ وَأُمِرْتُ أَنْ أَكُونَ مِنَ الْمُسْلِمِينَ
وَأَنْ أَتْلُوَ الْقُرْآنَ ۖ فَمَنِ اهْتَدَىٰ فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ ۖ وَمَن ضَلَّ فَقُلْ إِنَّمَا أَنَا مِنَ الْمُنذِرِينَ
وَقُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ سَيُرِيكُمْ آيَاتِهِ فَتَعْرِفُونَهَا ۚ وَمَا رَبُّكَ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ


और जिस दिन उठाएंगे हम हर गिरोह में से एक फ़ौज जो हमारी आयतों को झुटलाती है(1)
(1) जो कि हमने अपने नबियों पर उतारीं. फ़ौज से मुराद बड़ी जमाअत है.
तो उनके अगले रोके जाएंगे कि पिछले उनसे आ मिलें{83} यहां तक कि जब सब हाज़िर होंगे(2)
(2) क़यामत के रोज़ हिसाब के मैदान में.
फ़रमाएगा क्या तुम ने मेरी आयतें झूटलाई हालांकि तुम्हारा इल्म उन तक न पहुंचा था(3)
(3) और  तुमने उनकी पहचान हासिल न की थी. बग़ैर सोचे समझे ही उन आयतों का इन्कार कर दिया.
या क्या काम करते थे(4){84}
(4) जब तुमने उन आयतों को भी नहीं सोचा. तुम बेकार तो नहीं पैदा किये गए थे.
और बात पड़ चुकी उनपर (5)
(5) अज़ाब साबित हो चुका.
उनके ज़ुल्म के कारण तो वो अब कुछ नहीं बोलते (6){85}
(6) कि उनके लिये कोई हुज्जत और  कोई गुफ़्तगू बाक़ी नहीं है. एक क़ौल यह भी है कि अज़ाब उनपर इस तरह छा जाएगा कि वो बोल न सकेंगे.
क्या उन्होंने न देखा कि हमने रात बनाई कि उसमें आराम करें और दिन को बनाया सुझाने वाला, बेशक इसमें ज़रूर निशानियां हैं उन लोगों के लिये कि ईमान रखते हैं(7){86}
(7) और  आयत में मरने के बाद उठने पर दलील है इसलिये कि जो दिन की रौशनी को रात के अंधेरे से और  रात के अन्धेरे को दिन के उजाले से बदलने पर क़ादिर है वह मुर्दे को ज़िन्दा करने पर भी क़ादिर है. इसके अलावा रात और  दिन की तबदीली से यह भी मालूम होता है कि उसमें उनकी दुनियावी ज़िन्दगी का इन्तिज़ाम है. तो यह बेकार नहीं किया गया बल्कि इस ज़िन्दगानी के कर्मों पर अज़ाब और  सवाब का दिया जाना हिकमत पर आधारित है और  जब दुनिया कर्मभूमि है तो ज़रूरी है कि एक आख़िरत भी हो, वहाँ की ज़िन्दगानी में यहाँ के कर्मों का बदला मिले.
और जिस दिन फूंका जाएगा सूर(8)
(8) और  उसके फूंकने वाले इस्राफ़ील अलैहिस्सलाम होंगे.
तो घबराए जाएंगे जितने आसमानों में हैं और जितने ज़मीन में हैं(9)
(9) ऐसा घबराना जो मौत का कारण होगा.
मगर जिसे ख़ुदा चाहे(10)
(10) और  जिसके दिल को अल्लाह तआला सुकून अता फ़रमाए. हज़रत अबू हुरैरह रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि ये शहीद लोग है जो अपनी तलवारें गलों मे डाले अर्श के चारों तरफ़ हाज़िर होंगे. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया वो शहीद हैं इसलिये कि वो अपने रब के नज़दीक ज़िन्दा हैं. घबराना उनको न पहुंचेगा. एक क़ौल यह है कि सूर फूंके जाने के बाद हज़रत जिब्रईल व मीकाईल व इस्रफ़ील  और  इज्राईल ही बाक़ी रहंगे.
और सब उसके हुज़ूर हाज़िर हुए आजिज़ी (गिड़गिड़ाते) करते (11){87}
(11)  यानी क़यामत के रोज़ सब लोग मरने के बाद ज़िन्दा किये जाएंगे और  हिसाब के मैदान में अल्लाह तआला के सामने आजिज़ी करते हाज़िर होंगे. भूत काल से ताबीर फ़रमाना यक़ीनी तौर पर होने के लिये है.
और तू देखेगा पहाड़ों को, ख़याल करेगा कि वो जमे हुए हैं और वो चलते होंगे बादल की चाल(12)
(12) मानी ये है कि सूर फूंके जाने के समय पहाड़ देखने में तो अपनी जगह स्थिर मालूम होंगे और  हक़ीक़त में वो बादलों की तरह बहुत तेज़ चलते होंगे जैसे कि बादल वग़ैरह बड़े जिस्म चलते हैं, हरकत करते मालूम नहीं होते. यहाँ तक कि वो पहाड़ ज़मीन पर गिरकर उसके बराबर हो जाएंगे. फिर कण कण होकर बिखर जाएंगे.
यह काम है अल्लाह का जिसने हिकमत से बनाई हर चीज़, बेशक उसे ख़बर है तुम्हारे कामों की {88} जो नेकी लाए (13)
(13) नेकी से मुराद तौहीद के कलिमे की गवाही है. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि अमल की सच्चाई और  कुछ ने कहा कि हर फ़रमाँबरदारी जो अल्लाह तआला के लिये की हो.
उसके लिये इससे बेहतर सिला है(14)
(14) जन्नत और  सवाब.
और उनको उस दिन की घबराहट से अमान है(15) {89}
(15) जो अल्लाह के डर से होगी. पहली घबड़ाहट जिसका ऊपर की आयत में बयान हुआ है, वह इसके अलावा है.
और जो बदी लाए(16)
(16)यानी  शिर्क.
तो उनके मुंह औंधाए गए आग में(17)
(17) यानी वो औंधे मुंह आग में डाले जाएंगे और  जहन्नम के ख़ाज़िन उनसे कहेंगे.
तुम्हें क्या बदला मिलेगा मगर उसी का जो करते थे(18){90}
(18) यानी शिर्क और  गुमराही और  अल्लाह तआला अपने रसूल से फ़रमाएगा कि आप कह दीजिये कि.
मुझे तो यही हुक्म हुआ है कि पूजूं इस शहर के रब को (19)
(19) यानी मक्कए मुकर्रमा के, और  अपनी इबादत उस रब के साथ ख़ास करूं. मक्कए मुकर्रमा का ज़िक्र इसलिये है कि वह नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का वतन और  वही उतरने की जगह है.
जिसने इसे हुर्मत वाला किया है(20)
(20) कि वहाँ न किसी इन्सान का ख़ून बहाया जाए, न कोई शिकार मारा जाए, न वहाँ की घास काटी जाए.
और सब कुछ उसी का है, और मुझे हुक्म हुआ है कि फ़रमांबरदारी में हूँ {91} और यह कि क़ुरआन की तिलावत(पाठ) करूं(21)
(21) अल्लाह की मख़लूक़ को ईमान की तरफ़ बुलाने के लिये.
तो जिसने राह पाई उसने अपने भले को राह पाई(22)
(22) उसका नफ़ा और  सवाब वह पाएगा.
और जो बहके (23)
(23) और अल्लाह के रसूल की फ़रमाँबरदारी न करे और  ईमान न लाए.
तो फ़रमा दो कि मैं तो यही डर सुनाने वाला हूँ(24){92}
(24) मेरे ज़िम्मे पहुंचा देना  था, वह मैंने पूरा किया.
और फ़रमाओ कि सब ख़ूबियां अल्लाह के लिये हैं, बहुत जल्द वह तुम्हें अपनी निशानियां दिखाएगा तो उन्हें पहचान लोगे(25)
(25) इन निशानियों से मुराद चाँद का दो टुकड़ों में बंट जाना वग़ैरह चमत्कार हैं और  वो मुसीबतें जो दुनिया में आई जैसे कि बद्र में काफ़िरों का क़त्ल होना, फ़रिश्तों का उन्हें मारना.
और ऐ मेहबूब तुम्हारा रब ग़ाफ़िल नहीं ऐ लोगो तुम्हारे कर्मों से{93}