Saturday 22 August 2015

Kanzul Iman in Hindi SURAH AL-HASHR

59 सूरए हश्र

सूरए हश्र मदीने में उतरी, इसमें 24 आयतें, तीन रूकू हैं.
– पहला रूकू

ﺑِﺴْﻢِ ﺍﻟﻠَّﻪِ ﺍﻟﺮَّﺣْﻤَٰﻦِ ﺍﻟﺮَّﺣِﻴﻢِ
|1|59 ﺳَﺒَّﺢَ ﻟِﻠَّﻪِ ﻣَﺎ ﻓِﻲ ﺍﻟﺴَّﻤَﺎﻭَﺍﺕِ ﻭَﻣَﺎ ﻓِﻲ ﺍﻟْﺄَﺭْﺽِ ۖ ﻭَﻫُﻮَ ﺍﻟْﻌَﺰِﻳﺰُ ﺍﻟْﺤَﻜِﻴﻢُ
|2|59 ﻫُﻮَ ﺍﻟَّﺬِﻱ ﺃَﺧْﺮَﺝَ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﻛَﻔَﺮُﻭﺍ ﻣِﻦْ ﺃَﻫْﻞِ ﺍﻟْﻜِﺘَﺎﺏِ ﻣِﻦ ﺩِﻳَﺎﺭِﻫِﻢْ ﻟِﺄَﻭَّﻝِ ﺍﻟْﺤَﺸْﺮِ ۚ ﻣَﺎ ﻇَﻨَﻨﺘُﻢْ ﺃَﻥ ﻳَﺨْﺮُﺟُﻮﺍ ۖ ﻭَﻇَﻨُّﻮﺍ ﺃَﻧَّﻬُﻢ
ﻣَّﺎﻧِﻌَﺘُﻬُﻢْ ﺣُﺼُﻮﻧُﻬُﻢ ﻣِّﻦَ ﺍﻟﻠَّﻪِ ﻓَﺄَﺗَﺎﻫُﻢُ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﻣِﻦْ ﺣَﻴْﺚُ ﻟَﻢْ ﻳَﺤْﺘَﺴِﺒُﻮﺍ ۖ ﻭَﻗَﺬَﻑَ ﻓِﻲ ﻗُﻠُﻮﺑِﻬِﻢُ ﺍﻟﺮُّﻋْﺐَ ۚ ﻳُﺨْﺮِﺑُﻮﻥَ ﺑُﻴُﻮﺗَﻬُﻢ ﺑِﺄَﻳْﺪِﻳﻬِﻢْ
ﻭَﺃَﻳْﺪِﻱ ﺍﻟْﻤُﺆْﻣِﻨِﻴﻦَ ﻓَﺎﻋْﺘَﺒِﺮُﻭﺍ ﻳَﺎ ﺃُﻭﻟِﻲ ﺍﻟْﺄَﺑْﺼَﺎﺭِ
|3|59 ﻭَﻟَﻮْﻟَﺎ ﺃَﻥ ﻛَﺘَﺐَ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﻋَﻠَﻴْﻬِﻢُ ﺍﻟْﺠَﻠَﺎﺀَ ﻟَﻌَﺬَّﺑَﻬُﻢْ ﻓِﻲ ﺍﻟﺪُّﻧْﻴَﺎ ۖ ﻭَﻟَﻬُﻢْ ﻓِﻲ ﺍﻟْﺂﺧِﺮَﺓِ ﻋَﺬَﺍﺏُ ﺍﻟﻨَّﺎﺭِ
|4|59ﺫَٰﻟِﻚَ ﺑِﺄَﻧَّﻬُﻢْ ﺷَﺎﻗُّﻮﺍ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﻭَﺭَﺳُﻮﻟَﻪُ ۖ ﻭَﻣَﻦ ﻳُﺸَﺎﻕِّ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﻓَﺈِﻥَّ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﺷَﺪِﻳﺪُ ﺍﻟْﻌِﻘَﺎﺏِ
|5|59 ﻣَﺎ ﻗَﻄَﻌْﺘُﻢ ﻣِّﻦ ﻟِّﻴﻨَﺔٍ ﺃَﻭْ ﺗَﺮَﻛْﺘُﻤُﻮﻫَﺎ ﻗَﺎﺋِﻤَﺔً ﻋَﻠَﻰٰ ﺃُﺻُﻮﻟِﻬَﺎ ﻓَﺒِﺈِﺫْﻥِ ﺍﻟﻠَّﻪِ ﻭَﻟِﻴُﺨْﺰِﻱَ ﺍﻟْﻔَﺎﺳِﻘِﻴﻦَ
|6|59 ﻭَﻣَﺎ ﺃَﻓَﺎﺀَ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﻋَﻠَﻰٰ ﺭَﺳُﻮﻟِﻪِ ﻣِﻨْﻬُﻢْ ﻓَﻤَﺎ ﺃَﻭْﺟَﻔْﺘُﻢْ ﻋَﻠَﻴْﻪِ ﻣِﻦْ ﺧَﻴْﻞٍ ﻭَﻟَﺎ ﺭِﻛَﺎﺏٍ ﻭَﻟَٰﻜِﻦَّ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﻳُﺴَﻠِّﻂُ ﺭُﺳُﻠَﻪُ ﻋَﻠَﻰٰ ﻣَﻦ ﻳَﺸَﺎﺀُ ۚ
ﻭَﺍﻟﻠَّﻪُ ﻋَﻠَﻰٰ ﻛُﻞِّ ﺷَﻲْﺀٍ ﻗَﺪِﻳﺮٌ
|7|59ﻣَّﺎ ﺃَﻓَﺎﺀَ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﻋَﻠَﻰٰ ﺭَﺳُﻮﻟِﻪِ ﻣِﻦْ ﺃَﻫْﻞِ ﺍﻟْﻘُﺮَﻯٰ ﻓَﻠِﻠَّﻪِ ﻭَﻟِﻠﺮَّﺳُﻮﻝِ ﻭَﻟِﺬِﻱ ﺍﻟْﻘُﺮْﺑَﻰٰ ﻭَﺍﻟْﻴَﺘَﺎﻣَﻰٰ ﻭَﺍﻟْﻤَﺴَﺎﻛِﻴﻦِ ﻭَﺍﺑْﻦِ ﺍﻟﺴَّﺒِﻴﻞِ ﻛَﻲْ ﻟَﺎ
ﻳَﻜُﻮﻥَ ﺩُﻭﻟَﺔً ﺑَﻴْﻦَ ﺍﻟْﺄَﻏْﻨِﻴَﺎﺀِ ﻣِﻨﻜُﻢْ ۚ ﻭَﻣَﺎ ﺁﺗَﺎﻛُﻢُ ﺍﻟﺮَّﺳُﻮﻝُ ﻓَﺨُﺬُﻭﻩُ ﻭَﻣَﺎ ﻧَﻬَﺎﻛُﻢْ ﻋَﻨْﻪُ ﻓَﺎﻧﺘَﻬُﻮﺍ ۚ ﻭَﺍﺗَّﻘُﻮﺍ ﺍﻟﻠَّﻪَ ۖ ﺇِﻥَّ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﺷَﺪِﻳﺪُ ﺍﻟْﻌِﻘَﺎﺏِ
|8|59ﻟِﻠْﻔُﻘَﺮَﺍﺀِ ﺍﻟْﻤُﻬَﺎﺟِﺮِﻳﻦَ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺃُﺧْﺮِﺟُﻮﺍ ﻣِﻦ ﺩِﻳَﺎﺭِﻫِﻢْ ﻭَﺃَﻣْﻮَﺍﻟِﻬِﻢْ ﻳَﺒْﺘَﻐُﻮﻥَ ﻓَﻀْﻠًﺎ ﻣِّﻦَ ﺍﻟﻠَّﻪِ ﻭَﺭِﺿْﻮَﺍﻧًﺎ ﻭَﻳَﻨﺼُﺮُﻭﻥَ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﻭَﺭَﺳُﻮﻟَﻪُ ۚ
ﺃُﻭﻟَٰﺌِﻚَ ﻫُﻢُ ﺍﻟﺼَّﺎﺩِﻗُﻮﻥَ
|9|59 ﻭَﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺗَﺒَﻮَّﺀُﻭﺍ ﺍﻟﺪَّﺍﺭَ ﻭَﺍﻟْﺈِﻳﻤَﺎﻥَ ﻣِﻦ ﻗَﺒْﻠِﻬِﻢْ ﻳُﺤِﺒُّﻮﻥَ ﻣَﻦْ ﻫَﺎﺟَﺮَ ﺇِﻟَﻴْﻬِﻢْ ﻭَﻟَﺎ ﻳَﺠِﺪُﻭﻥَ ﻓِﻲ ﺻُﺪُﻭﺭِﻫِﻢْ ﺣَﺎﺟَﺔً ﻣِّﻤَّﺎ ﺃُﻭﺗُﻮﺍ
ﻭَﻳُﺆْﺛِﺮُﻭﻥَ ﻋَﻠَﻰٰ ﺃَﻧﻔُﺴِﻬِﻢْ ﻭَﻟَﻮْ ﻛَﺎﻥَ ﺑِﻬِﻢْ ﺧَﺼَﺎﺻَﺔٌ ۚ ﻭَﻣَﻦ ﻳُﻮﻕَ ﺷُﺢَّ ﻧَﻔْﺴِﻪِ ﻓَﺄُﻭﻟَٰﺌِﻚَ ﻫُﻢُ ﺍﻟْﻤُﻔْﻠِﺤُﻮﻥَ
|10|59 ﻭَﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺟَﺎﺀُﻭﺍ ﻣِﻦ ﺑَﻌْﺪِﻫِﻢْ ﻳَﻘُﻮﻟُﻮﻥَ ﺭَﺑَّﻨَﺎ ﺍﻏْﻔِﺮْ ﻟَﻨَﺎ ﻭَﻟِﺈِﺧْﻮَﺍﻧِﻨَﺎ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺳَﺒَﻘُﻮﻧَﺎ ﺑِﺎﻟْﺈِﻳﻤَﺎﻥِ ﻭَﻟَﺎ ﺗَﺠْﻌَﻞْ ﻓِﻲ ﻗُﻠُﻮﺑِﻨَﺎ ﻏِﻠًّﺎ ﻟِّﻠَّﺬِﻳﻦَ
ﺁﻣَﻨُﻮﺍ ﺭَﺑَّﻨَﺎ ﺇِﻧَّﻚَ ﺭَﺀُﻭﻑٌ ﺭَّﺣِﻴﻢٌ

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)
(1) सूरए हश्र मदीने में उतरी. इसमें तीन रूकू, 34 आयतें. 445 कलिमे एक हज़ार नौ सौ तेरह
अक्षर हैं.
अल्लाह की पाकी बोलता है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में, और वही
इज़्ज़त व हिकमत वाला हैं(2){1}
(2) यह सूरत बनी नुज़ैर के हक़ में नाज़िल हुई. ये लोग यहूदी थे. जब नबीये करीम
सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मदीनए तैय्यिबह में रौनक़ अफ़रोज़ हुए तो उन्होंने हुज़ूर से इस शर्त पर सुलह की
कि न आपके साथ होकर किसी से लड़ें, न आपसे जंग करें. जब जंगे बद्र में इस्लाम की जीत हुई तो
बनी नुज़ैर ने कहा कि यह वही नबी हैं जिनकी सिफ़त तौरात में है. फिर जब उहद में
मुसलमानों को आरिज़ी हार की सूरत पेश आई तो यो शक में पड़े और उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे
वसल्लम और हुज़ूर के नियाज़मन्दों के साथ दुश्मनी ज़ाहिर की. और जो मुआहिदा किया था वह तोड़ दिया और उनका
एक सरकार कअब बिन अशरफ़ यहूदी चालीस सवारों के साथ मक्कए मुकर्रमा पहुंचा और काबा मुअज़्ज़मा के पर्दें
थाम कर क़ुरैश के सरदारों से रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के ख़िलाफ़ समझौता किया. अल्लाह तआला ने अपने
हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को इस की ख़बर दे दी थी. और बनी
नुज़ैर से एक ख़यानत और भी वाक़े हो चुकी थी कि उन्होंने क़िले के ऊपर से सैयदे आलम
सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम पर बुरे इरादे से एक पत्थर गिराया था. अल्लाह तआला ने हुज़ूर को ख़बरदार कर दिया और अल्लाह के फ़ज्ल
से हुज़ूर मेहफ़ूज़ रहे. जब बनी नुज़ैर के यहूदियों ने ख़यानत की और एहद तोड़ा और क़ुरैश के काफ़िरों से हुज़ूर
के ख़िलाफ एहद जोड़ा तो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुहम्मद बिन मुस्लिमा अन्सारी को हुक्म दिया और
उन्होंने कअब बिन अशरफ़ को क़त्ल कर दिया. फिर हुज़ूर लश्कर के साथ बनी नुज़ैर की तरफ़ रवाना हुए और
उनका मुहासिरा कर लिया. यह घिराव 21 दिन चला. उस बीच मुनाफ़िक़ों ने यहूदियों से हमदर्दी और मदद के बहुत से
मुआहिदे किये लेकिन अल्लाह तआला ने उन सबको नाकाम किया. यहूद के दिलों में रोअब डाला. आख़िरकार उन्हें हुज़ूर के हुक्म से जिलावतन
होना पड़ा. और वो शाम और अरीहा और ख़ैबर की तरफ़ चले गए.
वही है जिसने उन काफ़िर किताबियों को(3)
(3) यानी बनी नुज़ैर के यहूदियों को.
उनके घरों से निकाला(4)
(4) जो मदीनए तैय्यिबह में थे.
उनके पहले हश्र के लिये(5)
(5) यह जिलावतनी उनका पहला हश्र और दूसरा हश्र उनका यह है कि अमीरूल मूमिनीन हज़रत
उमर रदियल्लाहो अन्हो ने उन्हें अपनी ख़िलाफ़त के ज़माने में ख़ैबर से शाम की तरफ़ निकाला था.
आख़िरी हश्र क़यामत के दिन का हश्र है कि आग सब लोगों को सरज़मीने शाम की तरफ़ ले
जाएगी और वहीं उनपर क़यामत क़ायम होगी. उसके बाद मुसलमानों से ख़िताब किया जाता है.
तुम्हें गुमान न था कि वो निकलेंगे(6)
(6) मदीने से, क्योंकि क़ुव्वत और लश्कर वाले थे. मज़बूत किले रखते थे. उनकी संख्या भी
काफ़ी थी, जागीरें थीं, दौलत थी.
और वो समझते थे कि उनके क़िले उन्हें अल्लाह से बचा लेंगे, तो अल्लाह का हुक्म उनके पास आया जहाँ से उनका गुमान भी
न था(7)
(7) यानी ख़तरा भी न था कि मुसलमान उन पर हमला कर सकते है.
और उस ने उनके दिलों में रोब डाला(8)
(8) उनके सरदार कअब बिन अशरफ़ के क़त्ल से.
कि अपने घर वीरान करते हैं अपने हाथों (9)
(9) और उनको ढाते हैं ताकि जो लकड़ी वग़ैरह उन्हें अच्छी मालूम हो वो जिलावतन होते वक्त अपने साथ लेते
जाएं.
और मुसलमानों के हाथों(10)
(10) कि उनके मकानों के जो हिस्से बाक़ी रह जाते थे उन्हें मुसलमान गिरा देते थे ताकि जंग के लिये साफ़ हो जाए.
तो इबरत लो ऐ निगाह वालो {2} और अगर न होता कि अल्लाह ने उनपर घर से उजड़ना लिख दिया था तो दुनिया ही में उनपर
अज़ाब फ़रमाता(11)
(11) और उन्हें क़त्ल और क़ैद में जकड़ता जैसा कि बनी क़ुरैज़ा के यहूदियों के साथ किया.
और उनके लिये(12)
(12) हर हाल में, चाहे जिलावतन किये जाएं या क़त्ल किये जाएं.
आख़िरत में आग का अज़ाब है {3} यह इसलिये कि वो अल्लाह और उसके रसूल से फटे (जुदा)रहे (13)
(13) यानी विरोध पर डटे रहे.
और जो अल्लाह और उसके रसूल से फटा रहे तो बेशक बेशक अल्लाह का अज़ाब सख़्त है {4} जो दरख़्त तुमने काटे या
उनकी जड़ों पर क़ायम छोड़ दिये यह सब अल्लाह की इजाज़त से था (14)
(14) जब बनी नुज़ैर ने अपने क़िलों में पनाह ले ली तो सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उनके पेड़
काट डालने और उन्हें जला देने का हुक्म दिया. इस पर वो बहुत घबराए और रंजीदा हुए और कहने लगे कि क्या
तुम्हारी किताब में इसी का हुक्म है. मुसलमान इस मुद्दे पर अलग अलग राय के हो गए. कुछ ने कहा, पेड न
काटो कि ये ग़नीनत यानी दुश्मन का छोड़ा हुआ माल हैं जो अल्लाह तआला ने हमें अता किये हैं. कुछ ने कहा, काट
डाले जाएं कि इससे काफ़िरों को रूसवा करना और उन्हें ग़ुस्सा दिलाना मक़सूद है. इस पर आयत उतरी. और इसमें बताया गया कि
मुसलमानों में जो पेड़ काटने वाले हैं उनका कहना भी ठीक है और जो न काटने की कहते हैं उनका
ख़याल भी सही है, क्योंकि दरख़्तों का काटना और उनका छोड़ देना ये दोनो अल्लाह तआला के इज़्न और इजाज़त से
है.
और इसलिये कि फ़ासिकों को रूसवा करे(15) {5}
(15) यानी यहूदियों को ज़लील करे पेड़ काटने की इजाज़त देकर.
और जो ग़नीमत दिलाई अल्लाह ने अपने रसूल को उनसे(16)
(16) यानी बनी नुज़ैर के यहूदियों से.
तो तुमने उनपर अपने घोड़े दौड़ाए थे और न ऊंट(17)
(17) यानी उसके लिये तुम्हें कोई कोफ्त़ या मशक़्क़त नहीं उठानी पड़ी. सिर्फ़ दो
मील का फ़ासला था. सब लोग पैदल चले गए सिर्फ़ रसूले अकरम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सवार हुए.
हाँ अल्लाह अपने रसूलों के क़ाबू में दे देता है जिसे चाहे(18)
(18) अपने दुश्मनों में से, मुराद यह है कि बनी नुज़ैर से जो ग़नीमतें हासिल हुई उनके लिये मुसलमानों को जंग
करना नहीं पड़े. अल्लाह तआला ने अपने रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को उन पर मुसल्लत कर दिया. ये माल हुज़ूर
की मर्ज़ी पर है, जहां चाहें ख़र्च करें. रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने यह माल
मुहाजिरों पर तक़सीम फ़रमा दिया. और अन्सार में से सिर्फ़ तीन हाजतमन्द लोगों को दिया वो अबू दुजाना समाक बिन
खरशाहकी और सहल बिन हनीफ़ और हारिस बिन सुम्मा हैं.
और अल्लाह सब कुछ कर सकता है {6} जो ग़नीमत दिलाई अल्लाह ने अपने रसूल को शहर वालों से (19)
(19) पहली आयत में ग़नीमत का जो ज़िक्र हुआ इस आयत में उसीकी व्याख्या है और
कुछ मुफ़स्सिरों ने इस क़ौल का विरोध किया और फ़रमाया कि पहली आयत बनी नुज़ैर के अमवाल के बारे में
उतरी. उनको अल्लाह तआला ने अपने रसूल के लिये ख़ास किया और यह आयत हर उस शहर की
ग़नीमतों के बारे में है जिसको मुसलमान अपनी क़ुव्वत से हासिल करें. (मदारिक)
वह अल्लाह और रसूल की है और रिश्तेदारों (20)
(20) रिश्तेदारों से मुराद सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के एहले क़राबत हैं यानी बनी हाशिम और
बनी मुत्तलिब.
और यतीमों और मिस्कीनों (दरिद्रों) और मुसाफ़िरों के लिये कि तुम्हारे मालदारों का माल न हो जाए(21)
(21) और ग़रीब और फ़क़ीर नुक़सान में रहें जैसा कि इस्लाम से पहले के ज़माने में तरीक़ा था कि
ग़नीमत में से एक चौथाई तो सरदार ले लेता था, बाक़ी क़ौम के लिये छोड़ देता था. इसमें से मालदार लोग बहुत ज़ियादा ले
लेते थे और ग़रीबों के लिये बहुत थोड़ा बचता था. इसी तरीक़े के अनुसार लोगों ने सैयदे आलम
सल्लल्लाहो अलैहे से अर्ज़ किया कि हुज़ूर का इख़्तियार नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को दिया और
उसका तरीक़ा इरशाद फ़रमाया.
और जो कुछ तुम्हें रसूल अता फ़रमाएं वह लो(22)
(22) ग़नीमत में से क्योंकि वो तुम्हारे लिये हलाल है. या ये मानी हैं कि रसूले करीम सल्लल्लाहो
अलैहे वसल्लम जो तुम्हें हुक्म दें उसका पालन करो क्योंकि रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की इताअत हर काम में वाजिब
है.
और जिससे मना फ़रमाएं बाज़ रहो, और अल्लाह से डरो(23)
(23) नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की मुख़ालिफ़त न करो और उनके इरशाद पर
तअमील में सुस्ती न करो.
बेशक अल्लाह का अज़ाब सख़्त है(24){7}
(24) उन पर जो रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की नाफ़रमानी करे और ग़नीमत के माल में, जैसा
कि ऊपर ज़िक्र किये हुए लोगों का हश्र है, ऐसा ही.
उन फ़क़ीर हिजरत करने वालों के लिये जो अपने घरों और मालों से निकाले गए(25)
(25) और उनके घरों और मालों पर मक्का के काफ़िरों ने क़ब्ज़ा कर लिया. इस आयत से साबित हुए है कि काफ़िर इस्तीला, (ग़ालिब
होने) से मुसलमानों के अमवाल के मालिक हो जाते हैं.
अल्लाह का फ़ज़्ल (26)
(26) यानी आख़िरत का सवाब.
और उसकी रज़ा चाहते और अल्लाह व रसूल की मदद करते(27)
(27) अपने जानो माल से दीन की हिमायत में.
वही सच्चे हैं(28){8}
(28) ईमान और इख़लास में. क़तादह ने फ़रमाया कि उन मुहाजिरों ने घर और माल और कुंबे अल्लाह तआला और रसूल की
महब्बत में छोड़े और इस्लाम को क़बूल किया और उन सारी सख़्तियों को गवारा किया जो इस्लाम क़बूल करने की
वजह से उन्हें पेश आई. उनकी हालतें यहां पहुंचीं कि भूक की शिद्दत से पेट पर पत्थर बांधते थे
और जाड़ों में कपड़ा न होने के कारण गढ़ों और ग़ारों में गुज़ारा करते थे. हदीस शरीफ़ में आया है कि
फ़क़ीर मुहाजिरीन मालदारों से चालीस साल पहले जन्नत में जाएंगे.
और जिन्होंने पहले से(29)
(29) यानी मुहाजिरों से पहले या उनकी हिजरत से पहले बल्कि नबीये करीम सल्लल्लाहो
अलैहे वसल्लम की तशरीफ़ आवरी से पहले.
इस शहर(30)
(30) मदीनए पाक.
और ईमान में घर बना लिया(31)
(31) यानी मदीनए पाक को वतन और ईमान को अपनी मंज़िल बनाया और इस्लाम लाए और हुज़ूर
सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की तशरीफ़ आवरी से दो साल पहले मस्जिदें बनाई उनका यह हाल है
कि.
दोस्त रखते हैं उन्हें जो उनकी तरफ़ हिजरत करके गए(32)
(32) चुनांन्चे अपने घरों में उन्हें उतारते हैं अपने मालों में उन्हें आधे का शरीक करते हैं.
और अपने दिलों में कोई हाजत नहीं पाते(33)
(33) यानी उनके दिलों में कोई ख्वाहिश और तलब नहीं पैदा होती.
उस चीज़ की जो दिये गये(34)
(34) यानी मुहाजिरीन को जो ग़नीमत के माल दिये गए. अन्सार के दिल में उनकी कोई
ख्वाहिश पैदा नहीं होती, रश्क तो क्या होता. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की बरकत ने
दिल ऐसे पाक कर दिये कि अन्सार मुहाजिरों के साथ ये सुलूक करते हैं.
और अपनी जानों पर उनको तरजीह देते हैं(35)
(35) यानी मुहाजिरों को.
अगरचे उन्हें शदीद(सख्त़) मुहताजी हो (36)
(36) हदीस शरीफ़ में है कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में
एक भूखा आदमी आया. हुज़ूर ने अपनी पाक मुक़द्दस बीबियों के हुजरों पर मालूम कराया कि क्या खाने
की कोई चीज़ है. मालूम हुआ कि किसी बीबी साहिबा के यहां कुछ
भी नहीं है तो हुज़ूर ने सहाबा से फ़रमाया जो इस आदमी को मेहमान बनाए, अल्लाह तआला उस पर
रहमत फ़रमाए. हज़रत अबू तलहा अन्सारी खड़े हो गए और हुज़ूर से इजाज़त लेकर मेहमान को अपने घर ले गए. घर जाकर
बीबी से पूछा, कुछ है ? उन्होंने कहा, कुछ भी नहीं. सिर्फ़ बच्चों के लिये थोड़ा सा खाना
रखा है. हज़रत अबूतलहा ने फ़रमाया बच्चों को बहलाकर सुला दो और जब मेहमान खाने बैठे तो चिराग़ दुरूस्त करने उठो और चिराग़ को बुझा
दो ताकि वह अच्छी तरह खाले. यह इसलिये कहा कि मेहमान यह न जान सके कि घर वाले उसके साथ नहीं खा
रहे हैं. क्योकि उसको यह मालूम होगा तो वह इसरार करेगा और खाना कम है, भूखा रह जाएगा. इस तरह मेहमान को ख़िलाया और आप उन
लोगों ने भूखे पेट रात गुज़ारी. जब सुबह हुई और सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर
हुए तो हुज़ूर अक़दस ने फ़रमाया, रात फ़लां फ़लां लोगों में अजीब मामला पेश आया. अल्लाह तआला उनसे बहुत राज़ी
है और यह आयत उतरी.
और जो अपने नफ़्स के लालच से बचाया गया(37)
(37) यानी जिसके नफ़्स को लालच से पाक किया गया.
तो वही कामयाब हैं {9} और वो जो उनके बाद आए(38)
(38) यानी मुहाजिरों और अन्सार के, इसमें क़यामत तक पैदा होने वाले मुसलमान दाख़िल हैं.
अर्ज़ करते हैं ऐ हमारे रब! हमें बख़्श दे और हमारे भाइयों को जो हम से पहले ईमान लाए और हमारे दिल में ईमान वालों की
तरफ़ से कीना न रख(39)
(39) यानी रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सहाबा की तरफ़ से. जिसके दिल में किसी
सहाबी की तरफ़ से बुग्ज़ और कदूरत हो और वह उनके लिये रहमत और मग़फ़िरत की दुआ न करे
वह मूमिन की किस्म से बाहर है क्योंकि यहां मूमिनों की तीन किस्में फ़रमाई गई, मुहाजिर, अन्सार और
उनके बाद वाले जो उनके ताबेअ हों और उनकी तरफ़ से दिल में कोई कदूरत न रखें और उनके लिए मग़फ़िरत की
दुआ करें तो जो सहाबा से कदूरत रखे, राफ़िज़ी हो या ख़ारिजी, वह मुसलमानों की इन तीनों
क़िस्मों से बाहर है. हज़रत उम्मुल मूमिनीन आयशा सिद्दीक़ा रदियल्लाहो अन्हा ने फ़रमाया कि लोगों को हुक्म तो
यह दिया गया कि सहाबा के लिये इस्तिग़फ़ार करें और करते हैं यह, कि गालियां देते हैं.
ऐ रब हमारे! बेशक तू ही बहुत मेहरबान रहम वाला है 


59 सूरए हश्र -दूसरा रूकू

59|11| ۞ ﺃَﻟَﻢْ ﺗَﺮَ ﺇِﻟَﻰ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﻧَﺎﻓَﻘُﻮﺍ ﻳَﻘُﻮﻟُﻮﻥَ ﻟِﺈِﺧْﻮَﺍﻧِﻬِﻢُ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﻛَﻔَﺮُﻭﺍ ﻣِﻦْ ﺃَﻫْﻞِ ﺍﻟْﻜِﺘَﺎﺏِ ﻟَﺌِﻦْ ﺃُﺧْﺮِﺟْﺘُﻢْ ﻟَﻨَﺨْﺮُﺟَﻦَّ ﻣَﻌَﻜُﻢْ ﻭَﻟَﺎ
ﻧُﻄِﻴﻊُ ﻓِﻴﻜُﻢْ ﺃَﺣَﺪًﺍ ﺃَﺑَﺪًﺍ ﻭَﺇِﻥ ﻗُﻮﺗِﻠْﺘُﻢْ ﻟَﻨَﻨﺼُﺮَﻧَّﻜُﻢْ ﻭَﺍﻟﻠَّﻪُ ﻳَﺸْﻬَﺪُ ﺇِﻧَّﻬُﻢْ ﻟَﻜَﺎﺫِﺑُﻮﻥَ
|12|59 ﻟَﺌِﻦْ ﺃُﺧْﺮِﺟُﻮﺍ ﻟَﺎ ﻳَﺨْﺮُﺟُﻮﻥَ ﻣَﻌَﻬُﻢْ ﻭَﻟَﺌِﻦ ﻗُﻮﺗِﻠُﻮﺍ ﻟَﺎ ﻳَﻨﺼُﺮُﻭﻧَﻬُﻢْ ﻭَﻟَﺌِﻦ ﻧَّﺼَﺮُﻭﻫُﻢْ ﻟَﻴُﻮَﻟُّﻦَّ ﺍﻟْﺄَﺩْﺑَﺎﺭَ ﺛُﻢَّ ﻟَﺎ ﻳُﻨﺼَﺮُﻭﻥَ
|13|59 ﻟَﺄَﻧﺘُﻢْ ﺃَﺷَﺪُّ ﺭَﻫْﺒَﺔً ﻓِﻲ ﺻُﺪُﻭﺭِﻫِﻢ ﻣِّﻦَ ﺍﻟﻠَّﻪِ ۚ ﺫَٰﻟِﻚَ ﺑِﺄَﻧَّﻬُﻢْ ﻗَﻮْﻡٌ ﻟَّﺎ ﻳَﻔْﻘَﻬُﻮﻥَ
|14|59ﻟَﺎ ﻳُﻘَﺎﺗِﻠُﻮﻧَﻜُﻢْ ﺟَﻤِﻴﻌًﺎ ﺇِﻟَّﺎ ﻓِﻲ ﻗُﺮًﻯ ﻣُّﺤَﺼَّﻨَﺔٍ ﺃَﻭْ ﻣِﻦ ﻭَﺭَﺍﺀِ ﺟُﺪُﺭٍ ۚ ﺑَﺄْﺳُﻬُﻢ ﺑَﻴْﻨَﻬُﻢْ ﺷَﺪِﻳﺪٌ ۚ ﺗَﺤْﺴَﺒُﻬُﻢْ ﺟَﻤِﻴﻌًﺎ ﻭَﻗُﻠُﻮﺑُﻬُﻢْ ﺷَﺘَّﻰٰ ۚ
ﺫَٰﻟِﻚَ ﺑِﺄَﻧَّﻬُﻢْ ﻗَﻮْﻡٌ ﻟَّﺎ ﻳَﻌْﻘِﻠُﻮﻥَ
|15|59ﻛَﻤَﺜَﻞِ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﻣِﻦ ﻗَﺒْﻠِﻬِﻢْ ﻗَﺮِﻳﺒًﺎ ۖ ﺫَﺍﻗُﻮﺍ ﻭَﺑَﺎﻝَ ﺃَﻣْﺮِﻫِﻢْ ﻭَﻟَﻬُﻢْ ﻋَﺬَﺍﺏٌ ﺃَﻟِﻴﻢٌ
|16|59ﻛَﻤَﺜَﻞِ ﺍﻟﺸَّﻴْﻄَﺎﻥِ ﺇِﺫْ ﻗَﺎﻝَ ﻟِﻠْﺈِﻧﺴَﺎﻥِ ﺍﻛْﻔُﺮْ ﻓَﻠَﻤَّﺎ ﻛَﻔَﺮَ ﻗَﺎﻝَ ﺇِﻧِّﻲ ﺑَﺮِﻱﺀٌ ﻣِّﻨﻚَ ﺇِﻧِّﻲ ﺃَﺧَﺎﻑُ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﺭَﺏَّ ﺍﻟْﻌَﺎﻟَﻤِﻴﻦَ
|17|59 ﻓَﻜَﺎﻥَ ﻋَﺎﻗِﺒَﺘَﻬُﻤَﺎ ﺃَﻧَّﻬُﻤَﺎ ﻓِﻲ ﺍﻟﻨَّﺎﺭِ ﺧَﺎﻟِﺪَﻳْﻦِ ﻓِﻴﻬَﺎ ۚ ﻭَﺫَٰﻟِﻚَ ﺟَﺰَﺍﺀُ ﺍﻟﻈَّﺎﻟِﻤِﻴﻦَ

क्या तुमने मुनाफ़िक़ों (दोग़लों) को न देखा(1)
(1) अब्दुल्लाह बिन उबई बिन सुलूल मुनाफ़िक़ और उसके साथियों को.
कि अपने भाइयों काफ़िर किताबियों(2)
(2) यानी बनी क़ुरैज़ा और बनी नुज़ैर के यहूदी.
से कहते हैं कि अगर तुम निकाले गए(3)
(3) मदीना शरीफ़ से.
तो ज़रूर हम तुम्हारे साथ निकल जाएंगे और हरगिज़ तुम्हारे बारे में किसी को न मानेंगे(4)
(4) यानी तुम्हारे ख़िलाफ़ किसी का कहना न मानेंगे न मुसलमानों का, न रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का.
और तुम से लड़ाई हुई तो हम ज़रूर तुम्हारी मदद करेंगे, और अल्लाह गवाह है कि वो झूटे हैं(5){11}
(5) यानी यहूदियों से मुनाफ़िक़ों के ये सब वादे झूटे हैं. इसके बाद अल्लाह तआला मुनाफ़िक़ों के हाल की ख़बर देता
है.
अगर वो निकाले गए(6)
(6)यानी यहूदी
तो ये उनके साथ न निकलेंगे, और उनसे लड़ाई हुई तो ये उनकी मदद न करेंगे(7)
(7) चुनांन्चे ऐसा ही हुआ कि यहूदी निकाले गए और मुनाफ़िक़ उनके साथ न निकले और यहूदियों से जंग हुई और
मुनाफ़िक़ों ने यहूदियों की मदद न की.
अगर उनकी मदद की भी तो ज़रूर पीठ फेर कर भागेंगे फिर(8)
(8) जब ये मददगार भाग निकलेंगे तो मुनाफ़िक़.
मदद न पाएंगे {12} बेशक (9)
(9) ऐ मुसलमानो.
उनके दिलों में अल्लाह से ज़्यादा तुम्हारा डर है(10)
(10) कि तुम्हारे सामने तो कुफ़्र ज़ाहिर करने में डरते हैं और यह जानते हुए भी कि अल्लाह तआला दिलों की
छुपी बातें जानता है, दिल में कुफ्र रखते हैं.
यह इस लिये कि वो नासमझ लोग हैं(11){13}
(11) अल्लाह तआला की अज़मत को नहीं जानते वरना जैसा उससे डरने का हक़ है डरते.
ये सब मिलकर भी तुम से न लड़ेंगे मगर क़िलेबन्द शहरों में या धुसों (शहर-पनाह) के पीछे, आपस में
उनकी आंच (जोश) सख़्त है(12)
(12) यानी जब वो आपस में लड़े तो बहुत सख़्ती और क़ुव्वत वाले हैं लेकिन मुसलमानों के मुक़ाबिले में बुज़दिल
और नामर्द साबित होंगे.
तुम उन्हें एक जथा समझोगे और उनके दिल अलग अलग हैं, यह इसलिये कि वो बेअक़्ल लोग हैं(13){14}
(13) इसके बाद यहूदियों की एक मिसाल इरशाद फ़रमाई.
उनकी सी कहावत जो अभी क़रीब ज़माने में उनसे पहले थे(14)
(14) यानी उनका हाल मक्के के मुश्रिकों जैसा है कि बद्र में—-
उन्हों ने अपने काम का वबाल चखा(15)
(15) यानी रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के साथ दुश्मनी रखने और कुफ़्र करने का कि
ज़िल्लत और रूस्वाई के साथ हलाक किये गए.
और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है(16){15}
(16) और मुनाफ़िक़ों का बनी नुज़ैर यहूदियों के साथ सुलूक ऐसा है जैसे—
शैतान की कहावत जब उसने आदमी से कहा कुफ़्र कर, फिर जब उसने कुफ़्र कर लिया, बोला मैं तुझसे अलग हूँ,
मैं अल्लाह से डरता हूँ जो सारे जगत का रब (17){16}
(17) ऐसे ही मुनाफ़िक़ों ने बनी नुज़ैर को मुसलमानों के ख़िलाफ़ उभारा जंग पर आमादा किया उनसे मदद के वादे किये
और जब उनके कहे से वो अहले इस्लाम के मुक़ाबले में लड़ने आए तो मुनाफ़िक़ बैठ रहे उनका साथ न दिया.
तो उन दोनों का (18)
(18) यानी उस शैतान और इन्सान का.
अंजाम यह हुआ कि वो दोनों आग में हैं हमेशा उसमें रहे, और ज़ालिमों की यही सज़ा है



59 सूरए हश्र -तीसरा रूकू

59|18| ﻳَﺎ ﺃَﻳُّﻬَﺎ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺁﻣَﻨُﻮﺍ ﺍﺗَّﻘُﻮﺍ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﻭَﻟْﺘَﻨﻈُﺮْ ﻧَﻔْﺲٌ ﻣَّﺎ ﻗَﺪَّﻣَﺖْ ﻟِﻐَﺪٍ ۖ ﻭَﺍﺗَّﻘُﻮﺍ ﺍﻟﻠَّﻪَ ۚ ﺇِﻥَّ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﺧَﺒِﻴﺮٌ ﺑِﻤَﺎ ﺗَﻌْﻤَﻠُﻮﻥَ
|19|59 ﻭَﻟَﺎ ﺗَﻜُﻮﻧُﻮﺍ ﻛَﺎﻟَّﺬِﻳﻦَ ﻧَﺴُﻮﺍ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﻓَﺄَﻧﺴَﺎﻫُﻢْ ﺃَﻧﻔُﺴَﻬُﻢْ ۚ ﺃُﻭﻟَٰﺌِﻚَ ﻫُﻢُ ﺍﻟْﻔَﺎﺳِﻘُﻮﻥَ
|20|59ﻟَﺎ ﻳَﺴْﺘَﻮِﻱ ﺃَﺻْﺤَﺎﺏُ ﺍﻟﻨَّﺎﺭِ ﻭَﺃَﺻْﺤَﺎﺏُ ﺍﻟْﺠَﻨَّﺔِ ۚ ﺃَﺻْﺤَﺎﺏُ ﺍﻟْﺠَﻨَّﺔِ ﻫُﻢُ ﺍﻟْﻔَﺎﺋِﺰُﻭﻥَ
|21|59ﻟَﻮْ ﺃَﻧﺰَﻟْﻨَﺎ ﻫَٰﺬَﺍ ﺍﻟْﻘُﺮْﺁﻥَ ﻋَﻠَﻰٰ ﺟَﺒَﻞٍ ﻟَّﺮَﺃَﻳْﺘَﻪُ ﺧَﺎﺷِﻌًﺎ ﻣُّﺘَﺼَﺪِّﻋًﺎ ﻣِّﻦْ ﺧَﺸْﻴَﺔِ ﺍﻟﻠَّﻪِ ۚ ﻭَﺗِﻠْﻚَ ﺍﻟْﺄَﻣْﺜَﺎﻝُ ﻧَﻀْﺮِﺑُﻬَﺎ ﻟِﻠﻨَّﺎﺱِ ﻟَﻌَﻠَّﻬُﻢْ
ﻳَﺘَﻔَﻜَّﺮُﻭﻥَ
|22|59 ﻫُﻮَ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﺍﻟَّﺬِﻱ ﻟَﺎ ﺇِﻟَٰﻪَ ﺇِﻟَّﺎ ﻫُﻮَ ۖ ﻋَﺎﻟِﻢُ ﺍﻟْﻐَﻴْﺐِ ﻭَﺍﻟﺸَّﻬَﺎﺩَﺓِ ۖ ﻫُﻮَ ﺍﻟﺮَّﺣْﻤَٰﻦُ ﺍﻟﺮَّﺣِﻴﻢُ
|23|59 ﻫُﻮَ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﺍﻟَّﺬِﻱ ﻟَﺎ ﺇِﻟَٰﻪَ ﺇِﻟَّﺎ ﻫُﻮَ ﺍﻟْﻤَﻠِﻚُ ﺍﻟْﻘُﺪُّﻭﺱُ ﺍﻟﺴَّﻠَﺎﻡُ ﺍﻟْﻤُﺆْﻣِﻦُ ﺍﻟْﻤُﻬَﻴْﻤِﻦُ ﺍﻟْﻌَﺰِﻳﺰُ ﺍﻟْﺠَﺒَّﺎﺭُ ﺍﻟْﻤُﺘَﻜَﺒِّﺮُ ۚ ﺳُﺒْﺤَﺎﻥَ ﺍﻟﻠَّﻪِ ﻋَﻤَّﺎ
ﻳُﺸْﺮِﻛُﻮﻥَ
|24|59 ﻫُﻮَ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﺍﻟْﺨَﺎﻟِﻖُ ﺍﻟْﺒَﺎﺭِﺉُ ﺍﻟْﻤُﺼَﻮِّﺭُ ۖ ﻟَﻪُ ﺍﻟْﺄَﺳْﻤَﺎﺀُ ﺍﻟْﺤُﺴْﻨَﻰٰ ۚ ﻳُﺴَﺒِّﺢُ ﻟَﻪُ ﻣَﺎ ﻓِﻲ ﺍﻟﺴَّﻤَﺎﻭَﺍﺕِ ﻭَﺍﻟْﺄَﺭْﺽِ ۖ ﻭَﻫُﻮَ ﺍﻟْﻌَﺰِﻳﺰُ ﺍﻟْﺤَﻜِﻴﻢُ

ऐ ईमान वालों अल्लाह से डरो(1)
(1) और उसके हुक्म का विरोध न करो.
और हर जान देखे कि कल के लिये क्या आगे भेजा(2)
(2) यानी क़यामत के दिन के लिये क्या कर्म किये.
और अल्लाह से डरो(3)
(3) उसकी ताअत और फ़रमाँबरदारी में सरगर्म रहो.
बेशक अल्लाह को तुम्हारे कामों की ख़बर है {18} और उन जैसे न हो जो अल्लाह को भूल बैठे(4)
(4) उसकी ताअत छोड़ दी.
तो अल्लाह ने उन्हें बला में डाला कि अपनी जानें याद न रहीं (5)
(5) कि उनके लिये फ़ायदा देने वाले और काम आने वाले अमल कर लेते.
वही फ़ासिक़ हैं {19} दोज़ख़ वाले (6)
(6) जिनके लिये हमेशा का अज़ाब है.
और जन्नत वाले(7)
(7) जिनके लिये हमेशा का ऐश और हमेशा की राहत है.
बराबर नहीं, जन्नत वाले ही मुराद को पहुंचे {20} अगर हम यह क़ुरआन किसी पहाड़ पर उतारते(8)
(8) और उसको इन्सान की सी तमीज़ अता करते.
तो ज़रूर तू उसे देखता झुका हुआ पाश पाश होता, अल्लाह के डर से(9)
(9) यानी क़ुरआन की अज़मत व शान ऐसी है कि पहाड़ को अगर समझ होती तो वह
बावुजूद इतना सख़्त और मज़बूत होने के टुकड़े
टुकड़े हो जाता इससे मालूम होता है कि काफ़िरों के दिल कितने सख़्त है कि ऐसे अज़मत वाले कलाम से प्रभावित नहीं होते.
और ये मिसाले लोगों के लिये हम बयान फ़रमाते हैं कि वो सोचें {21} वही अल्लाह है जिसके सिवा कोई माबूद नहीं,
हर छुपे ज़ाहिर का
जानने वाला(10)
(10) मौजूद का भी और मअदूम का भी दुनिया और आख़िरत का भी.
वही है बड़ा मेहरबान रहमत वाला {22} वही है अल्लाह जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, बादशाह(11)
(11) मुल्क और हुकूमत का हक़ीक़ी मालिक कि तमाम मौजूदात उसके तहत मुल्को हुकूमत है और
उसकी मालिकिय्यत और सल्तनत
दायमी है जिसे ज़वाल नहीं.
निहायत (परम) पाक (12)
(12) हर ऐब से और तमाम बुराइयों से.
सलामती देने वाला(13)
(13) अपनी मख़लूक़ को.
अमान बख़्शने वाला (14)
(14) अपने अज़ाब से अपने फ़रमाँबरदार बन्दों को.
हिफ़ाज़त फ़रमाने वाला इज़्ज़त वाला अज़मत वाला तकब्बुर (बड़ाई) वाला (15)
(15) यानी अज़मत और बड़ाई वाला अपनी ज़ात और तमाम सिफ़ात में और अपनी बड़ाई का इज़हार
उसी के शायाँ और लायक़ है उसका
हर कमाल अज़ीम है और हर सिफ़त आली. मख़लूक़ में किसी को नहीं पहुंचता कि
घमण्ड यानी अपनी बड़ाई का इज़हार करे. बन्दे के
लिये विनम्रता सबसे बेहतर है.
अल्लाह को पाकी है उनके शिर्क से {23} वही है अल्लाह बनाने वाला पैदा करने वाला(16)
(16)नेस्त से हस्त करने वाला.
हर एक को सूरत देने वाला (17)
(17) जैसी चाहे.
उसी के हैं सब अच्छे नाम (18)
(18) निनानवे जो हदीस में आए हैं.
उसकी पाकी बोलता है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, और वही इज़्ज़त व हिकमत
(बोध) वाला है 

Kanzul Iman in Hindi SURAH AL-MUMTAHINAH

60 सूरए मुम्तहिनहसूरए मुम्तहिनह मदीने में उतरी, इसमें 13 आयतें, दो रूकू हैं.-पहला रूकू60|1| ﺑِﺴْﻢِ ﺍﻟﻠَّﻪِ ﺍﻟﺮَّﺣْﻤَٰﻦِ ﺍﻟﺮَّﺣِﻴﻢِ ﻳَﺎ ﺃَﻳُّﻬَﺎ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺁﻣَﻨُﻮﺍ ﻟَﺎ ﺗَﺘَّﺨِﺬُﻭﺍ ﻋَﺪُﻭِّﻱ ﻭَﻋَﺪُﻭَّﻛُﻢْ ﺃَﻭْﻟِﻴَﺎﺀَ ﺗُﻠْﻘُﻮﻥَ ﺇِﻟَﻴْﻬِﻢ ﺑِﺎﻟْﻤَﻮَﺩَّﺓِ ﻭَﻗَﺪْ ﻛَﻔَﺮُﻭﺍﺑِﻤَﺎ ﺟَﺎﺀَﻛُﻢ ﻣِّﻦَ ﺍﻟْﺤَﻖِّ ﻳُﺨْﺮِﺟُﻮﻥَ ﺍﻟﺮَّﺳُﻮﻝَ ﻭَﺇِﻳَّﺎﻛُﻢْ ۙ ﺃَﻥ ﺗُﺆْﻣِﻨُﻮﺍ ﺑِﺎﻟﻠَّﻪِ ﺭَﺑِّﻜُﻢْ ﺇِﻥ ﻛُﻨﺘُﻢْ ﺧَﺮَﺟْﺘُﻢْ ﺟِﻬَﺎﺩًﺍ ﻓِﻲ ﺳَﺒِﻴﻠِﻲ ﻭَﺍﺑْﺘِﻐَﺎﺀَﻣَﺮْﺿَﺎﺗِﻲ ۚ ﺗُﺴِﺮُّﻭﻥَ ﺇِﻟَﻴْﻬِﻢ ﺑِﺎﻟْﻤَﻮَﺩَّﺓِ ﻭَﺃَﻧَﺎ ﺃَﻋْﻠَﻢُ ﺑِﻤَﺎ ﺃَﺧْﻔَﻴْﺘُﻢْ ﻭَﻣَﺎ ﺃَﻋْﻠَﻨﺘُﻢْ ۚ ﻭَﻣَﻦ ﻳَﻔْﻌَﻠْﻪُ ﻣِﻨﻜُﻢْ ﻓَﻘَﺪْ ﺿَﻞَّ ﺳَﻮَﺍﺀَ ﺍﻟﺴَّﺒِﻴﻞِ|2|60ﺇِﻥ ﻳَﺜْﻘَﻔُﻮﻛُﻢْ ﻳَﻜُﻮﻧُﻮﺍ ﻟَﻜُﻢْ ﺃَﻋْﺪَﺍﺀً ﻭَﻳَﺒْﺴُﻄُﻮﺍ ﺇِﻟَﻴْﻜُﻢْ ﺃَﻳْﺪِﻳَﻬُﻢْ ﻭَﺃَﻟْﺴِﻨَﺘَﻬُﻢ ﺑِﺎﻟﺴُّﻮﺀِ ﻭَﻭَﺩُّﻭﺍ ﻟَﻮْ ﺗَﻜْﻔُﺮُﻭﻥَ|3|60ﻟَﻦ ﺗَﻨﻔَﻌَﻜُﻢْ ﺃَﺭْﺣَﺎﻣُﻜُﻢْ ﻭَﻟَﺎ ﺃَﻭْﻟَﺎﺩُﻛُﻢْ ۚ ﻳَﻮْﻡَ ﺍﻟْﻘِﻴَﺎﻣَﺔِ ﻳَﻔْﺼِﻞُ ﺑَﻴْﻨَﻜُﻢْ ۚ ﻭَﺍﻟﻠَّﻪُ ﺑِﻤَﺎ ﺗَﻌْﻤَﻠُﻮﻥَ ﺑَﺼِﻴﺮٌ|4|60 ﻗَﺪْ ﻛَﺎﻧَﺖْ ﻟَﻜُﻢْ ﺃُﺳْﻮَﺓٌ ﺣَﺴَﻨَﺔٌ ﻓِﻲ ﺇِﺑْﺮَﺍﻫِﻴﻢَ ﻭَﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﻣَﻌَﻪُ ﺇِﺫْ ﻗَﺎﻟُﻮﺍ ﻟِﻘَﻮْﻣِﻬِﻢْ ﺇِﻧَّﺎ ﺑُﺮَﺁﺀُ ﻣِﻨﻜُﻢْ ﻭَﻣِﻤَّﺎ ﺗَﻌْﺒُﺪُﻭﻥَ ﻣِﻦ ﺩُﻭﻥِ ﺍﻟﻠَّﻪِﻛَﻔَﺮْﻧَﺎ ﺑِﻜُﻢْ ﻭَﺑَﺪَﺍ ﺑَﻴْﻨَﻨَﺎ ﻭَﺑَﻴْﻨَﻜُﻢُ ﺍﻟْﻌَﺪَﺍﻭَﺓُ ﻭَﺍﻟْﺒَﻐْﻀَﺎﺀُ ﺃَﺑَﺪًﺍ ﺣَﺘَّﻰٰ ﺗُﺆْﻣِﻨُﻮﺍ ﺑِﺎﻟﻠَّﻪِ ﻭَﺣْﺪَﻩُ ﺇِﻟَّﺎ ﻗَﻮْﻝَ ﺇِﺑْﺮَﺍﻫِﻴﻢَ ﻟِﺄَﺑِﻴﻪِ ﻟَﺄَﺳْﺘَﻐْﻔِﺮَﻥَّ ﻟَﻚَ ﻭَﻣَﺎﺃَﻣْﻠِﻚُ ﻟَﻚَ ﻣِﻦَ ﺍﻟﻠَّﻪِ ﻣِﻦ ﺷَﻲْﺀٍ ۖ ﺭَّﺑَّﻨَﺎ ﻋَﻠَﻴْﻚَ ﺗَﻮَﻛَّﻠْﻨَﺎ ﻭَﺇِﻟَﻴْﻚَ ﺃَﻧَﺒْﻨَﺎ ﻭَﺇِﻟَﻴْﻚَ ﺍﻟْﻤَﺼِﻴﺮُ|5|60 ﺭَﺑَّﻨَﺎ ﻟَﺎ ﺗَﺠْﻌَﻠْﻨَﺎ ﻓِﺘْﻨَﺔً ﻟِّﻠَّﺬِﻳﻦَ ﻛَﻔَﺮُﻭﺍ ﻭَﺍﻏْﻔِﺮْ ﻟَﻨَﺎ ﺭَﺑَّﻨَﺎ ۖ ﺇِﻧَّﻚَ ﺃَﻧﺖَ ﺍﻟْﻌَﺰِﻳﺰُ ﺍﻟْﺤَﻜِﻴﻢُ|6|60 ﻟَﻘَﺪْ ﻛَﺎﻥَ ﻟَﻜُﻢْ ﻓِﻴﻬِﻢْ ﺃُﺳْﻮَﺓٌ ﺣَﺴَﻨَﺔٌ ﻟِّﻤَﻦ ﻛَﺎﻥَ ﻳَﺮْﺟُﻮ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﻭَﺍﻟْﻴَﻮْﻡَ ﺍﻟْﺂﺧِﺮَ ۚ ﻭَﻣَﻦ ﻳَﺘَﻮَﻝَّ ﻓَﺈِﻥَّ ﺍﻟﻠَّﻪَ ﻫُﻮَ ﺍﻟْﻐَﻨِﻲُّ ﺍﻟْﺤَﻤِﻴﺪُअल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला(1)(1) सूरए मुम्तहिनह मदनी है इसमें दो रूकू, तेरह आयतें, तीन सौ अड़तालीस कलिमें, एक हज़ार पाँचसौ दस अक्षर हैं.ऐ ईमान वालो! मेरे और अपने दुशमनों को दोस्त न बनाओ (2)(2) यानी काफ़िरों को. बनी हाशिम के ख़ानदान की एक बाँदी सारह मदीनएतैय्यिबह में सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के हुज़ूर में हाज़िर हुई जबकि हुज़ूर मक्के की फ़त्ह का सामान फ़रमारहे थे. हुज़ूर ने उससे फ़रमाया क्या तू मुसलमान होकर आई हैं? उसने कहा, नहीं फ़रमाया, क्या हिजरत करके आई? अर्ज़किया, नहीं. फ़रमाया, फिर क्यों आई? उसने कहा, मोहताजी से तंग होकर. बनी अब्दुल मुत्तलिब नेउसकी इमदाद की. कपड़े बनाए, सामान दिया. हातिब बिन अबी बलतह रदियल्लाहो अन्हो उससे मिले.उन्होंने उसको दस दीनार दिये, एक चादर दी और एक ख़त मक्के वालों के पास उसकी मअरिफ़त भेजाजिसका मज़मून यह था कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम तुम पर हमले का इरादा रखते हैं, तुम से अपने बचाव कीजो तदबीर हो सके करो. सारह यह ख़त लेकर रवाना हो गई. अल्लाह तआला ने अपने हबीब कोइसकी ख़बर दी. हुज़ूर ने अपने कुछ सहाबा को, जिनमें हज़रत अली मुर्तज़ा रदियल्लाहो अन्होभी थे, घोड़ों पर रवाना किया और फ़रमाया मक़ामे रौज़ा ख़ाख़ पर तुम्हें एक मुसाफ़िर औरत मिलेगी, उसके पास हातिब बिनअबी बलतअह का ख़त है जो मक्के वालों के नाम लिखा गया है. वह ख़त उससे ले लो और उसको छोड़ दो. अगर इन्कार करे तोउसकी गर्दन मार दो. ये हज़रात रवाना हुए और औरत को ठीक उसी जगह पर पाया जहाँ हुज़ूर सैयदेआलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया था. उससे ख़त माँगा. वह इन्कार कर गई और क़सम खा गई. सहाबा ने वापसीका इरादा किया. हज़रत अली मुर्तज़ा रदियल्लाहो अन्हो ने क़सम खाकर फ़रमाया कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लमकी ख़बर ग़लत हो ही नहीं सकती और तलवार खींच कर औरत से फ़रमाया याख़त निकाल या गर्दन रख. जब उसने देखा कि हज़रत बिल्कुल क़त्ल करने को तैयार हैं तो अपने जुड़े में से ख़त निकाला. हुज़ूर सैयदेआलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हज़रत हातिब को बुलाकर फ़रमाया कि ऐ हातिब इसका क्या कारण. उन्होंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाहसल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मैं जब से इस्लाम लाया कभी मैंने कुफ़्र न किया और जब से हुज़ूर कीनियाज़मन्दी मयस्सर आई कभी हुज़ूर की ख़यानत न की और जब से मक्के वालों को छोड़ाकभी उनकी महब्बन न आई लेकिन वाक़िआ यह है कि मैं क़ुरैश में रहता था और उनकी क़ौम से न थामेरे सिवा और जो मुहाजिर हैं उनके मक्कए मुकर्रमा में रिश्तेदार हैं जो उनके घरबार की निगरानी करते हैं. मुझेअपने घरवालों का अन्देशा था इसलिये मैंने यह चाहा कि मैं मक्के वालों पर कुछ एहसान रखूँ ताकि वो मेरे घरवालों को न सताएं और मैंयक़ीन से जानता हूँ कि अल्लाह तआला मक्के वालों पर अज़ाब उतारने वाला है मेरा ख़त उन्हें बचा न सकेगा. सैयदे आलमसल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उनका यह उज़्र क़ुबूल फ़रमाया और उनकी तस्दीक़ की. हज़रतउमर रदियल्लाहो अन्हो ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम मुझे इजाज़त दीजिये इस मुनाफ़िक़की गर्दन मार दूँ. हुज़ूर ने फ़रमाया ऐ उमर अल्लाह तआला ख़बरदार है जब ही उसने बद्र वालों के हक़ मेंफ़रमाया कि जो चाहो करो मैंने तुम्हें बख़्श दिया. यह सुनकर हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो के आँसू जारी हो गए और येआयतें उतरीं.तुम उन्हें ख़बरें पहुंचाते हो दोस्ती से हालांकि वो मुन्किर हैं उस हक़ के जो तुम्हारे पास आया(3)(3) यानी इस्लाम और क़ुरआन.घर से अलग करते हैं (4)(4) यानी मक्कए मुकर्रमा से.रसूल को और तुम्हें इस पर कि तुम अपने रब अल्लाह पर ईमान लाए अगर तुम निकले हो मेरी राह में जिहाद करने औरमेरी रज़ा चाहने को, तो उनसे दोस्ती न करो तुम उन्हें ख़ुफ़िया संदेश महब्बत का भेजते हो और मैं ख़ूब जानता हूँ जोतुम छुपाओ और जो ज़ाहिर करो, और तुम में जो ऐसा करे बेशक वह सीधी राह से बहका{1} अगर तुम्हें पाएं (5)(5) यानी अगर काफ़िर तुम पर मौक़ा पा जाएं.तो तुम्हारे दुश्मन होंगे और तुम्हारी तरफ़ अपने हाथ (6)(6) ज़र्ब (हमला) और क़त्ल के साथ.और अपनी ज़बानें(7)(7) ज़ुल्म अत्याचार और—बुराई के साथ दराज़ करेंगे और उनकी तमन्ना है कि किसी तरह तुम काफ़िर हो जाओ (8){2}(8) तो ऐसे लोगों को दोस्त बनाया और उनसे भलाई की उम्मीद रखना और उनकी दुश्मनी सेग़ाफ़िल रहना हरगिज़ न चाहिये.हरगिज़ काम न आएंगे तुम्हें तुम्हारे रिश्ते और न तुम्हारी औलाद(9)(9) जिनकी वजह से तुम काफ़िरों से दोस्ती और मेलजोल करते हो.क़यामत के दिन तुम्हें उनसे अलग कर देगा(10)(10) कि फ़रमाँबरदार जन्नत में होंगे और काफ़िर नाफ़रमान जहन्नम में.और अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है{3} बेशक तुम्हारे लिये अच्छी पैरवी थी(11)(11) हज़रत हातिब रदियल्लाहो अन्हो और दूसरे मूमिनों को ख़िताब है और सब को हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम काअनुकरण करने का हुक्म है कि दीन के मामले रिश्तेदारों के साथ उनका तरीक़ा इख़्तियार करें.इब्राहीम और उसके साथ वालों में (12)(12) साथ वालों से ईमान वाले मुराद हैं.जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा(13)(13) जो मुश्रिक थी.बेशक हम बेज़ार हैं तुम से और उनसे जिन्हें अल्लाह के सिवा पूजते हो, हम तुम्हारे इन्कारी हुए(14)(14) और हमने तुम्हारे दीन की मुख़ालिफ़त इख़्तियार की.और हम में और तुम में दुश्मनी और अदावत ज़ाहिर हो गई हमेशा के लिये जब तक तुम एक अल्लाह पर ईमान न लाओ मगरइब्राहीम का अपने बाप से कहना कि मैं ज़रूर तेरी मग़फ़िरत चाहूंगा (15)(15) यह अनुकरण के क़ाबिल नहीं है क्योंकि वह एक वादे की बिना पर था और जब हज़रतइब्राहीम को ज़ाहिर हो गया कि वो कुफ़्र पर अटल है तो आपने उससे बेज़ारी की लिहाज़ा यहकिसी के लिये जायज़ नहीं कि अपने बेईमान रिश्तेदार के लिये माफ़ी की दुआ करे.और मैं अल्लाह के सामने तेरे किसी नफ़े का मालिक नहीं(16)(16) अगर तू उसकी नाफ़रमानी करे और शिर्क पर क़ायम रहे.{ख़ाज़िन}ऐ हमारे रब ! हमने तुझी पर भरोसा किया और तेरी ही तरफ़ रूजू लाए और तेरीही तरफ़ फिरना है(17){4}(17) यह भी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की और उन मूमिनों की दुआ है जो आपकेसाथ थे और माक़व्ल इस्तस्ना के साथ जुड़ा हुआ है लिहाज़ा मूमिनों को इस दुआ में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम काअनुकरण करना चाहिये.ऐ हमारे रब ! हमें काफ़िरों की आज़माइश में न डाल (18)(18) उन्हें हम पर ग़लबा न दे कि वो अपने आपको सच्चाई पर गुमान करने लगें.और हमें बख़्श दे ऐ हमारे रब, बेशक तू ही इज़्ज़त व हिकमत वाला है {5} बेशक तुम्हारे लिये (19)(19) ऐ हबीबे ख़ुदा मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्मत.उनमें अच्छी पैरवी थी(20)(20) यानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और उनके साथ वालों में.उसे जो अल्लाह और पिछले दिन का उम्मीदवार हो(21)(21) अल्लाह तआला की रहमत और सवाब और आख़िरत की राहत का तालिब हो और अल्लाह के अज़ाब से डरे.और जो मुंह फेरे (22) तो बेशक अल्लाह ही बेनियाज़ है सब ख़ूबियों सराहा{6}(22) ईमान से और काफ़िरों से दोस्ती करे.


60 सूरए मुम्तहिनह -दूसरा रूकू


60|7| ۞ ﻋَﺴَﻰ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﺃَﻥ ﻳَﺠْﻌَﻞَ ﺑَﻴْﻨَﻜُﻢْ ﻭَﺑَﻴْﻦَ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﻋَﺎﺩَﻳْﺘُﻢ ﻣِّﻨْﻬُﻢ ﻣَّﻮَﺩَّﺓً ۚ ﻭَﺍﻟﻠَّﻪُ ﻗَﺪِﻳﺮٌ ۚ ﻭَﺍﻟﻠَّﻪُ ﻏَﻔُﻮﺭٌ ﺭَّﺣِﻴﻢٌ
|8|60ﻟَّﺎ ﻳَﻨْﻬَﺎﻛُﻢُ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﻋَﻦِ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﻟَﻢْ ﻳُﻘَﺎﺗِﻠُﻮﻛُﻢْ ﻓِﻲ ﺍﻟﺪِّﻳﻦِ ﻭَﻟَﻢْ ﻳُﺨْﺮِﺟُﻮﻛُﻢ ﻣِّﻦ ﺩِﻳَﺎﺭِﻛُﻢْ ﺃَﻥ ﺗَﺒَﺮُّﻭﻫُﻢْ ﻭَﺗُﻘْﺴِﻄُﻮﺍ ﺇِﻟَﻴْﻬِﻢْ ۚ ﺇِﻥَّ ﺍﻟﻠَّﻪَ
ﻳُﺤِﺐُّ ﺍﻟْﻤُﻘْﺴِﻄِﻴﻦَ
|9|60 ﺇِﻧَّﻤَﺎ ﻳَﻨْﻬَﺎﻛُﻢُ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﻋَﻦِ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﻗَﺎﺗَﻠُﻮﻛُﻢْ ﻓِﻲ ﺍﻟﺪِّﻳﻦِ ﻭَﺃَﺧْﺮَﺟُﻮﻛُﻢ ﻣِّﻦ ﺩِﻳَﺎﺭِﻛُﻢْ ﻭَﻇَﺎﻫَﺮُﻭﺍ ﻋَﻠَﻰٰ ﺇِﺧْﺮَﺍﺟِﻜُﻢْ ﺃَﻥ ﺗَﻮَﻟَّﻮْﻫُﻢْ ۚ ﻭَﻣَﻦ
ﻳَﺘَﻮَﻟَّﻬُﻢْ ﻓَﺄُﻭﻟَٰﺌِﻚَ ﻫُﻢُ ﺍﻟﻈَّﺎﻟِﻤُﻮﻥَ
|10|60ﻳَﺎ ﺃَﻳُّﻬَﺎ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺁﻣَﻨُﻮﺍ ﺇِﺫَﺍ ﺟَﺎﺀَﻛُﻢُ ﺍﻟْﻤُﺆْﻣِﻨَﺎﺕُ ﻣُﻬَﺎﺟِﺮَﺍﺕٍ ﻓَﺎﻣْﺘَﺤِﻨُﻮﻫُﻦَّ ۖ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﺃَﻋْﻠَﻢُ ﺑِﺈِﻳﻤَﺎﻧِﻬِﻦَّ ۖ ﻓَﺈِﻥْ ﻋَﻠِﻤْﺘُﻤُﻮﻫُﻦَّ ﻣُﺆْﻣِﻨَﺎﺕٍ
ﻓَﻠَﺎ ﺗَﺮْﺟِﻌُﻮﻫُﻦَّ ﺇِﻟَﻰ ﺍﻟْﻜُﻔَّﺎﺭِ ۖ ﻟَﺎ ﻫُﻦَّ ﺣِﻞٌّ ﻟَّﻬُﻢْ ﻭَﻟَﺎ ﻫُﻢْ ﻳَﺤِﻠُّﻮﻥَ ﻟَﻬُﻦَّ ۖ ﻭَﺁﺗُﻮﻫُﻢ ﻣَّﺎ ﺃَﻧﻔَﻘُﻮﺍ ۚ ﻭَﻟَﺎ ﺟُﻨَﺎﺡَ ﻋَﻠَﻴْﻜُﻢْ ﺃَﻥ ﺗَﻨﻜِﺤُﻮﻫُﻦَّ ﺇِﺫَﺍ
ﺁﺗَﻴْﺘُﻤُﻮﻫُﻦَّ ﺃُﺟُﻮﺭَﻫُﻦَّ ۚ ﻭَﻟَﺎ ﺗُﻤْﺴِﻜُﻮﺍ ﺑِﻌِﺼَﻢِ ﺍﻟْﻜَﻮَﺍﻓِﺮِ ﻭَﺍﺳْﺄَﻟُﻮﺍ ﻣَﺎ ﺃَﻧﻔَﻘْﺘُﻢْ ﻭَﻟْﻴَﺴْﺄَﻟُﻮﺍ ﻣَﺎ ﺃَﻧﻔَﻘُﻮﺍ ۚ ﺫَٰﻟِﻜُﻢْ ﺣُﻜْﻢُ ﺍﻟﻠَّﻪِ ۖ ﻳَﺤْﻜُﻢُ ﺑَﻴْﻨَﻜُﻢْ ۚ
ﻭَﺍﻟﻠَّﻪُ ﻋَﻠِﻴﻢٌ ﺣَﻜِﻴﻢٌ
|11|60 ﻭَﺇِﻥ ﻓَﺎﺗَﻜُﻢْ ﺷَﻲْﺀٌ ﻣِّﻦْ ﺃَﺯْﻭَﺍﺟِﻜُﻢْ ﺇِﻟَﻰ ﺍﻟْﻜُﻔَّﺎﺭِ ﻓَﻌَﺎﻗَﺒْﺘُﻢْ ﻓَﺂﺗُﻮﺍ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺫَﻫَﺒَﺖْ ﺃَﺯْﻭَﺍﺟُﻬُﻢ ﻣِّﺜْﻞَ ﻣَﺎ ﺃَﻧﻔَﻘُﻮﺍ ۚ ﻭَﺍﺗَّﻘُﻮﺍ ﺍﻟﻠَّﻪَ
ﺍﻟَّﺬِﻱ ﺃَﻧﺘُﻢ ﺑِﻪِ ﻣُﺆْﻣِﻨُﻮﻥَ
|12|60 ﻳَﺎ ﺃَﻳُّﻬَﺎ ﺍﻟﻨَّﺒِﻲُّ ﺇِﺫَﺍ ﺟَﺎﺀَﻙَ ﺍﻟْﻤُﺆْﻣِﻨَﺎﺕُ ﻳُﺒَﺎﻳِﻌْﻨَﻚَ ﻋَﻠَﻰٰ ﺃَﻥ ﻟَّﺎ ﻳُﺸْﺮِﻛْﻦَ ﺑِﺎﻟﻠَّﻪِ ﺷَﻴْﺌًﺎ ﻭَﻟَﺎ ﻳَﺴْﺮِﻗْﻦَ ﻭَﻟَﺎ ﻳَﺰْﻧِﻴﻦَ ﻭَﻟَﺎ ﻳَﻘْﺘُﻠْﻦَ
ﺃَﻭْﻟَﺎﺩَﻫُﻦَّ ﻭَﻟَﺎ ﻳَﺄْﺗِﻴﻦَ ﺑِﺒُﻬْﺘَﺎﻥٍ ﻳَﻔْﺘَﺮِﻳﻨَﻪُ ﺑَﻴْﻦَ ﺃَﻳْﺪِﻳﻬِﻦَّ ﻭَﺃَﺭْﺟُﻠِﻬِﻦَّ ﻭَﻟَﺎ ﻳَﻌْﺼِﻴﻨَﻚَ ﻓِﻲ ﻣَﻌْﺮُﻭﻑٍ ۙ ﻓَﺒَﺎﻳِﻌْﻬُﻦَّ ﻭَﺍﺳْﺘَﻐْﻔِﺮْ ﻟَﻬُﻦَّ ﺍﻟﻠَّﻪَ ۖ ﺇِﻥَّ ﺍﻟﻠَّﻪَ
ﻏَﻔُﻮﺭٌ ﺭَّﺣِﻴﻢٌ
|13|60ﻳَﺎ ﺃَﻳُّﻬَﺎ ﺍﻟَّﺬِﻳﻦَ ﺁﻣَﻨُﻮﺍ ﻟَﺎ ﺗَﺘَﻮَﻟَّﻮْﺍ ﻗَﻮْﻣًﺎ ﻏَﻀِﺐَ ﺍﻟﻠَّﻪُ ﻋَﻠَﻴْﻬِﻢْ ﻗَﺪْ ﻳَﺌِﺴُﻮﺍ ﻣِﻦَ ﺍﻟْﺂﺧِﺮَﺓِ ﻛَﻤَﺎ ﻳَﺌِﺲَ ﺍﻟْﻜُﻔَّﺎﺭُ ﻣِﻦْ ﺃَﺻْﺤَﺎﺏِ ﺍﻟْﻘُﺒُﻮﺭِ
क़रीब है कि अल्लाह तुम में और उनमें जो उनमें से(1)
(1) यानी मक्के के काफ़िरों में से.
तुम्हारे दु्श्मन हैं दोस्ती कर दे(2)
(2) इस तरह कि उन्हें ईमान की तौफ़ीक़ दे. चुनांन्चे अल्लाह तआला ने ऐसा किया और फ़त्हे मक्का के बाद उनमें
से बहुत से लोग ईमान ले आए और मूमिनों के दोस्त और भाई बन गए और आपसी प्यार बढ़ा. जब ऊपर की
आयतें उतरीं तो ईमान वालों ने अपने रिश्तेदारों की दुश्मनी में सख़्ती की, उनसे
बेज़ार हो गए और इस मामले में बड़े सख़्त हो गए तो अल्लाह तआला ने यह आयत उतार कर उन्हें उम्मीद दिलाई कि उन
काफ़िरों का हाल बदलने वाला है. और यह आयत उतरी.
और अल्लाह क़ादिर (सक्षम) है(3)
(3) दिल बदलने और हाल तब्दीन करने पर.
और बख़्शने वाला मेहरबान है {7} अल्लाह तुम्हें उनसे (4)
(4) यानी उन काफ़िरों से. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि यह आयत ख़ूज़ाअह के हक़ में
उतरी जिन्होंने रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से इस शर्त पर सुलह की थी
कि न आपसे लड़ेंगे न आपके विरोधियों का साथ देंगे. अल्लाह तआला ने उन लोगों के साथ सुलूक करने की इजाज़त दे
दी. हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर ने फ़रमाया कि यह आयत उनकी वालिदा अस्मा बिन्ते अबूबक्र
सिद्दीक़ रदियल्लाहो अन्हो के हक़ में नाज़िल हुई. उनकी वालिदा मदीनए तैय्यिबह उनके लिये तोहफ़े
लेकर आई थीं और थीं मुश्रिका. तो हज़रत अस्मा ने उनके तोहफ़े क़ुबूल न किये और उन्हें अपने घर में आने
की आज्ञा न दी और रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से दरियाफ़्त किया कि क्या हुक्म है.
इसपर यह आयत उतरी और रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने इजाज़त दी कि उन्हें घर
में बुलाएं, उनके तोहफ़े क़ुबूल करें उनके साथ अच्छा सुलूक करें.
मना नहीं करता जो तुम से दीन में न लड़े और तुम्हें तुम्हारे घरो से न निकाला कि उनके साथ एहसान करो और
उनसे इन्साफ़ का बर्ताव बरतो, बेशक इन्साफ़ वाले अल्लाह को मेहबूब हैं{8} अल्लाह तुम्हें उन्हीं से मना करता है जो तुम से
दीन में लड़े या तुम्हें तुम्हारे घरो से निकाला या तुम्हारे निकालने पर मदद की कि उनसे दोस्ती करो (5)
(5) यानी ऐसे काफ़िरों से दोस्ती मना है.
और जो उनसे दोस्ती करे तो वही सितमगार हैं {9}ऐ ईमान वालो! जब तुम्हारे पास मुसलमान औरतें कुफ़्रिस्तान से
अपने गर छोड़ कर आएं तो उनका इम्तिहान करो(6)
(6) कि उनकी हिजरत ख़ालिस दीन के लिये है ऐसा तो नहीं है कि उन्होंने शौहरों की
दुशमनी में घर छोड़ा हो. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि उन औरतों को क़सम दी जाए कि वो
न शौहरों की दुश्मनी में निकली हैं और न किसी दुनियावी कारण से. उन्होंने
केवल अपने दीन और ईमान के लिये हिजरत की है.
अल्लाह उनके ईमान का हाल बेहतर जानता है फिर अगर तुम्हें ईमान वालियाँ मालूम हों तो उन्हें काफ़िरों को वापस न दो, न ये(7)
(7) मुसलमान औरतें.
उन्हें हलाल(8)
(8) यानी काफ़िरों को.
न वो इन्हें हलाल(9)
(9) यानी न काफ़िर मर्द मुसलमान औरतों को हलाल. औरत मुसलमान होकर काफ़िर की
बीबी होने से बाहर हो गई.
और उनके काफ़िर शौहरों को दे दो जो उनका ख़र्च हुआ(10)
(10) यानी जो मेहर उन्होंने उन औरतों को दिये थे वो उन्हें लौटा दो. यह हुक्म ज़िम्मा के लिये हैं जिनके हक़ में यह आयत
उतरी लेकिन हर्बी औरतों के मेहर वापस करना न वाजिब है न सुन्नत. और ये मेहर देना उस सूरत में है जबकि
औरत का काफ़िर शौहर उसको तलब करे और अगर तलब न करे तो उसको कुछ न दिया जाएगा. इसी तरह अगर काफ़िर ने उस
मुहाजिरा को मेहर नहीं दिया था तो भी वह कुछ न पाएगा. यह आयत सुलह हुदैबियह के बाद उतरी.
सुलह में यह शर्त थी कि मक्के वालों में से जो शख़्स ईमान लाकर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की
ख़िदमत में हाज़िर हो उसको मक्के वाले वापस ले सकते हैं. इस आयत में यह बयान फ़रमा दिया गया कि यह शर्त सिर्फ़ मर्दों के लिये है
औरतों की तसरीह एहदनामे में नहीं न औरतें इस क़रारदाद में दाख़िल हो सकती हैं क्योंकि
मुसलमान औरतें काफ़िर के लिये हलाल नहीं. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि यह आयत पहले आदेश को स्थगित करने
वाली है यह इस सूरत में है कि औरतें सुलह के एहद में दाख़िल हों मगर औरतों को इस एहद में दाख़िल होना सही
नहीं क्योंकि हज़रत अली मुर्तज़ा रदियल्लाहो अन्हो से एहदनामे के ये अल्फ़ाज़ आए हैं कि हम में से जो मर्द
आपके पास पहुंचे चाहे वह आप के दीन पर ही हो आप उसको वापस कर देंगे.
और तुम पर कुछ गुनाह नहीं कि उनसे निकाह कर लो(11)
(11) यानी हिजरत करने वाली औरतों से अगरचे दारूल हर्ब में उनके शौहर हों. क्योंकि इस्लाम लाने से वो उन
शौहरों पर हराम हो गई और उनकी ज़ौजियत में न रहीं.
जब उनके मेहर उन्हें दो(12)
(12) मेहर देने से मुराद उसको ज़िम्मे लाज़िम कर लेना है अगरचे बिलफेअल न दिया जाए. इससे यह साबित हुआ कि इन औरतों से निकाह
करने पर नया मेहर वाजिब होगा. उनके शौहरों को जो अदा कर दिया गया वह उसमें जोड़ा या गिनती नहीं किया जाएगा.
और काफ़िरनियों के निकाह पर जमे न रहो(13)
(13) यानी जो औरतें दारूल हर्ब में रह गईं या इस्लाम से फिर कर दारूल हर्ब में चली गईं उनसे ज़ौज़ियत का
सम्बन्ध न रखो. चुनांन्चे यह आयत उतरने के बाद असहाबे रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उन काफ़िर औरतों को तलाक़ दे
दी जो मक्कए मुकर्रमा में थीं. अगर मुसलमान की औरत इस्लाम से फिर जाए तो उसके निकाह
की क़ैद से बाहर न होगा.
और मांग लो जो तुम्हारा ख़र्च हुआ(14)
(14) यानी उन औरतों को तुमने जो मेहर दिये थे वो उन काफ़िरों से वुसूल करलो जिन्होंने उनसे निकाह किया.
और काफ़िर मांग लें जो उन्होंने ख़र्च किया(15)
(15) अपनी औरतों पर जो हिजरत करके दारूल इस्लाम में चली आईं उनके मुसलमान शौहरों से जिन्होंने उनसे
निकाह किया.
यह अल्लाह का हुक्म है, वह तुम में फैसला फ़रमाता है, और अल्लाह इल्म व हिकमत वाला है {10} और अगर मुसलमानों के हाथ से
कुछ औरतें काफ़िरों की तरफ़ निकल जाएं(16)
(16) इस आयत के उतरने के बाद मुसलमानों ने तो मुहाजिरह औरतों के मेहर उनके काफ़िर शौहरों को अदा कर दिये और काफ़िरों ने इस्लाम से
फिर जाने वाली औरतों के मेहर मुसलमानों को अदा करने से इन्कार किया. इसपर यह आयत उतरी.
फिर तुम काफ़िरों को सज़ा दो(17)
(17) जिहाद में और उनसे ग़नीमत पाओ.
तो जिनकी औरतें जाती रही थीं (18)
(18) यानी इस्लाम से फिर कर दारूल हर्ब में चली गईं थीं.
ग़नीमत में से उतना दे दो जो उनका ख़र्च हुआ था (19)
(19) उन औरतों के मेहर देने में, हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि मूमिन मुहाजिरीन की
औरतों में से छ औरतें ऐसी थी जिन्हों ने दारूल हर्ब को इख़्तियार किया और मुश्रिकों के साथ जुड़ गईं और इस्लाम
से फिर गईं. रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उनके शौहरों को माले ग़नीमत से उनके मेहर अता
फ़रमाए. इन आयतों में मुहाजिर औरतों के इम्तिहान और काफ़िरों ने जो अपनी बीबीयों पर ख़र्च किया हो
वह हिजरत के बाद उन्हें देना और मुसलमानों ने जो अपनी बीबीयों पर ख़र्च किया हो वह उनके मुर्तद
होकर काफ़िरों से मिल जाने के बाद उनसे मांगना और जिनकी बीबियाँ मुर्तद होकर चली गईं हों उन्होंने जो
उनपर ख़र्च किया था वह उन्हें माले ग़नीमत में से देना, ये तमाम अहकाम स्थगित हो गए आयतें सैफ़ या आयतें
ग़नीमत या सुन्नत से, क्योंकि ये अहकाम जभी तक बाकि रहे जब तक ये एहद रहा और जब यह एहद उठ गया
तो अहकाम भी न रहे.
और अल्लाह से डरो जिसपर तुम्हें ईमान है{11} ऐ नबी जब तुम्हारे हुज़ूर मुसलमान औरतें हाज़िर हों इस पर बैअत करने को
कि अल्लाह का कुछ शरीक न ठहराएंगी न चोरी करेगी और न बदकारी और न
अपनी औलाद को क़त्ल करेगी(20)
(20) जैसा कि जिहालत के ज़माने में तरीक़ा था कि लड़कियों को शर्मिन्दगी के ख़याल और नादारी के डर
से ज़िन्दा गाड़ देते थे. उससे और हर नाहक़ क़त्ल से बाज़ रहना इस एहद में शामिल है.
और न वह बोहतान लाएंगी जिसे अपने हाथों और पाँवों के बीच यानी मौज़ए बिलादत (गुम्तांग) में उठाएं
(21)
(21) यानी पराया बच्चा लेकर शौहर को धोखा दें और उसको अपने पेट से जना हुआ बताएं जैसा कि इस्लाम के पहले के काल में
तरीक़ा था.
और किसी नेक बात में तुम्हारी ना फ़रमानी न करेगी(22)
(22) नेक बात अल्लाह और उसके रसूल की फ़रमाँबरदारी है.
तो उनसे बैअत लो और अल्लाह से उनकी मग़फ़िरत चाहो (23)
(23) रिवायत है कि जब सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम फ़त्ह मक्का के दिन मर्दों की बैअत लेकर फ़ारिग़ हुए तो
सफ़ा पहाड़ी पर औरतों से बैअत लेना शुरू की और हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो नीचे खड़े हुए
हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का कलामे मुबारक औरतों को सुनाते जाते थे. हिन्द बिन्ते उतबह अबू सुफ़ियान की
बीवी डरी हुई बुर्क़ा पहन कर इस तरह हाज़िर हुई कि पहचानी न जाए. सैयदे आलम
सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि मैं तुम से इस बात पर बैअत लेता हूँ कि तुम अल्लाह तआला के साथ किसी
चीज़ को शरीक न करो. हिन्द ने कहा कि आप हम से वह एहद लेते हैं जो हमने आपको मर्दों से लेते
नहीं देखा और उस रोज़ मर्दों में सिर्फ़ इस्लाम और जिहाद पर बैअत की गई थी. फिर हुज़ूर ने फ़रमाया
और चोरी न करेंगी. तो हिन्द ने अर्ज़ किया कि अबू सुफ़ियान कंजूस आदमी है और मैंने उनका माल
ज़रूर लिया है, मैं नहीं समझती मुझे हलाल हुआ या नहीं. अबू सुफ़ियान हाज़िर थे उन्होंने कहा जो तूने
पहले लिया और जो आगे ले सब हलाल. इस पर नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मुस्कुराए और फ़रमाया
तू हिन्द बिन्ते उतबह है? अर्ज़ किया जी हाँ, मुझ से जो कुछ क़ुसूर हुए हैं माफ़ फ़रमाइये. फिर हुज़ूर ने फ़रमाया, और न
बदकारी करेंगी. तो हिन्द ने कहा क्या कोई आज़ाद औरत बदकारी करती है. फिर फ़रमाया, न
अपनी औलाद को क़त्ल करें, हिन्द ने कहा, हमने छोटे छोटे पाले जब बड़े हो गए तुमने उन्हें क़त्ल कर दिया. तुम जानो और वो
जानें. उसका लड़का हुन्जुला बिन अबी सुफ़ियान बद्र में क़त्ल कर दिया गया था. हिन्द की ये बातचीत
सुनकर हज़रत उमर रदियल्लाहो अनहो को बहुत हंसी आई फिर हुज़ूर ने फ़रमाया कि अपने हाथ पाँवों के बीच कोई
लांछन नहीं घंड़ेगी. हिन्द ने कहा ख़ुदा की क़स्म बोहतान बहुत बुरी चीज़ है
और हुज़ूर हमको नेक बातों और अच्छी आदतों का हुक्म देते हैं. फिर हुज़ूर ने फ़रमाया कि किसी नेक बात में रसूल
(सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम) की नाफ़रमानी नहीं करेंगी. इसपर हिन्द ने कहा कि इस
मजलिस में हम इसलिये हाज़िर ही नहीं हुए कि अपने दिल में आपकी नाफ़रमानी का ख़याल
आने दें. औरतों ने इन सारी बातों का इक़रार किया और चार सौ सत्तावन औरतों ने बैअत की. इस बैअत में सैयदे
आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुसाफ़हा न फ़रमाया और औरतों को दस्ते मुबारक छूने न दिया. बैअत की कै़फ़ियत में
भी यह बयान किया गया है कि एक प्याला पानी में सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने अपना दस्ते
मुबारक डाला फिर उसी में औरतों ने अपने हाथ डाले और यह भी कहा गया बैअत कपड़े के वास्ते से ली
गई और बईद नहीं कि दोनों सूरतें अमल में आई हो. बैअत के वक़्त कैंची का इस्तेमाल मशायख़ का
तरीक़ा हे. यह भी कहा गया है कि यह हज़रत अली मुर्तजा़ रदियल्लाहो अन्हो की
सुन्नत है. ख़िलाफ़त के साथ टोपी देना मशायख़ का मामूल है और कहा गया है कि नबीये करीम
सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के मन्क़ूल है औरतों की बैअत में अजनबी औरत का हाथ छूना हराम है या बैअत
ज़बान से हो या कपड़े वग़ैरह की मदद से.
बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है, {12} ऐ ईमान वालो ! उन लोगों से दोस्ती न करो जिन पर अल्लाह का ग़ज़ब है (24)
(24) इन लोगों से मुराद यहूदी है.
वो आख़िरत से आस तोड़ बैठे हैं (25)
(25)क्योंकि उन्हें पिछली किताबों से मालूम हो चुका था और वो यक़ीन से जानते थे कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो
अलैहे वसल्लम अल्लाह तआला के रसूल है और यहूदियों ने इसे झुटलाया है इसलिये उन्हें अपनी मग़फ़िरत की
उम्मीद नहीं.
जैसे काफ़िर आस तोड़ बैठे क़ब्रवालों से(26){13}
(26)फिर दुनिया में वापस आने की, या ये मानी हैं कि यहूदी आख़िरत के सवाब से ऐसे निराश हुए जैसे
कि मरे हुए काफ़िर अपनी क़ब्रों में अपने हाल को जानकर आख़िरत के सवाब से बिल्कुल मायूस हैं.